बुधवार, 18 मार्च 2015

बापू - फिर मत आना

बापू - फिर मत आना

तूफान से निकाल कर लाई
तुम्हारी वह कश्ती,
जो तुम हमें सौंप गए थे,
हम सँभाल नहीं पाए.

और वनप्राणी - रक्षण संस्था ने,
तेरे बंदर छीनकर
जबरन जंगल में छोड़ दिए,
बोले – जंगली जानवर पालना,
पशुओं पर हिंसा है,
उनकी स्वच्छंदता हर ली जाती है.

उधर बकरी न जाने क्यों नाराज हो गई,
उसने दूध देना बंद कर दिया,
अब बस चारा खाती थी,
खैर कोई बात नहीं,
तुम्हारी याद तो दिलाती थी,
पर, एक दिन चोरी हो गई,
पता नहीं किसने चुराई,
बहुत खोजा मिल न पाई,
डर रहा हूँ किसी ने
किसी ने बाजार के हवाले नहीं कर दी.
फिर खबर भी नहीं लग पाएगी
कि वह झटके के हवाले हुई
या उसकी खस्सी ही हो गई.

हाँ, तुम्हारी सहारे की डंडी,
मेरा भी सहारा बनी,
आए दिन मुझे कुत्तों और
साँडों से बचाती रही,

लेकिन एक दिन,
अपने बचाव में,
साँप मार रहा था,
साँप तो बच के भाग निकला,
पर लाठी टूट गई,
अब मेरे पास की
तुम्हारी हर निशानी
मिट गई,
हाँ एक घड़ी थी,
वह रखे रखे जंग खा गई,
क्योकि अब इलेक्ट्रानिक वाच आ गए हैं,
चाबी वाली घड़ियाँ तो एन्टिक मानी जा रही हैं. 

लेकिन बापू
मैं आज भी तुम्,
याद करता हूँ.

तुम्हारे नाम की कई स्कीमें
सरकार ने जो खोल रखी हैं,
उनके बारे रोज अखबार में पढ़ने मिलता है.

किसी दिन पक्ष,
तो किसी दिन विपक्ष,
उन पर कीचड़ उछाल ही लेता है...

क्या करें
स्कीमें भी तो अलग - अलग
सरकार की चलाई हुई हैं,
जब जिसको फायदा नजर आता है ,
वह थोड़ा कोस लेता है.

अब तुम तो यहाँ हो नहीं
कि लोग तुमसे डरेंगे,
तुम्हारी इज्जत करेंगे,
और कुछ उल्टा- सीधा कहने से
परहेज करेंगे.

बापू, अब जमाना भी बदल गया है,
आऊट ऑफ साईट यानी
आऊट ऑफ माईंड
का जमाना चल रहा है,
ऐसे में बोलो बापू कैसे
कोई तुम्हारे बारे सोच सकेगा.

जमाना कॉम्पिटीशन का हो गया है,
अब तो इंजिनीयरिंग और
मेडिकल करके भी नौकरी नहीं मिलती,
कोई अपना काम नहीं करना चाहता,
सब को सरकारी नौकरी ही चाहिए,

क्या करे सरकार भी,
सभी परेशान हैं,

ऐसे में एक बात जरूर है कि,
तुम्हारे नाम से कुछ भी चल जाता है,
कोई आपत्ति नहीं करता
इसलिए जहाँ कहीं भी
आपत्ति की संभावना होती है,
तो तुम्हारा नाम जोड़ लिया जाता है,
स्कीम बिक जाती है.

बापू, कभी कभी तो मुझे डर भी लगता है,
किसी दिन सर फिर गया,
तो कोई बिक्री बढ़ाने के लिए,
बाजार में गाँधी ब्राँड रम
या विस्की न उतार दे,


हाँ यह जरूर है कि वह दिन
देश के लिए अति दुर्भाग्य का दिन होगा,
फिर भी हालातों के मद्दे नजर
मुझे असंभव तो नहीं लग रहा,
मैं इन विचारों के साथ - साथ
काँपने लगता हूँ.

भगवान करे, ऐसा न हो,
जितना हो रहा है ,
क्या वह कम है कि
और की ख्वाहिश की जाए.  

बापू, एक सलाह देना चाहूँगा,
यही एक चीज
आज मुफ्त में मिलती है,
काम की हो या बेकाम की,
कारगर हो या न हो,
मिल ही जाती है.

गलती से भी धरती पर
फिर मत आना
और यदि आ गए.
तो देखोगे, कि
तुम्हारा कैसा मखौल उड़ाया जा रहा है.
बहुत दुख होगा तुम्हें,
मुझे डर है ,
कहीं हृदयाघात हो गया तो,
अब दूसरा राजघाट,
शायद मिले ना मिले.


एम.आर. अयंगर.


        

1 टिप्पणी:

  1. सुन्दर चर्चा ....
    कृपया मेरे चिट्ठे पर भी पधारे और अपने विचार व्यक्त करें.

    http://hindikavitamanch.blogspot.in/
    http://kahaniyadilse.blogspot.in/

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