शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

वेदों के अनुभाग ,इतिहास ,पुराण

वेदों के अनुभाग ,इतिहास ,पुराण 

प्रत्येक वेद के चारनुभाग किये गए हैं :


(१ )संहिता :ये अन्यान्य देवगणों की स्तुति में गाये जाने वाले धार्मिक गीत वैदिक मन्त्र ,स्तोत्र है 

ये सीधे सीधे परमपिता परमेश्वर से भी संवाद करते हैं। 

(२)ब्राह्मण :ये यज्ञ की प्रक्रिया कर्मकांड ,यागिक अनुष्ठान का बखान करते हैं संहिता के मन्त्रों का 

यहीं इस्तेमाल (उच्चार) किया जाता है।

(३)आरण्यक :ये उक्त अनुष्ठानों की खुलकर व्याख्या करते हैं इनमें निहित  दर्शन खंगालते है। 

(४)उपनिषद :ये दार्शनिक ग्रन्थ हैं जो ईश्वर तत्व को उद्घाटित करते हैं। 

वेदांग 

ये वेदों के अनुपूरक सहायक ग्रन्थ हैं वेदों को समझाना इनका काम है। इनके मार्फ़त वेदों को 

बूझने में आसानी रहती है। छ :हैं ये गिनती के -

(१) शिक्षा :मंत्रोचार की विधि ,नियमों आदि  का यहाँ बखान किया गया है।

(२)कल्प :कर्मकांड (याज्ञिक  अनुष्ठानों )की विधि समझाते हैं कल्प। 

(३)व्याकरण :वेदों में शब्द रचना ,वाक्य रचना ,भाषा के नियम सब कुछ यहाँ मिलता है। 

(४ ) निरुक्ति :वेदों का शब्दकोश हैं निरुक्ति।संभाषणम  संस्कृतं शब्दकोश :  हैं। 

(५)छंद :मात्रा ,लय, ताल ,काफिया ,रदीफ़ वेद मन्त्रों के यहीं मिलेंगे आपको। 

(६ )ज्योतिष :खगोल शाश्त्र के ग्रन्थ हैं यह। "ज्योतिसा" का अर्थ ही है प्रकाश ,आकाशीय पिंड 

वेदों का गत्यात्मक विज्ञान कहा गया है ज्योतिष को। वेदों की संरचनाओं में सृष्टि के समस्त ज्ञान को किस प्रकार से गूंथा गया है 

उसकी गुणवत्ता का बखान है ज्योतिष। 

With reference to consciousness ,Jyotish comprises the specific sets of  laws of Nature  that are engaged in promoting the quality of Rishi -the observer ,the witnessing quality   -within the Samhita level  of consciousness ,providing a structure to the eternally silent ,self referral ,self sufficient fully awake state of consciousness ,which is intimately personal to everyone .

अन्य वैदिक ग्रन्थ :


ज्ञान का अंतिम छोर कहा गया है वेदों को। लेकिन इनको बूझना उतना आसान भी नहीं रहा है। 

इन्हें समझने बूझने के लिए फिर और भी ग्रन्थ लिखे गए। वेदों के दायरे का कहीं भी अतिक्रमण 

नहीं करते हैं ये ग्रन्थ। ये तो इनके गूढ़ अर्थों को बूझने में सहायक के रूप में ही आये हैं। इनमें से 

प्रमुखतम ग्रन्थ हैं  :

(१)इतिहास और 

(२)पुराण 

उपनिषद इतिहास सम्मत हैं और पुराणों  को पांचवां  वेद ही कह दिया 

गया है। 

इतिहासपुराणं पंच्चम वेदानां वेदं (छान्दोग्य  उपनिषद ७. १. २ )

"Know the Itihas and Puranas to be the fifth ved "

इतिहास और पुराणों को पांचवा वेद ही जानो। इनको पढ़ने  से वेदों को 

समझने में आसानी होती 

है। 

इतिहास :


रामायण और महाभारत दो ही ग्रन्थ हैं जो इतिहास कहे गए हैं। ये भगवान् के दो बड़े अवतारों का बखान करते हैं। इनमें से एक रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी। इसमें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् राम की लीलाओं का   दिव्य वर्रण है।वास्तव में रामायण की रचना वाल्मीकि ने राम के इस धरा पर अवतरण से पहले ही कर दी थी। इन्हें अंतर दृष्टि  प्राप्त थी अनागत को देख लेने की।भविष्य दर्शन कर लेने की। 

संस्कृत भाषा में लिखे गए इस मूल ग्रन्थ में कुलमिलाकर २४ ,००० श्लोक हैं। सामाजिक जीवन में एक आदर्श बेटे ,दम्पति ,भाई ,राजा और पत्नी के कर्तव्यों का पाठ पढ़ाते स्त्रोत यहाँ मिलते हैं इस इतिहास में। 

इतर प्रांतीय भाषाओं में भी रामायण की रचना हुई है। ए. के. रामानुजन कृत थ्री हंड्रेड रामायना बहु -चर्चित रही है। लेकिन वाल्मीकि रामायण का स्थानापन्न बनी घर घर में पढ़ी जाने वाली "रामचरितमानस  "ज़िसकी  रचना संत तुलसीदास ने की थी। 

दूसरे बहुश्रुत ग्रन्थ महाभारत की रचना  स्वयं महर्षि वेद  व्यास ने की है। इसमें एक लाख श्लोक हैं। इसे विश्व की सबसे लम्बी कविता   माना जाता है।इसके केंद्र में हैं श्रीकृष्ण  की दिव्य लीलाएं। जीवन के हर चरण के  कर्तव्यों का उल्लेख करतीं हैं इसकी ऋचाएं। भक्ति का सही मार्ग भी रेखांकित करती है महाभारत। गीता इसी का एक अंश है। यह अर्जुन और कृष्ण के बीच हुआ  संवाद है, महाभारत युद्ध के ठीक पहले का जब दोनों ओर  की सेनाएं मोर्चा संभाल लेती हैं और युद्ध छिड़ने ही वाला है। आध्यात्मिक ज्ञान का अंतिम कोष है गीता। विश्व की तकरीबन हरेक भाषा में इसका अनुवाद हो चुका है। इस पर विज्ञ जनों ने अनेक टीकाएँ लिखी हैं। 

पुराण :

कुलमिलाकर अठारह पुराण हैं। इन सभी की रचना वेद व्यास जी ने ही की है। कुल चार लाख श्लोक हैं इनमें। इनमें भगवान् और उनके भक्त जनों  की लीलाओं का ही गायन है।दर्शन के ये मुख्यआधार हैं। सृष्टि की रचना ,आदि , मध्य और अंत का ज्ञान इनमें समाहित है तो सृष्टि के पुनर्जन्म की भी कथा कही गई है।  देवकुल का विस्तार(पूरी वंशवेळ ) यहाँ आपको  देखने को मिलेगा।संतों का भी वर्रण है। दिव्यप्रेम का शिखर प्रेमाभक्ति आपको यहीं मिलेगी। इनमें सबसे प्रमुख भागवत पुराण को माना गया है। इसे ही श्रीमद भागवतम भी कहा जाता है।यह वेदव्यास रचित आखिरी ग्रन्थ था इसके बाद उन्होंने किसी और ग्रन्थ की रचना नहीं की। 


विशेष :अगली क़िस्त  में पढ़िए -शाद दर्शन ,अन्य धर्मों 

के ग्रन्थों का सार 



संक्षेपण। 

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (06-10-2013) हे दुर्गा माता: चर्चा मंच-1390 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    --
    शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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