शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

दर्दों की लहरों के बीच---पथिकअनजाना -478 वीं पोस्ट





छलकते आंसू व चीखती हुई दर्दों की लहरों के बीच
फंसे इंसान को सकून भरा साहिल मिला जा कहाँ
जिसे मानकर मंजिल लडते रहे हैं ताउम्र वह यार
गमों दर्दों का खिलखिलाता मिला आशियाँ उसे वहाँ
ए  नसीब वालों न भेजे अपने होनहारों को करीब
जिधर रूके, बदनसीबी मिल उस से हैं खेलती वहाँ
पल्ले धन न था यारों को यारी टूटने का गम न था
कल्पित चरित्र  रख सचेत किया मित्रों की शान को
विगत सुकर्मों से हासिल ताज को संभाले व मान को
आश्रित साथ ले सकून खोजता है यहाँ बहरों के बीच
छलकते आंसू व चीखती हुई दर्दों की लहरों के बीच

 पथिक अनजाना
http://pathic64.blogspot.com

      

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