रविवार, 7 दिसंबर 2014

जीवन चक्रव्यहू....


चौराहे पे दोड़ रहा हूँ
मगर ये चोराहा अजीब है
कोई सड़क नहीं निकलती यहाँ से
सिर्फ़ गोलचक्कर के चारों तरफ
दोड़ सकते हो
मगर कब तक ...
क्या माएने है इसके
कि चक्कर लगाते रहो
मंजिलें अगर पानी हैं
तो रास्ते कहाँ है
अगर रास्ते ही नहीं तो
मंजिल कहाँ है
जब दोनों ही नहीं तो
गोल गोल दोड़ने से क्या
क्या जीवन चक्रव्यहू है
तो फिर अभिमन्यु कहाँ है ....
                    ............इंतज़ार


2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (08-12-2014) को "FDI की जरुरत भारत को नही है" (चर्चा-1821) पर भी होगी।
    --
    सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. शास्त्री जी बहुत धन्यवाद् आपका मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिये .....सादर

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