शनिवार, 22 अप्रैल 2017

एक युगल शिकायती गीत ---वरना क्या मैं------

FaceBook और  Whatsup के ज़माने में 
और 
U CHEAT.......U SHUT UP----UUUUUU SHUT UP के दौर में 

एक ’क्लासिकल’ युगल  शिकायती :   गीत 

कैसे कह दूँ कि अब तुम बदल सी गई
वरना क्या  मैं समझता नहीं  बात क्या !

एक पल का मिलन ,उम्र भर का सपन
रंग भरने का  करने  लगा  था जतन
कोई धूनी रमा , छोड़ कर चल गया
लकड़ियाँ कुछ हैं गीली बची कुछ अगन
कोई चाहत  बची  ही नहीं दिल में  अब
अब बिछड़ना भी  क्या ,फिर मुलाक़ात क्या !
वरना क्या मैं समझता----

यूँ जो नज़रें चुरा कर गुज़र जाते हों
सामने आने से तुम जो कतराते हो
’फ़ेसबुक’ पर की ’चैटिंग’ सुबह-शाम की
’आफ़-लाइन’- मुझे देख हो जाते हो
क्यूँ न कह दूँ कि तुम भी बदल से गए
वरना क्या मैं समझती नहीं राज़ क्या !

ये सुबह की हवा खुशबुओं से भरी
जो इधर आ गई याद आई तेरी
वो समय जाने कैसे कहाँ खो गया
नीली आंखों की तेरी वो जादूगरी
उम्र बढ़ती गई दिल वहीं रह गया
ज़िन्दगी से करूँ अब सवालात क्या !
वरना क्या मैं समझता नहीं-------

ये सही है कि होती हैं मज़बूरियाँ
मन में दूरी न हो तो नहीं  दूरियाँ
यूँ निगाहें अगर फेर लेते न तुम
कुछ तो मुझ में भी दिखती तुम्हें ख़ूबियाँ
तुमने समझा  मुझे ही नहींआजतक
ना ही समझोगे होती है जज्बात क्या !
वरना क्या मैं समझती नहीं--------

-आनन्द.पाठक-
088927181

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-04-2017) को

    "जाने कहाँ गये वो दिन" (चर्चा अंक-2623)
    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. वाह, बहुत बढिया शिकायती युगल गीत।

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