रविवार, 15 मई 2016

गाय और वीवीआइपी
(कई वर्ष पुरानी बात है. मैं लोधी रोड पर स्थित एक मंदिर के भीतर था. मंदिर के निकट सड़क किनारे एक गाय बैठी थी. प्रधान मंत्री उसी समय उस रास्ते से जाने वाले थे. सुरक्षा का पूरा बंदोबस्त था. जीप में बैठे एक अधिकारी ने गाय को देखा. उसको बाद जो कुछ हुआ उससे प्रेरित हो कर यह रचना लिखी थी.)

मोहल्ले में गहमा-गहमी थी. और होती भी क्यों न? आखिर बात ही ऐसी थी. मोहल्ले में वीवीआइपी आने वाले थे.

हमारे मोहल्ले में एक स्कूल के अध्यापक  रहते हैं. अब तक बहुत कम लोगों को उनके होने का पता था. एक अध्यापक जैसे मामूली व्यक्ति का किसी दूसरे के जीवन में क्या महत्व हो सकता है? जिस देश में पैसा और सत्ता ही महानता के मापदंड हों वहां अध्यापक जैसा व्यक्ति किस गिनती में आता है.


इन्हीं अध्यापक की बेटी का विवाह था. अध्यापक जी ने वीवीआइपी को न्योता दिया था. वीवीआइपी ने न्योता स्वीकार कर लिया था.

वैसे इन अध्यापक का राजनीति से दूर-दूर तक का संबंध भी न था. न उन्होंने कभी किसी पार्टी को चंदा दिया था, न किसी राजनेता की चरण रज माथे पर लगाई थी. शायद ही किसी चुनाव में उन्होंने अपना मत डाला हो. परन्तु फिर भी उनकी बेटी के विवाह में वीवीआइपी आ रहे थे.

यह भाग्य की उठा पटक ही थी कि स्कूल के दिनों का उनका अभिन्न मित्र आज वीवीआइपी था. उन दिनों आज के वीवीआइपी आज के अध्यापक के पीछे-पीछे घूमा करते थे. हर छोटी-बड़ी समस्या के निधान हेतु अपने मित्र पर निर्भर थे. परीक्षा के समय तो उन की नैया मित्र (अर्थात आज के अध्यापक) के सहारे ही पार लगती थी.

आज अध्यापक जी के अभिन्न मित्र वीवीआइपी हैं; पर वीवीआइपी बनने के बाद भी वह अपने बचपन के मित्र को भूले नहीं हैं. अतः मित्र की बेटी के विवाह का निमन्त्रण सहर्ष  स्वीकार कर लिया. वैसे वीवीआइपी जी को इस बात का पूरा आभास था कि इस विवाह में सम्मिलित होकर अपनी छवि को वो जितना निखार पायेंगे उतना वह बीस सभाओं में भाग लेकर भी शायद न निखार पायें. निमन्त्रण स्वीकार हुआ और रातों रात अध्यापक मोहल्ले के वीवीआइपी बन गये.

वीवीआइपी आते उससे पहले कई पुलिस के अफसर आये, सुरक्षा कर्मी आये. सड़क पर लगी बत्तियां जो वर्षों से बंद थीं जलने लगीं, जिन नालियां की सफ़ाई वर्षों से न हुई थी उनकी सफ़ाई हुई. विवाह के पूर्व और पश्चात ऐसा बहुत कुछ हुआ, पर जिस घटना का उल्लेख मैं करना चाहता हूँ वह विवाह मंडप से कुछ दूर घटी थी.

वीवीआइपी के आने से पहले ही वधु के घर की ओर जाने  वाले रास्ते पर  सुरक्षा कर्मी तैनात हो गई थे. विवाह रात में था पर सुरक्षा कर्मी दुपहर बाद ही तैनात हो गये थे. अपने में बेहद उकताये हुए सुरक्षा कर्मी हर आने जाने वाले पर पैनी(?) नज़र रखे हुए थे. विवाह मंडप की ओर जाने वाली सड़क पर वाहन खड़ा करने की मनाई थी.  गुब्बारे वाले और ऐसे अन्य लोग जो विवाह मंडपों के बाहर अपनी रोज़ी-रोटी चलाते हैं, उन्हें तो मोहल्ले के निकट भी फटकने न दिया गया.

वीवीआइपी के आने में अधिक समय न था. एक सुरक्षा कर्मी की नज़र एक गाय पर पड़ी. गाय सड़क के किनारे निश्चिंत बैठी जुगाली कर रही थी. चारों ओर तैनात पुलिस और पुलिस के बंदोबस्त से वह पूरी तरह बेखबर थी. सुरक्षा कर्मी कुछ तय न कर पाया कि उसे क्या करना चाहिये. बेमन से उसने गाय को आवाज़ दी. गाय ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त न की. असमंजस में डूबा वह गाय के निकट आया और धीरे-धीरे उठ-उठबोल, गाय को उठाने का प्रयत्न करने लगा.

किसी ध्यान मग्न योगी की तरह गाय जुगाली करती रही. सुरक्षा कर्मी इधर-उधर देखता रहा. उसे कुछ समझ न आया कि उसे क्या करना चाहिये. झुंझला कर वह अपनी निश्चित जगह पर आकर खड़ा हो गया. वह धीमे-धीमे कुछ बुदबुदा रहा था और गाय को ऐसे देख रहा था जैसे गाय गाय न होकर एक ऐसी मुजरिम हो जो उसकी आँखों के सामने ही अपराध कर रही हो.

सारे प्रबंध का निरीक्षण करने के लिए एक अधिकारी अपनी जीप में चला आ रहा था. उसका आना इस बात का सूचक था कि वीवीआइपी बस आ ही रहे थे. अधिकारी अपने आप में पूरी तरह संतुष्ट था, उसके प्रबंध में कभी भी कोई कोताही न हुई थी. अचानक अधिकारी की नज़र गाय पर पड़ी. वह चौंका जैसे कोई भूत देख लिया हो, “हटाओ उसे, जल्दी हटाओ उसे.भोंपू पर वह ज़ोर से चिल्लाया.

आस पास खड़े सुरक्षा कर्मिओं की प्रतिक्रिया वैसी ही थी जैसी उस आदमी की होती है जो अनायास बिजली का नंगा तार छू लेता है. पाँच-सात सुरक्षा कर्मी गाय की ओर ऐसे दौड़े जैसे शिकारी कुत्ते अपने शिकार की ओर दौड़ते हैं. कुछ सिपाही  ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहे थे, कुछ सीटी बजा रहे थे.

इस अप्रत्याशित आक्रमण से घबरा कर गाय एक झटके से उठी और सड़क के बीचों-बीच आ गई. पल भर को गाय निर्णय न कर पाई कि उसे किस ओर भागना चाहिये. तभी जीप में बैठे अधिकारी और अन्य सुरक्षा कर्मियों पर जैसे बिजली सी गिरी. गाय उस ओर ही भागने लगी जिस ओर से वीवीआइपी आने वाले थे.          

वीवीआइपी किसी भी क्षण आ सकते थे और गाय थी कि उसी ओर भागी जा रही थी. गाय के पीछे चार-पाँच सिपाही भाग रहे थे. जीप में बैठे अधिकारी को कुछ न सूझा तो उसने भी अपनी जीप उन सिपाहियों के पीछे भगा दी. गाय को अपने पद और अधिकार का अहसास दिलाने के लिए उसने जीप का सायरन भी बजाना शुरू कर दिया. भोंपू पर उसका चिल्लाना बंद न हुआ था.

लगभग सुनसान सड़क पर भागती एक गाय, उस गाय के पीछे भागते चार-पाँच सिपाही, उन सिपाहियों के पीछे दौड़ती, सायरन बजाती जीप,  जीप में बैठे अधिकारी का भोंपू पर चिल्लाना, यह सब एक अद्भुत दृश्य था.

तभी वीवीआइपी की गाड़ी आती दिखाई दी. वीवीआइपी स्वयं बैठे तो एक ही गाड़ी में थे पर उस गाड़ी की चारों ओर सात-आठ गाड़ियाँ और थीं. इस काफ़िले और गाय का कभी भी आमना सामना हो सकता था. अचानक गाय सड़क छोड़, एक संकरी-सी गली में घुस गई.

वीवीआइपी गाड़ियों की  सड़क पर भागते सिपाहियों और उनके पीछे आती जीप से टक्कर होते-होते बची. सड़क पर तैनात अन्य सिपाही और अधिकारी सांस रोके खड़े थे, सब किसी अनहोनी की प्रतीक्षा कर रहे थे. पर कोई अनहोनी न हुई, सौभाग्य से. वीवीआइपी का काफ़िला बिना रुके(और बिना अपनी गति घटाये) आगे बढ़ गया.
सुरक्षा कर्मी एक दूसरे को ऐसे देख रहे थे जैसे किसी दुः स्वप्नॅ से जागे हों. पर जीप में बैठे अधिकारी की हालत खराब थी. वह सब को गालियां दे रहा था.

अगले दिन समाचार पत्रों में छपा कि वीवीआइपी सुरक्षा नियमों का उलंग्न करने के अपराध में कुछ अधिकारियों को निलम्भित कर दिया गया था, और गाय के मालिक का पता न लगने के कारण, गाय को हिरासत में ले लिया गया था.  

सुरक्षा नियमों की समीक्षा करने के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी भी बना दी गई थी.
© आइ बी अरोड़ा


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