मेरे कुछ दोहे
तुलसी ने मानस रचा, दिखी राम की पीर।
बीजक की हर पंक्ति में,
जीवित
हुआ कबीर।1।
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माँ के छोटे शब्द का, अर्थ बड़ा अनमोल।
कौन चुका पाया भला,
ममता
का है मोल।2।
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भक्ति,नीति अरु रीति, की विमल त्रिवेणी होय।
कालजयी मानस सरिख ,
ग्रंथ
न दूजा कोय।3।
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जिनको निज अपराध का, कभी न हो आभास।
उनका होता जगत में ,
पग-पग
पर उपहास।4।
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जंगल-जंगल फिर रहे, साधू-संत महान।
ईश्वर के दरबार के,
मालिक
क्यों शैतान।5।
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हे विधना तूने किया, ये कैसा इंसाफ।
निर्दोषों को सजा है,
पापी
होते माफ।6।
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जब से परदेशी हुए, दिखे न फिर इक बार।
होली-ईद वहीं मनी,
वहीं
बसा घर द्वार।7।
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कैसे देखें बेटियाँ बाहर का परिवेश।
घर में रहते हुए भी,
हुआ
पराया देश।8।
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