बुधवार, 18 मार्च 2015

जग में बैरी कोई नहिं ,जो मन सीतल होय ,

आवत गारी एक है ,उलटत होय अनेक ,

कहै कबीर नहिं उलटिये ,वाही एक की एक।

Single is slander when it comes ,

If rejoined many it becomes ;

Rejoin it not ,exhorts Kabir ,

Since his one remains only one .

जग में बैरी कोई नहिं ,जो मन सीतल होय ,

या आपा को डारि दे ,दया करै सब कोय।

Nobody is foe in the world

If thy temper is calm and cool ,

Give up thy egotistic pride ,

Merciful will be all people.

हाड़ बड़ा हरि भजन करि ,द्रव्य बड़ा कछु देह ,

अकल बड़ी उपकार कर ,जीवन का फल यह।

If thy bones are big ,adore God ,

Give some, if money is immense ;

If thy mind 's sharp ,act for welfare ;

This alone is life's fruitful sense.

दुर्बल को न सताइये  ,जाकी मोटी हाय ,

बिना जीव की साँस सों ,लौह भस्म ह्वै जाय।

Don't persecute one who is weak

Whose cry of sigh is thick with curses ,

A lifeless hide blowing the fire

Doth burn the iron into ashes.

2 टिप्‍पणियां:

  1. दोहों का बहुत ही शानदार ढंग से प्रस्‍तुतिकरण।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (20-03-2015) को "शब्दों की तलवार" (चर्चा - 1923) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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