सोमवार, 16 मई 2016

एक क़ता

क़ता

तेरी शख़्सियत का मैं इक आईना हूँ
तो फिर क्यूँ अजब सी लगी ज़िन्दगी है

नहीं प्यास मेरी बुझी है अभी तक
अज़ल से लबों पर वही तिश्नगी है

-आनन्द.पाठक-
09413395592
[अज़ल से = अनादि काल से]

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें