बुधवार, 26 नवंबर 2014

अब गाँधी कहाँ रहे हैं ....

पपीहे ने एक दिन
चाँद से पूछा
क्या ये चांदनी तुम्हारी है
चाँद ने सत्य का मार्ग अपनाया
कहा .....नहीं ये सूर्य का परावर्तन है
पपीहे ने गीत रोक दिया
चाँद पर इल्जाम लगा दिया
क्यों मुझे मंत्रमुग्ध बनाया
अब अगर चाँद चाहता तो
झूठ भी बोल सकता था
स्वार्थी होता तो
भ्रम को चला सकता था
आज चाँद खुश है
कि उसने झूठ नहीं बोला
और अब गाँधी कहाँ रहे हैं .......
               ..........मोहन सेठी

(परावर्तन=Reflection)

5 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें

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  2. गाँधी की जरूरत है भी किसे अब ? अब तो गाँधी की जगह खाली स्थान भरो हो चुका है ।

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  3. Dilbag जी आभार आप का मेरी इस रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिये ....मंगलकामनाएँ

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