सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

लक्ष्मण रेखायें-----पथिक अनजाना ----488 वीं पोस्ट





लक्ष्मण  रेखायें-----पथिक अनजाना ----488 वीं पोस्ट
http://pathic64.blogspot.com
 लौ तो बेचारी किस्मत की मारी जल ही रही थी
कमरे की मेहमान खुश्बू से उसे प्यार हो गया
कैसे खुश्बू को ले आगोश में करे इजहार प्यार
बेफिक्र खुश्बू घूमे लौ लपके बुलाये उसे करीब
विवश लौ सीमाबंद खुश्बू सीमाहीन खेल रहीथी
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अभी     और  भी  -----

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