गुरुवार, 18 जून 2015

चादर तेरे प्रीत की

एक चादर तेरे प्रीत की
ओढ़े बैठा हूॅं
कि जैसे ठंड की मौसम में
ठंड से ठिठुरता मनई
फूंस के झोपड़ी के अंदर
बैठकर टुकुर टुकुर
कैरोसीन की तेल वाली ठिबरी
के जलते हुए दीया को देख रहा हो
और बाती और लौ के
प्रगाढ़ सम्बन्ध की अनुभूति कर रहा हो
और चादर की आगोश से प्राप्त
ऊष्मा से तृप्त
स्वयं को ठण्ड मुक्त
आभास कर रहा हो
ठीक ऐसे ही तेरे प्रीत का चादर है
मेरे शरीर की खातिर
मेरे आत्मा की खातिर
मेरे सर्वत्र के लिए
मेरे जीवन के लिए

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