रविवार, 13 अक्टूबर 2013

अवध जहां जन्मे रघुराई, घर-घर गूंज उठी शहनाई।
ऋषियों की रक्षा कर प्रभु ने तारी अहिल्या माई,
सीता के संग ब्याह रचाकर अवध आये रघुराई।
वन-वन भटक किये जन रक्षा, मेटे सकल बुराई।
रावन की लंका को जीत्यो, दुंदुभि बजत बधाई।
मानवता की रक्षा कीन्हो, जय-जय श्री रघुराई।
विजयदशमी की ढेर सारी शुभकामनायें। यह पर्व सभी के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लेकर आये।

2 टिप्‍पणियां:

  1. अति सुन्दर भाव की सशक्त रचना गीतात्मक प्रस्तुति भाव की राग सदृश्य।

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  2. उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद वीरेन्द्र जी।

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