रविवार, 2 मार्च 2014

किस दर्द से—पथिकअनजाना—503




किस दर्द से—पथिकअनजाना—503
खुदाई कयानात को मानवीय शरीर में रची
शकुनी बिसात को मात्र खिलौना समझें
भलाई यही खुद को छोडें  लहरों के सहारे
इनके इरादे क्या हैं होंगे इंसा समझे
लहरों को साहिल की ओर नही मोड सकते
इंसा क्या देवों के हाथ नही मोहरे चलना
फैंक के कंकड क्षणिक वृत बना सकते हो
अपनी चालों से क्षणिक सुख पा सकते हो
कहानी की अदायें संवाद नही मिटा सकते
चाहो अगली कथा इच्छानुसार बना सकते
विचारें क्यों नही हैं मोहरों के कदम थमते
तेरी हर चाल पर नजर रखता हैं वो खुदा

किस दर्द से जुडते व किस से होगे तुम जुदा
http://pathic64.blogspot.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें