मंगलवार, 31 मार्च 2015

एक ग़ज़ल : आप की नज़र

[एक ग़ज़ल "आप" [AAP]  की नज़र---- ’आप’ की बात नहीं ..बात है ज़माने की]


चेहरे पे था  निक़ाब ,हटाने का शुक्रिया
"कितने कमीन लोग"-बताने का शुक्रिया

अच्छा हुआ कि आप ने देखा न आईना
इलजाम ऊँगलियों पे लगाने का शुक्रिया

घड़ियाल शर्मसार  तमाशा ये देख कर
मासूमियत से आँसू  बहाने का शुक्रिया

हर बात पे कहना कि हमी दूध के धुले
"बाक़ी सभी हैं चोर’ जताने का शुक्रिया

तुम तो चले थे लिखने कहानी नई नई
आगाज़ में ही अन्त पढ़ाने का शुक्रिया

’आनन’ करे यक़ीन,करे भी तो किस तरह
’आदर्श’ का तमाशा बनाने का शुक्रिया

-आनन्द पाठक
09413395592

1 टिप्पणी:

  1. अन्तर्राष्ट्रीय नूर्ख दिवस की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (01-04-2015) को “मूर्खदिवस पर..चोर पुराण” (चर्चा अंक-1935 ) पर भी होगी!
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं