शनिवार, 15 मार्च 2014

एक गीत : छेड़ गईं फागुनी हवाएं.....

आ0 मित्रो !

आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ......

इस अवसर पर एक गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ

होली गीत 

छेड़ गईं फागुनी हवाएँ
रंग चलो प्यार का लगाएँ

आई है कान्हा की टोली
राधा संग खेलन को होरी
" मोड़ ना कलाई  कन्हैया
काहे को करता बरजोरी "
ध्यान रहे होली में इतना मर्यादाएँ न टूट जाएँ
रंग चलो प्यार का लगाएँ...............

देख रही दुनिया है सारी
कुछ तो शर्म कर अरे मुरारी
लाख पड़े चाहे तू पईंयाँ
मैं न बनूँ रे कभी तुम्हारी
लोग कभी नाम मेरा लेंगे ,नाम तेरा साथ में लगाएँ
रंग चलो प्यार का लगाएँ............

मन की जो गाँठे ना खोली
काहे की, कैसी फिर होली
दिल से जो दिल ना मिल पाया
फीकी है स्वागत की बोली
रूठ गया अपना जो कोई ,आज चलो मिल के सब मनायें
रंग चलो प्यार का लगाएँ.........

आया है होली का  मौसम
तुम भी जो आ जाते,प्रियतम !
भर लेती खुशियों से आँचल
सपनों को मिल जात हमदम
रंग प्रीत का प्रिये लगा दो, उम्र भर जिसे छुड़ा न पाएँ
रंग चलो प्यार का लगाएँ.........................

-आनन्द.पाठक
09413395592

2 टिप्‍पणियां:

  1. आ0 कुलदीप जी
    रचना को अपने मंच पर लगाने और चर्चा करने का बहुत बहुत धन्यवाद
    बेहतर होता कि रचनाओ पे चर्चा/समीक्षा/आलोचना होती बज़ाय इस के कि मात्र लिन्क लगा दिया जाय
    विचार कीजियेगा\ सादर
    आनन्द.पाठक
    09413395592

    जवाब देंहटाएं
  2. आ0 शास्त्री जी
    रचना को अपने मंच पर लगाने और चर्चा करने का बहुत बहुत धन्यवाद
    बेहतर होता कि रचनाओ पे चर्चा/समीक्षा/आलोचना होती बज़ाय इस के कि मात्र लिन्क लगा दिया जाय
    विचार कीजियेगा\ सादर
    आनन्द.पाठक
    09413395592

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