मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

शान्ति के लिए भागवत

शान्ति के लिए भागवत 

भागवत कथा से मन का शुद्धिकरण होता है। इससे संशय दूर होता है और शान्ति एवं मुक्ति मिलती है। कथा की सार्थकता जब ही सिद्ध होती है जब इसे हम जीवन में व्यवहार में धारण कर निरंतर हरि स्मरण करते हुए अपने जीवन को आनंदमय ,मंगलमय बनाकर आत्म कल्याण करें। अन्यथा यह कथा केवल "मनोरंजन ",कानों के रस तक ही सीमित रह जायेगी। श्रीमद भागवत कथा श्रवण से जन्म जन्मान्तर के विकार नष्ट होकर प्राणी मात्र का लौकिक एवं आध्यात्मिक विकास होता है। जहां अन्य युगों में धर्म लाभ एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए कड़े प्रयास करने पड़ते हैं ,कलियुग में कथा सुनने मात्र से व्यक्ति भवसागर से पार हो जाता है। सोया हुआ ज्ञान वैराग्य कथा श्रवण से जागृत हो जाता है। कथा कल्प वृक्ष के समान है ,जिससे सभी इच्छाओं की पूर्ती की जा सकती है। 


इसलिए सुने कथा 

भागवतपुराण हिंदुओं (सनातनधर्मियों ,हिन्दु शब्द  का धर्म के रूप में कहीं भी किसी भी पुराण में उल्लेख नहीं है ,हिंदुस्तान में रहने वाली एक कौम का नाम हिन्दु  है )के अठारह पुराणों में से एक है। इसे श्रीमद्भागवत या केवल भागवत भी कहते हैं। इसका मुख्य विषय भक्तियोग है ,जिसमें श्रीकृष्ण को सभी देवों  का देव या स्वयं  भगवान के रूप में चित्रित किया गया है। 

ब्रह्म -परमात्मा -भगवान 

जिसमें एक साथ सब जगह होने का गुण है ,सीमित शक्तियां हैं वह ब्रह्म है। जिसका हमारे ,हम सभी के हृदय में वास है ,जो जन्म -जन्मान्तरों  से  हमारे कर्मों की किताब लिखता रहा है वही तटस्थ प्रेक्षक परमात्मा है जिसने हमें कर्म करने की पूर्ण स्वतंत्रता दी हुई है। 

भगवान अनंत गुणों से अपने पूरी सत्ता के साथ अनंत कोटि ब्रह्माण्डों में अनेक बार अवतरित होते हैं। कृष्ण जब अवतरित होते हैं तो साथ में बलराम (हलधर )भी होते हैं ,जब यही कृष्ण राम के रूप में अवतरित होते हैं तब इनके साथ लक्षमण ,भरत,शत्रुघ्न भी होते हैं। लार्ड आफ लार्ड्स हैं कृष्ण (भले महादेव को देवों  का देव कहा जाता है  लेकिन उनमें कृष्ण की ही शक्ति है ).सभी देवता कृष्ण का मंत्रिमंडल भर हैं।   

भगवान की विभिन्न कथाओं का सार श्रीमद भागवत मोक्षदायिनी  है। इसके श्रवण से परीक्षित(अभिमन्यु के पुत्र तथा पांडवों के प्रपौत्र ) को मोक्ष की प्राप्ति हुई और कलियुग में आज भी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देखने को मिलते हैं। श्रीमद्भागवत कथा सुनने से प्राणि  को मुक्ति प्राप्त होती है।सत्संग एवं कथा के माध्यम से मनुष्य भगवान् की शरण में पहुंचता है ,वरना वह इस संसार में आकर मोहमाया के चक्कर में पड़ जाता है इसीलिए मनुष्य को समय निकालकर श्रोमदभागवत कथा का श्रवण करना चाहिए। बच्चों को संस्कारवान बनाकर सत्संग कथा के लिए प्रेरित करें। कलियुग में भागवत  साक्षात हरि का रूप है इसे भगवान् का दर्ज़ा प्राप्त है। पावन हृदय से इसका स्मरण मात्र करने पर करोड़ों पुण्यों का फल प्राप्त होता है। इस कथा को सुनने के लिए देवी देवता भी तरसते हैं और दुर्लभ मानव प्राणि को ही इस कथा का श्रवण प्राप्त होता है। श्रीमद्भागवत कथा के श्रवण मात्र से ही प्राणि मात्र का कल्याण सम्भव है। इसलिए कल्याण हेतु सद्गुरु की पहचान कर उनका अनुकरण एवं निरंतर हरि स्मरण ,भागवत कथा श्रवण करने की ज़रुरत है। 

इस कलियुगी दुनिया का हर जीव सुख और शान्ति चाहता है लेकिन जिसका नाम लेने से ,जिसकी भक्ति करने से सुख, शान्ति मिलेगी उसे भूल जाता है और जब उसे भूल जायेगा तो सुख शान्ति कहाँ से मिलेगी ?जीवन का आधार है ,जीवन का सार है सर्वेश्वरी श्रीराधा रानी का नाम। राधारानी का नाम अगर जुबान पर रहे तो जीवन की सारी मुश्किलें ,सारी कठिनाइयां   स्वत : ही नष्ट हो जाएंगी। 
                       _______________________देवकीनंदन ठाकुर 

  1. Shreemad Bhagwat Katha (PUNE) Part-3 by Shri Devkinandan ...

    www.youtube.com/watch?v=NfOainnk...

    YouTube
    Jun 2, 2012 - Uploaded by Thakur Ji Mahraj
    Shrimad Bhagwat Katha, Satsang and Harinam, Ram Nam Sankirtan in Shri ... DEVKINANDAN THAKUR JI DAY 1 KOLKUTA 2013by Sewaram  ...
प्रभु के स्मरण मात्र से ही लोक -परलोक सुधर जाते हैं। इस मृत्यु  लोक से कुछ भी साथ  नहीं जाता ,अगर

जाता है तो केवल कर्म का फल। भागवत की कथा का वाचन और श्रवण दोनों ही फलदायी हैं। प्रभु की स्तुति


,सत्संग और कर्म ही साथ रहते हैं।इसलिए जितना भी  कर सको और उनका नाम जप सको उतना अधिक

लाभकारी है। प्रभु की कथा श्रवण करने और उनके स्मरण से अपना लोक और परलोक सुधारें ,राधे राधे का

जाप करें।


                   --------------------देवकीनंदन ठाकुर



कृष्ण यानी आकर्षित करने वाला  

श्रद्धा  से पुकारने पर भगवान दौड़े चले आते हैं।  जिस प्रकार गज की पुकार पर भगवान श्री नारायण दौड़े -दौड़े आये ,उसी प्रकार श्रद्धा से यदि कोई उन्हें पुकारता है तो वे दौड़े चले आते हैं।

                          _____________             देवकीनंदन ठाकुर

न स गर्भ गता भूया : मुक्ति भागी न संशय :

कौशिकी संहिता में लिखा है कि श्रीमद्भागवत की कथा ही अमर कथा है। भगवान शिव ने पार्वती को अमर कथा सुनाई ,ये तो हम बार बार सुनते रहते हैं , पढ़ते रहते हैं . . लेकिन अमर कथा कौन सी है ......... तो वहाँ लिखा है कि श्रीमद्भागवत की कथा ही अमर कथा है ,और भागवत में लिखा है ......... न स गर्भ गता भूया : मुक्ति भागी न संशय : अर्थात जिसने भागवत की कथा श्रद्धा से सुन ली वह माँ के गर्भ में दोबारा नहीं आएगा। भगवान कृष्ण चाहते थे कि यह कथा मेरे भक्तों तक पहुँच जाए। भगवान शिव चाहते थे कि पार्वती जी और शिव के बीच में रहे....... और भगवान कृष्ण  जानते थे कि कलियुग में लोग साधना तो कर नहीं पायेंगें और भगवान तो  सबका भला चाहते हैं ....... . भगवान कृष्ण ने चाहा कि ये कथा मेरे भक्तों तक पहुँच जाए ,तो भगवान शुकदेव को तोते के रूप में ,बल्कि अंडे के रूप में वहाँ उपस्थित किया ...........तो विगलित  अंडे के रूप में भगवान् शुकदेव वहाँ थे। शिव समाधि में पहुंचे और कथा सुनानी प्रारम्भ की। 

यह शरीर छूटने के बाद वह वहाँ पहुँच जाएगा ,जहां से दोबारा फिर जन्म नहीं  लेना पड़ेगा ,सदैव आनंद रहेगा। शुकदेव भगवान भी यह कथा सुनने लगते हैं ,पार्वतीजी सुनती जा रही हैं ,भगवान शंकर के नेत्र बंद थे ,समाधि में ......योग में स्थित होकर सुना रहे थे। भागवत समाधि भाषा कहलाती है ,समाधि की भाषा है। सभी लोग इसका अर्थ जल्दी नहीं समझ पाते......अच्छा !पार्वती अम्बा हूँ !हूँ ! करती रहीं और दसवां स्कंध समाप्त हुआ तो नींद आ गई उन्हें। शुकदेव भगवान हूँ !हूँ !करते रहे और बारहवें स्कंध के बाद जब आँख खुली ........पार्वतीजी सो रहीं थीं। हूँ ! हूँ ! कौन कर रहा था ?पार्वती से पूछा तो उन्होंने कहा प्रभु दशम स्कंध की समाप्ति तक मैंने बहुत सावधान होकर सुना .......फिर मेरी आँख लग गई। पर हूँ !हूँ !कौन कर रहा था   फिर देखा तो शुकदेव तोते के रूप में .......शंकर ने चाहा इसको मार दें !तो शंकर ने त्रिशूल उठाया ,और  चला दिया ,शुकदेवजी वहाँ से भागे और वेदव्यासजी की पत्नी पिंगला के पेट में चले गए ,वे बाल सुखा रहीं थीं ,उसी समय उनको जम्हाई आई। 

पार्वतीजी बाद में बोलीं भगवान शंकर से ......प्रभु ,इसीलिए तो आपको लोग भोला शंकर कहते हैं एक ओर  तो  आप कहते हो जो भागवत की कथा सुन ले वो अमर  हो जाता है ......औऱ दूसरी ओर आप शुकदेव को मारना चाहते हो ......जब वह अमर कथा सुन ही चुका है तो मरेगा कैसे !

ऐसा मान लो कि भगवान कृष्ण का ही संकल्प है। बारह वर्ष तक शुकदेव जी गर्भ में रहे ,ऐसा शास्त्र कहते हैं ,और वहीँ भगवत चिंतन ,आत्मचिंतन करते रहे . व्यासजी ने प्रार्थना की ,कौन ऐसा योगी ,पत्नी के गर्भ में आगया जो बाहर आना ही नहीं चाहता। 

शुकदेव भगवान ने  कहा मैं बाहर तब आऊंगा जब मुझे यह वचन मिलजाए कि भगवान की  माया मुझपर हावी नहीं होगी। (हम सब माया के ही तो दास हैं जबकि माया भगवान की दासी है ,उनकी बहिरंगा शक्ति है एक्सटर्नल एनर्जी है ). जब शुकदेव भगवान प्रकट हुए और थोड़े समय के बाद वह जवान हुए .....इतने सुन्दर थे ,भगवान कृष्ण का चिंतन करते -करते  स्वयं कृष्ण ही हो गए थे। भागवत में उनके स्वरूप का वर्णन किया गया है। 

श्रीमद्भागवत का अर्थ   

श्रीमद्भागवत में प्रयुक्त शब्द श्री का अर्थ है -ऐश्वर्य संपन्न भगवान ,मद शब्द स्वयं भगवान ने अपने लिए मेरा के अर्थ में प्रयोग किया है और भागवत शब्द में पञ्च महाभूतों का संकेत है। 

