मंगलवार, 17 जून 2014

देवभूमि की कहानी


 उत्तराखंड़ की त्रासदी को यूं तो एक साल हो गया। लेकिन वहाँ रहने वालों व अपनों को खोने वालों की आँखे आज भी नम हैं।यह शब्द सुमन उनके लिए।


    
(1)लाशों पर आंकडों की सियासत ।
लाचार हुए उत्तराखंड़ के महावत ।
देवभूमि की कहानी, लोचनों से बहता पानी ।
न नैनों में नीर इनके, न दिल में पीर इनके ।।
धरती माँ की चित्कार हैं, बादल भी नराज़ है ।
पर्वतराज घायल हैं, गंगा, जमुना उफान हैं ।
दुखों के पहाड़ पर,आँसुओं का समंदर हैं ।
अपनों को खोने का दर्द, अश्कों की निशानियां
मौत से जुझने की अनकही कहानियां ।
शवों के अम्बार पर, गिध्दों की हैं नजर ।
जिन रहनुमाओं सौपी थी जिम्मेदारियां ।
हवा हवाई बाते इनकी, हवा हवाई यात्राएं ।
इस त्रासदी पर सियासी गंभीर इतने ।
संवेदनाएं शुन्य हैं, हृदय हैं पाषाण इनके ।
न नैनों में नीर इनके, न दिल में पीर इनके ।।
(2)मृत्यु को भी मात देकर,अपनो को जो खो के लोटें
चक्षुओं(आँख) में अश्रुओं (अश्क) के सैलाब रोकें ।
ढांढस बधाएं उनको कैसे, पुत्र लोटे माताएं खोके ।
माँओं के आंचल सुने,बहनों के छुटें राँखी के रिस्ते ।
भाई की कलाई के धागें हैं टूटे ।
बाप की बाहों में प्राण छोड गया बेटा ।
मांग से मिट गई सिदूंर रेखा ।
जलमग्न हो गए हैं पूरे के पूरे परिवार जिनके ।  
नैनों में नीर इनके, दिल में पीर इनके ।।
(3)प्रलयकारी मंजर की खौफनाक रिचाएं  हैं ।
तवाही से सहमें हैं लोग, अंतहिन वृथाएं हैं ।
अपनों से बिछड़नें की अनगिनत वैदनाएं हैं ।
अपनों की तलाश में पथराईं आँखें हैं ।
भविष्य की चिंताएं हैं, दिशाहिन दिशाएं हैं ।
पूरें हिन्दुस्तान के, आम और खास के ।
हाथों में दवाएं हैं, होठों पे दुआएं हैं ।
शोक में डुबें हैं पूरें के पूरें परिवार जिनके ।
नैनों में नीर इनके, दिल में पीर इनके ।।
(4)सिने पर गोली खाने वालों की कथाएं ।
शौर्य की गाथाएं, अब हम तुमें क्या सुनाएं ।
प्राकृति हुईं प्रचड़, मेरूदण्ड बन गए अखंड़ ।
जिनके आगे काल की चाल भी खंड़-खंड़ ।
मौसम जब बन गया हैवान,
बन के खडें हो गए चट्टान ।
आपके ही करकमलों का प्रताप हैं ।  
जिंदा हैं आशिष्(आशीर्वाद देने वाले हाथ) गुजती किलकारियां ।
जीवन की रेखाएं अंकित कर दी यमराज के कपाट पे ।
हौसलों के आगें हारती बधाएं इनके ।
नैनों में नीर इनके, दिल में पीर इनके ।।
                  तरूण कुमार `सावन
                    लेखक व कवि
            

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