हे सुख सागर दीन सखा प्रभु,
नाथन के तुम नाथ कहाते।
पाप बढ़े जग में जब कातर,
मेटि अधर्महि धर्म जगाते ।।
भक्तन के सुन टेर सदा प्रभु,
छोड़शेष रमा तुम धाते ।
धर्म बचावन को जग में प्रभु,
ले अवतार सदा तुम आते ।।1।। धर्म बचावन को जग में प्रभु ........
सीख तपो बल का प्रभु देवन
सृििष्टहि आदि सनन्दन आते ।
नारद के अवतार लिये प्रभु
भक्ति प्रभाव सबे बतलाते ।।
दत्त बने कपिलेश बने प्रभु,
ले नर और नरायण आते ।
आप कई अवतार लिये प्रभु,
भक्तन को सद मार्ग दिखाते ।।2।। धर्म बचावन को जग में प्रभु .......
ले हिरणाक्ष हरे महि को जब,
दारूण कशष्ट सभी जन पाते ।
देव सभी कर जोर तभी प्रभु,
गा गुण गानहि टेर लगाते ।।
ले अवतार वराह तभी तुम,
दैत्य पछाड़त मार गिराते ।
लेत उबार धरा तुम तो प्रभु,
सृष्टि धुरी फिर देत चलाते ।।3।। धर्म बचावन को जग में प्रभु ........
ठान लिये प्रतिशोधहि लेवन,
दैत्य हिरण्य किये बहु त्रासे ।
श्रीहरि नाम किये प्रतिबंधित,
यज्ञहि को बल पूर्वक मेटे ।।
त्रास बढ़े तब सृष्टिन रोवत,
आपहि श्री प्रहलाद पठाते ।
ताहि पिछे नरसिंग बने प्रभु,
मार हिरण्यहि पाप मिटाते ।।4।। धर्म बचावन को जग में प्रभु ........
लोकहि डूब रही जब चाक्षुश, चाक्षुशः- एक मनवन्तर का नाम
सागर में सब लोक समाते ।
नीरहि नीर दिखे सब ओरहि,
सृष्टिन कालहि गाल समाते ।।
ले मछली अवतार तभी प्रभु,
सागर मध्यहि तैरत आते ।
धर्महि बीज धरे तुम नावहि,
सृष्टिन में तब धर्म बचाते ।।5।। धर्म बचावन को जग में प्रभु ........
सागर मंथन काज करे जब,
दानव देवन संगहि आते ।
वासुकि नागहि नेति खैचत
ले मदराचल सिंधु डुबोते ।।
बारहि बार मथे मदराचल,
सागर ही महि जाय समाते ।
कच्छप के अवतार लिये प्रभु,
ले मदराचल पीठ उठाते ।।6।। धर्म बचावन को जग में प्रभु ........
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है निकलेे जब दिव्य सुधा घट,
देख सुरासुर है ललचाते ।
छेड़त लूटत धावत भागत,
दैत्य सुधा घट लूट भगाते ।।
पार नही जब देवन पावत
टेर लगा प्रभु आप बुलाते ।
मोहनि के अवतार लिये प्रभु
देव सुधा तुम पान कराते ।।7।। धर्म बचावन को जग में प्रभु ........
तीनहु लोकहि जीत जबे बलि
अश्वहि मेघहि यज्ञ कराते ।
वामन के अवतार लिये प्रभु
यज्ञहि मंडप में तुम आते ।।
मांग किये पग तीन धरा तुम
रूप विराट धरे जग व्यापे ।
दो पग में धरनी नभ नापत,
ले बलि को हि पताल पठाते ।।8।। धर्म बचावन को जग में प्रभु ........
रावण पाप बढ़े जब व्यापक
देव धरा सब व्याकुल रोते ।
दारूण त्राहि करे जब देवन,
राम धनुर्धर आपहि आते ।।
वानर भालु लिये प्रभु संगहि,
रावण को तुम मार गिराते ।
मानव के मरजाद रचे प्रभु,
मानव को तुम कर्म सिखाते ।।9।। धर्म बचावन को जग में प्रभु ........
राक्षस कंस डहे जब द्वापर
लोग सभी अति कश्टहि पाते ।
देव मुनी जब टेर लगावत,
श्याम मनोहर हो तुम आते ।।
बाल चरित्र किये अति पावन,
ले मुरली मुख धेनु चराते ।
आपहि माखन चोर कहावत,
गोपन ग्वालिन को हरशाते ।।10।।धर्म बचावन को जग में प्रभु ........
प्रेम सुधा ब्रज में बरसावत
ग्वालन संगहि रास रचाते ।
पाप मिटावन कंसहि मारत
धर्म बचावन षंख बजाते ।।
अर्जुन के रथ हाकत आपहि,
ज्ञान सुधा प्रभु पान कराते ।।11।।धर्म बचावन को जग में प्रभु .
-रमेशकुमार सिंह
चौहाननवागढ़जिला-बेमेतरा छ.ग