भागवत =भ.अ.ग.व. त.=भ. का अभिप्राय भूमि से ,अ. का अग्नि से ,ग का गगन (आकाश )से ,व. का वायु से और त. का तोर अर्थात जल से है। इसीप्रकार भगवान में प्रयुक्त शब्दों का अभिप्राय है इसमें न शब्द का अर्थ नीर अर्थात जल है। इस प्रकार भगवान से आशय उस शक्ति से है जो पञ्च महाभूतों से निर्मित सृष्टि का नियंता है और श्रीमद्भागवत से आशय उस सर्वशक्ति संपन्न द्वारा पञ्च महाभूतों के कल्याण हेतु कहे गए वचनामृत से है। 

भ शब्द भजन हेतु है। क शब्द कर्म का प्रतीक है। कर्म दो प्रकार के  होते  हैं। सकाम और निष्काम। इसमें सिर्फ निष्काम कर्म की ही महत्ता  है अत : क शब्द आधा ही लिया गया है और ति शब्द त्याग की भावना दर्शाता है। अस्तु निष्काम करते हुए त्याग की भावना से जो भजन किया जाता है  उसे ही भक्ति कहते हैं और भक्ति ही परमात्मा अथवा भगवान को प्राप्त करने का माध्यम है। 

जिस कथा को हम श्रवण करते हैं हमें ज्ञात होना चाहिए कि देवतागण भी इस कथा को श्रवण करने पृथ्वी पर आये थे ,जब शुकजी महाराज राजा परीक्षित को कथा श्रवण करा रहे थे उस समय देवता अमृत लेकर आये और शुकजी महाराज से कहा कि ये अमृत आप राजा परीक्षित को पान करा दीजिये और इसके बदले में कथा का पान हमें करा दीजिये। 

 
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सब कुछ कृष्ण का 

कृष्ण कहते हैं '-जो कुछ भी हम स्पर्श करते हैं ,जो भी हम इस विश्व में देखते हैं -वह सब कुछ कृष्ण का ही है। तुम अपनी इच्छाओं और वृत्तियों के अनुसार उनसे जो भी चाहते हो ,तुम पाओगे।तुम जो धन मांगते हो तुम धन पाओगे ,किन्तु उनको नहीं पाओगे ,क्योंकि तुम धन मांगते हो उनको नहीं। तुम उनसे यदि नाम और यश मांगोगे तो वह भी मिलेगा ,किन्तु वह नहीं मिलेंगे ,क्योंकि तुम उनको नहीं मांगते हो। तुम उनके द्वारा कुछ मांगते हो। यदि तुम चाहते हो कि वे तुम्हारे शत्रुओं को नष्ट  कर दें और तुम धर्म के पथ पर हो ,तुम्हारी मांग उचित है तो वे तुम्हारे शत्रुओं का नाश कर देंगे किन्तु तुम उन्हें नहीं पाओगे ,क्योंकि कि तुम उन्हें नहीं मांगते हो। तुम यदि उनसे मुक्ति और मोक्ष मांगते हो और यदि तुम योग्य पात्र हो तो तुम उनसे प्राप्त कर लोगे ,किन्तु उनको नहीं पा सकोगे क्योंकि तुमने उन्हें नहीं माँगा। 

अत : एक बुद्धिमान साधक कहेगा -'मैं तुम्हें ही चाहता हूँ ,और किसी को नहीं चाहता और मैं तुम्हें क्यों चाहता हूँ ?इसलिए नहीं कि तुम्हारी उपस्थिति मुझे सुख देगी ,बल्कि इसलिए कि तुम्हारी उपस्थिति मुझे तुम्हारी सेवा का मौक़ा देगी। 

बुद्धिमान साधक कहेगा ,मैं तुमसे कुछ नहीं चाहता। तुमसे ही सब कुछ मिलता है ,इसलिए तुम ही मेरे बन जाओ। किन्तु किसलिए मेरे बनो ?स्वयं आनंदित होने के लिए नहीं ,बल्कि उन्हें आनन्द देने के लिए। जो इस प्रकार परम पुरुष को आनंद देना चाहते हैं ,वही संस्कृत में गोप कहे जाते हैं। 

गोपायते य : स : गोप :   

जो जन जन को आनंद देना ही अपना   कर्तव्य समझते हैं  ,वह गोप हैं , न कि वह जो गाय पालते हैं। 

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्थैव  भजाम्यहम् 

जो भी मुझसे जो माँगता है ,मैं उसे वह देता हूँ। मेरा यह  कर्तव्य है.यह तुम पर निर्भर करता कि तुम अपनी मानसिक वृत्तियों या आवश्यकता के अनुसार मुझसे कुछ मांगते हो। किन्तु अर्जुन एक बात याद रखो ,मेरे द्वारा बनाये मार्ग का ही अंतत: बिना किसी अपवाद के सबको अनुगमन करना ही होगा। कोई इस मार्ग की अवहेलना न कर सकेगा। सबको मेरे ही चारों ओर  घूमना है -चाहे वह छोटा व्यास(घेरा ) बनाकर घूमे अथवा बड़ा व्यास बनाकर घूमे। अन्य कोई विकल्प नहीं। 


कलिजुग केवल हरि गुन  गाहा,

गावत नर पावहिं भव थाहा।  

भगवान विष्णु का एक नाम हरि  भी है। इस नाम का बड़ा ही गूढ़ अर्थ है। 
हरि वह है जो हर पाप को ,कष्ट को हर लेता है। हर भगवान शिव का नाम है  यानी हरि में हर भी समाये हुए हैं। इसलिए हरि नाम का जप करने वाले पर एक साथ भगवान् विष्णु और शिव की कृपा बनी रहती है। भगवान शिव और विष्णु दोनों कहते हैं -जो हरि को नहीं भजता वह मेरा प्रिय कभी नहीं हो सकता। पद्मपुराण में लिखा है जो व्यक्ति हरि नाम का जप करता है उसकी मुक्ति निश्चित है। रामचरितमानस में तुलसीदासजी कहते हैं 

:कलिजुग केवल हरि गुन गाहा   ,

गावत नर पावहिं भव थाहा। 

यानी कलियुग में जो व्यक्ति हरि नाम का जप करता है वह भव सागर में डूबता नहीं है।  

संसार की  उत्पत्ति ॐ से 

शास्त्रों और पुराणों का मानना है कि संसार की उत्पत्ति ॐ से हुई है। ॐ ब्रह्म की  ध्वनि  है.इस शब्द में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का रहस्य छिपा हुआ है इसलिए मन्त्रों के उच्चारण से पहले ॐ का जप किया जाता है। 

नियमित  ॐ का जप करने से स्मरण शक्ति एवं स्वास्थ्य दोनों ही बेहतर रहता है। ॐ का जप करने वाले व्यक्ति के आस -पास नकारात्मक ऊर्जा का आगमन नहीं होता है। ऐसा व्यक्ति परब्रह्म की कृपा का पात्र होता है। 

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http://epaper.dabangdunia.co/index1.php?postingdate=02/16/2014&city=Mumbai

सन्दर्भ -सामिग्री :दबंग दुनिया /Special edition /ज़िंदगी ,मुम्बई रविवार १६ फरवरी २०१४

www.dabangdunia.co

सम्पूर्ण संसार के प्राण हैं कृष्ण 

हम सभी समय -समय पर द्वेष वैमनस्य ,क्रोध ,भय ,ईर्ष्या आदि के कारण दुखी होते हैं। जब हम दुखी होते हैं तब यह दुःख अपने तक ही सीमित नहीं रखते। हम औरों को भी दुखी बनाते हैं। जब कोई व्यक्ति दुखी होता है तो आसपास के सारे वातावरण को अप्रसन्न बना देता है ,व उसके सम्पर्क में आने वाले लोगों पर इसका असर होता है। सचमुच यह जीवन जीने का तरीका नहीं है। 

                                ----------------देवकीनन्दनजी 
महर्षि वेदव्यास 

पौराणिक -महाकाव्य युग की महान विभूति ,महाभारत ,अठारह पुराण , श्रीमद्भागवत ,ब्रह्मसूत्र मीमांसा जैसे अद्वितीय साहित्य दर्शन के प्रणेता वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग ३००० वर्ष ईसवी पूर्व हुआ था। वेदांत दर्शन ,अद्वैतवाद के संस्थापक वेदव्यास ऋषि पाराशर के पुत्र थे। पत्नी आरूणी से उत्पन्न इनके पुत्र थे महान बालयोगी शुकदेव। रामनगर के किले में और व्यास नगर में वेदव्यास का मंदिर है जहां माघ में प्रत्येक सोमवार मेला लगता है। 

