रविवार, 16 फ़रवरी 2014

क्या है कृष्ण का अर्थ ? कृष धातु का एक अर्थ है खेत जोतना ,दूसरा अर्थ है आकर्षित करना। कृष्ण का अर्थ है विश्व के प्राण ,उसकी आत्मा। कृष्ण का तीसरा अर्थ है वह तत्व जो सबके 'मैं पन ' में रहता है। मैं हूँ ,क्योंकि कृष्ण है।

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सन्दर्भ -सामिग्री :दबंग दुनिया /Special edition /ज़िंदगी ,मुम्बई रविवार १६ फरवरी २०१४

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सम्पूर्ण संसार के प्राण हैं कृष्ण 

हम सभी समय -समय पर द्वेष वैमनस्य ,क्रोध ,भय ,ईर्ष्या आदि के कारण दुखी होते हैं। जब हम दुखी होते हैं तब यह दुःख अपने तक ही सीमित नहीं रखते। हम औरों को भी दुखी बनाते हैं। जब कोई व्यक्ति दुखी होता है तो आसपास के सारे वातावरण को अप्रसन्न बना देता है ,व उसके सम्पर्क में आने वाले लोगों पर इसका असर होता है। सचमुच यह जीवन जीने का तरीका नहीं है। 

                                ----------------देवकीनन्दनजी 
महर्षि वेदव्यास 

पौराणिक -महाकाव्य युग की महान विभूति ,महाभारत ,अठारह पुराण , श्रीमद्भागवत ,ब्रह्मसूत्र मीमांसा जैसे अद्वितीय साहित्य दर्शन के प्रणेता वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग ३००० वर्ष ईसवी पूर्व हुआ था। वेदांत दर्शन ,अद्वैतवाद के संस्थापक वेदव्यास ऋषि पाराशर के पुत्र थे। पत्नी आरूणी से उत्पन्न इनके पुत्र थे महान बालयोगी शुकदेव। रामनगर के किले में और व्यास नगर में वेदव्यास का मंदिर है जहां माघ में प्रत्येक सोमवार मेला लगता है। 

गुरु पूर्णिमा का विशेष पर्व व्यासजी की जयंती के उपलक्ष में मनाया जाता है। पुराणों तथा महाभारत के रचियता महर्षि का मंदिर काशी से पांच मील की दूरी पर व्यासपुरी में विद्यमान है। महाराज काशी नरेश के रामनगर दुर्ग में भी पश्चिम भाग में व्यासेश्वर की मूर्ती विद्यमान है जिसे श्रृद्धालु छोटा वेदव्यास के नाम से जानते हैं। वेदव्यास की यह सबसे प्राचीन मूर्ती है। व्यासजी द्वारा काशी को शाप देने के कारण विश्वेश्वर ने व्यासजी को काशी से निष्काषित कर दिया था। तब व्यासजी लोलार्क मंदिर के आग्नेय कौण में गंगाजी के तट पर स्थित हुए। 

क्या है कृष्ण का अर्थ ? 

वे जो खींच लेते हैं ,वे जो प्रत्येक को अपनी ओर आकर्षित करते हैं ,जो सम्पूर्ण संसार के प्राण हैं -वही हैं कृष्ण। कृष्ण शब्द के अनेक  अर्थ हैं। 

कृष धातु का एक अर्थ है खेत जोतना ,दूसरा अर्थ है आकर्षित करना। कृष्ण  का अर्थ है विश्व के प्राण ,उसकी आत्मा। कृष्ण का तीसरा अर्थ है वह तत्व जो सबके 'मैं पन ' में रहता है। मैं हूँ ,क्योंकि कृष्ण है। मेरा अस्तित्व है ,क्योंकि कृष्ण का अस्तित्व है। अर्थात यदि कृष्ण नहीं हो तो मेरा अस्तित्व भी नहीं रहेगा। अर्थात यदि कृष्ण नहीं हों तो मेरा अस्तित्व भी नहीं होगा। मेरा अस्तित्व पूर्णतया कृष्ण पर निर्भर है। मेरा होना ही कृष्ण के होने का लक्षण या प्रमाण है।

 .......और राधा का अर्थ ?

बरसाने की राधा से गोकुल के कान्हा का प्रेम अद्भुत ,अलौकिक है। भगवती राधा भगवान कृष्ण की प्रेयसी और पराशक्ति हैं इसलिए श्री कृष्ण के नाम से पहले राधा का नाम लिया जाता है। श्रीकृष्ण का कहना है जहां भी राधा का नाम लिया जाता है वहाँ मैं पहुंच जाता हूँ। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि राधा नाम में राधा और कृष्ण दोनों समाये हुए हैं। 

'रा 'का अर्थ है राधिका और 'धा 'का अर्थ है धारण करने वाला यानी जिसने संसार को धारण कर रखा है यानी भगवान श्रीकृष्ण। इसे दूसरे  अर्थ में यूं भी समझ सकते हैं ,जिसमें धारण करने वाला रमण  करता है वह है राधा। इसलिए भगवान कहते हैं राधा नाम जपने वाला मेरे लिए आदरणीय और श्रेष्ठ है। कोई भक्त भले ही मेरी पूजा न करे लेकिन राधा की पूजा करे तो उसे मेरी पूजा का फल स्वत : ही मिल जाता है।कान्हा का ज़िक्र राधा के नाम के बिना अधूरा है।इन दोनों का प्रेम एक आदर्श है। इस प्रेम में राधा की पवित्रता और महानता का इसी से पता लगाया जा सकता है कि पूरी दुनिया इस प्रेमी जोड़े को राधे -कृष्ण के नाम से पुकारती है ,कोई कृष्ण राधे नहीं कहता। पूरा संसार राधे कृष्ण का मन्त्र ही जपता है।  


(ज़ारी .. .  )

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (18-02-2014) को "अक्ल का बंद हुआ दरवाज़ा" (चर्चा मंच-1527) पर भी होगी!
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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