शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

वेदों पर :तीसरी क़िस्त इतिहास :

वेदों पर :तीसरी क़िस्त 

इतिहास :


रामायण और महाभारत दो ही ग्रन्थ हैं जो इतिहास कहे गए हैं। ये भगवान् के दो बड़े अवतारों का बखान करते हैं। इनमें से एक रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी। इसमें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् राम की लीलाओं का   दिव्य वर्रण है।वास्तव में रामायण की रचना वाल्मीकि ने राम के इस धरा पर अवतरण से पहले ही कर दी थी। इन्हें अंतर दृष्टि  प्राप्त थी अनागत को देख लेने की।भविष्य दर्शन कर लेने की। 

संस्कृत भाषा में लिखे गए इस मूल ग्रन्थ में कुलमिलाकर २४ ,००० श्लोक हैं। सामाजिक जीवन में एक आदर्श बेटे ,दम्पति ,भाई ,राजा और पत्नी के कर्तव्यों का पाठ पढ़ाते स्त्रोत यहाँ मिलते हैं इस इतिहास में। 

इतर प्रांतीय भाषाओं में भी रामायण की रचना हुई है। ए. के. रामानुजन कृत थ्री हंड्रेड रामायना बहु -चर्चित रही है। लेकिन वाल्मीकि रामायण का स्थानापन्न बनी घर घर में पढ़ी जाने वाली "रामचरितमानस  "ज़िसकी  रचना संत तुलसीदास ने की थी। 

दूसरे बहुश्रुत ग्रन्थ महाभारत की रचना  स्वयं महर्षि वेद  व्यास ने की है। इसमें एक लाख श्लोक हैं। इसे विश्व की सबसे लम्बी कविता   माना जाता है।इसके केंद्र में हैं श्रीकृष्ण  की दिव्य लीलाएं। जीवन के हर चरण के  कर्तव्यों का उल्लेख करतीं हैं इसकी ऋचाएं। भक्ति का सही मार्ग भी रेखांकित करती है महाभारत। गीता इसी का एक अंश है। यह अर्जुन और कृष्ण के बीच हुआ  संवाद है, महाभारत युद्ध के ठीक पहले का जब दोनों ओर  की सेनाएं मोर्चा संभाल लेती हैं और युद्ध छिड़ने ही वाला है। आध्यात्मिक ज्ञान का अंतिम कोष है गीता। विश्व की तकरीबन हरेक भाषा में इसका अनुवाद हो चुका है। इस पर विज्ञ जनों ने अनेक टीकाएँ लिखी हैं। 

पुराण :

कुलमिलाकर अठारह पुराण हैं। इन सभी की रचना वेद व्यास जी ने ही की है। कुल चार लाख श्लोक हैं इनमें। इनमें भगवान् और उनके भक्त जनों  की लीलाओं का ही गायन है।दर्शन के ये मुख्यआधार हैं। सृष्टि की रचना ,आदि , मध्य और अंत का ज्ञान इनमें समाहित है तो सृष्टि के पुनर्जन्म की भी कथा कही गई है।  देवकुल का विस्तार(पूरी वंशवेळ ) यहाँ आपको  देखने को मिलेगा।संतों का भी वर्रण है। दिव्यप्रेम का शिखर प्रेमाभक्ति आपको यहीं मिलेगी। इनमें सबसे प्रमुख भागवत पुराण को माना गया है। इसे ही श्रीमद भागवतम भी कहा जाता है।यह वेदव्यास रचित आखिरी ग्रन्थ था इसके बाद उन्होंने किसी और ग्रन्थ की रचना नहीं की। 

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (06-10-2013) हे दुर्गा माता: चर्चा मंच-1390 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    --
    शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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