सोमवार, 11 नवंबर 2013

ग़ज़ल की ग़ज़ल...डा श्याम गुप्त ....

         ग़ज़ल की ग़ज़ल
शेर मतले का हो तो कुंवारी ग़ज़ल होती है |
हो काफिया ही जो नहीं,बेचारी ग़ज़ल होती है

और भी मतले हों, हुश्ने तारी ग़ज़ल होतीं है
हर शेर मतला हो हुश्ने-हजारी ग़ज़ल होती है

  
हो बहर में सुरताल लय में प्यारी ग़ज़ल होती है
सब कुछ हो कायदे में वो संवारी ग़ज़ल होती है            

हो दर्दे दिल की बात मनोहारी ग़ज़ल होती है,
मिलने का करें वायदा मुतदारी ग़ज़ल होती है ।

हो रदीफ़ काफिया नहीं नाकारी  ग़ज़ल होती है  ,
मतला बगैर हो ग़ज़ल वो मारी ग़ज़ल होती है

मतला भी मकता भी रदीफ़  काफिया भी हो,
सोची समझ के लिखे के सुधारी ग़ज़ल होती है

जो वार दूर तक करे वो  करारी ग़ज़ल होती है ,
छलनी हो दिल आशिक का शिकारी ग़ज़ल होती है

हर शेर एक भाव हो वो जारी ग़ज़ल होती है,
हर शेर नया अंदाज़ हो वो भारी ग़ज़ल होती है

मस्ती में कहदें झूम के गुदाज़कारी ग़ज़ल होती है,
उनसे तो जो कुछ भी कहें दिलदारी ग़ज़ल होती है

तू गाता चल यारकोई  कायदा  देख,
कुछ अपना ही अंदाज़ हो खुद्दारी ग़ज़ल होती है।


ग़ज़ल तो बसइक अंदाज़े बयाँ है श्याम,
 श्याम तो जो कहदेंवो ग़ज़ल होती है ||







 



4 टिप्‍पणियां:

  1. ग़ज़ल की ग़ज़ल
    शेर मतले का न हो तो कुंवारी ग़ज़ल होती है |
    हो काफिया ही जो नहीं,बेचारी ग़ज़ल होती है।

    बढ़िया गज़ल कहे , श्याम तो निहाल गज़ल होती ,

    शैर में शेर चला आये ,तो जंगल सी गज़ल होती है।

    लिखना हो शैर तो लिखें एस एच ए आई आर (shair)

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    1. कुछ अस्पष्ट सा है शर्माजी... यहाँ शैर और शेर का क्या अर्थ है .....स्पष्ट करें तो बात बने.....

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  2. बढ़िया गज़ल कहे , श्याम तो निहाल गज़ल होती है ,

    शैर में शेर चला आये ,तो जंगल सी गज़ल होती है।

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार को (13-11-2013) चर्चा मंच 1428 : केवल क्रीडा के लिए, मत करिए आखेट "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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