गुरु पूर्णिमा का विशेष पर्व व्यासजी की जयंती के उपलक्ष में मनाया जाता है। पुराणों तथा महाभारत के रचियता महर्षि का मंदिर काशी से पांच मील की दूरी पर व्यासपुरी में विद्यमान है। महाराज काशी नरेश के रामनगर दुर्ग में भी पश्चिम भाग में व्यासेश्वर की मूर्ती विद्यमान है जिसे श्रृद्धालु छोटा वेदव्यास के नाम से जानते हैं। वेदव्यास की यह सबसे प्राचीन मूर्ती है। व्यासजी द्वारा काशी को शाप देने के कारण विश्वेश्वर ने व्यासजी को काशी से निष्काषित कर दिया था। तब व्यासजी लोलार्क मंदिर के आग्नेय कौण में गंगाजी के तट पर स्थित हुए। 

क्या है कृष्ण का अर्थ ? 

वे जो खींच लेते हैं ,वे जो प्रत्येक को अपनी ओर आकर्षित करते हैं ,जो सम्पूर्ण संसार के प्राण हैं -वही हैं कृष्ण। कृष्ण शब्द के अनेक  अर्थ हैं। 

कृष धातु का एक अर्थ है खेत जोतना ,दूसरा अर्थ है आकर्षित करना। कृष्ण  का अर्थ है विश्व के प्राण ,उसकी आत्मा। कृष्ण का तीसरा अर्थ है वह तत्व जो सबके 'मैं पन ' में रहता है। मैं हूँ ,क्योंकि कृष्ण है। मेरा अस्तित्व है ,क्योंकि कृष्ण का अस्तित्व है। अर्थात यदि कृष्ण नहीं हो तो मेरा अस्तित्व भी नहीं रहेगा। अर्थात यदि कृष्ण नहीं हों तो मेरा अस्तित्व भी नहीं होगा। मेरा अस्तित्व पूर्णतया कृष्ण पर निर्भर है। मेरा होना ही कृष्ण के होने का लक्षण या प्रमाण है। 

.......और राधा का अर्थ ?

बरसाने की राधा से गोकुल के कान्हा का प्रेम अद्भुत ,अलौकिक है। भगवती राधा भगवान कृष्ण की प्रेयसी और पराशक्ति हैं इसलिए श्री कृष्ण के नाम से पहले राधा का नाम लिया जाता है। श्रीकृष्ण का कहना है जहां भी राधा का नाम लिया जाता है वहाँ मैं पहुंच जाता हूँ। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि राधा नाम में राधा और कृष्ण दोनों समाये हुए हैं। 

'रा 'का अर्थ है राधिका और 'धा 'का अर्थ है धारण करने वाला यानी जिसने संसार को धारण कर रखा है यानी भगवान श्रीकृष्ण। इसे दूसरे  अर्थ में यूं भी समझ सकते हैं ,जिसमें धारण करने वाला रमण  करता है वह है राधा। इसलिए भगवान कहते हैं राधा नाम जपने वाला मेरे लिए आदरणीय और श्रेष्ठ है। कोई भक्त भले ही मेरी पूजा न करे लेकिन राधा की पूजा करे तो उसे मेरी पूजा का फल स्वत : ही मिल जाता है।कान्हा का ज़िक्र राधा के नाम के बिना अधूरा है।इन दोनों का प्रेम एक आदर्श है। इस प्रेम में राधा की पवित्रता और महानता का इसी से पता लगाया जा सकता है कि पूरी दुनिया इस प्रेमी जोड़े को राधे -कृष्ण के नाम से पुकारती है ,कोई कृष्ण राधे नहीं कहता। पूरा संसार राधे कृष्ण का मन्त्र ही जपता है।  





      

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