शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

गजल

जब से दौलत हमारा निशाना हुआ
तब से ये जिंदगी कैद खाना हुआ ।

पैसे के नाते रिश्‍ते दिखे जब यहां
अश्‍क में इश्‍क का डूब जाना हुआ ।

दुख के ना सुख के साथी यहां कोई है
मात्र दौलत से ही जो यराना हुआ ।

स्वार्थ में कुछ भी कर सकते है आदमी
उनका अंदाज अब कातिलाना हुआ ।

गैरो का ऊॅचा कद देखा जब आदमी
छाती में सांप का लोट जाना हुआ ।

रेत सा तप रहा बर्फ सा जम रहा
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ ।

जो खुदा सा इबादत करे पैसो का
या खुदा आपका मुस्कुराना हुआ ।

हाथ फैलाये आना औ जाना है
अब दो गज का ही तो आशियाना हुआ ।
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8 टिप्‍पणियां:

  1. अवश्य, अवसर देने के लिये धन्यवाद

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  2. आदरणीय शारूत्रीजी सादर धन्यवाद

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  3. जो खुदा सा इबादत करे पैसो का
    या खुदा आपका मुस्कुराना हुआ ।

    हाथ ।फैलाये आना औ जाना है
    अब दो गज का ही तो आशियाना हुआ ।

    बहुत सुंदर।

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