शनिवार, 15 मार्च 2014

सिखाया अनुभवों ने—पथिकअनजाना—516 वीं पोस्ट




सिखाया अनुभवों ने क्षणिक प्यार तो दो
मेरे यार तुम एतबार बच्चों पर करो
उनको जीवन पथ पर चलाने हेतू तुम
सच्चे मार्गदर्शक सचेतक जरूर बनो
ध्यान रखो हो तुम्हारा अन्तिम फैसला
किसी प्रतिफल की आशा करना कभी
मैंने पहले लिखा हैं निराशा की जननी
सदा से आपकी झूठी आशा ही तो रही हैं
आशाओं की कब्र पर परचम निराशा के
तले इंसान सब्जबाग में सैर करता हैं
खुदा को भक्ति की आशा इंसा से होती हैं
इंसा काटना चाहे अभयदान की खेती को
व्यापार दोनों करें तो परिवार कैसे बचेगा
अनेक खुदा व शांति उपलब्ध केन्द्र सजे
निराशा नही तो केन्द्रों की क्या वजह हैं?
पथिक अनजाना



1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (16-03-2014) को "रंगों के पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा मंच-1553) पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    रंगों के पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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