सोमवार, 19 मई 2014

परचम लहराते देखते—पथिक अनजाना---606 वीं पोस्ट





जाने क्यों जमाने की सोच सदैव अलग रही हैं

हमारे प्रति तो रवैया सदा ही विपरित रहा हैं
अन्य तरीकों से तो कभी होती पूंछ सीधी नही
अक्ल नही मौके कीतलाश चापलूसी काम की हैं
शायद वे भारी भूल में हैं जो अतिविश्वास भरे
परचम लहराते देखते तमाशा उनके खैरख्वाह हैं
पछताते हैं व साथी लोग सिर धुनते रह जाते हैं
पथिकअनजाना


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें