गुरुवार, 18 जून 2015

दोहे "बीजक की हर पंक्ति में, जीवित हुआ कबीर" (अमन 'चाँदपुरी')

मेरे कुछ दोहे
तुलसी ने मानस रचा, दिखी राम की पीर।
बीजक की हर पंक्ति में, जीवित हुआ कबीर।1
--
माँ के छोटे शब्द का, अर्थ बड़ा अनमोल।
कौन चुका पाया भला, ममता का है मोल।2
--
भक्ति,नीति अरु रीति, की विमल त्रिवेणी होय।
कालजयी मानस सरिख , ग्रंथ न दूजा कोय।3
--
जिनको निज अपराध का, कभी न हो आभास।
उनका होता जगत में , पग-पग पर उपहास।4
--
जंगल-जंगल फिर रहे, साधू-संत महान।
ईश्वर के दरबार के, मालिक क्यों शैतान।5
--
हे विधना तूने किया, ये कैसा इंसाफ।
निर्दोषों को सजा है, पापी होते माफ।6
--
जब से परदेशी हुए, दिखे न फिर इक बार।
होली-ईद वहीं मनी, वहीं बसा घर द्वार।7
--
कैसे देखें बेटियाँ बाहर का परिवेश।
घर में रहते हुए भी, हुआ पराया देश।8

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें