गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

चन्द माहिया : क़िस्त 37

चन्द माहिया : क़िस्त 37


:1:
सद ख़्वाब ,ख़यालों में
जब तक  है परदा
उलझा हूँ सवालों में 

;2:
शिकवा  न शिकायत है
मैं ही ग़लत ठहरा
ये कैसी रवायत है

:3:
तुम ने ही बनाया है 
ख़ाक से जब मुझ को 
फिर ऎब क्यूँ आया है ?

:4:
सच है इनकार नहीं
’तूर’ पे आए ,वो
लेकिन दीदार नहीं 

:5;

कहता है कहने दो
बात ज़हादत की
ज़ाहिद तक रहने दो

-आनन्द.पाठक-
08800927181

शब्दार्थ
ज़हादत की बातें  = जप-तप की बातें
तूर = उस पहाड़ का नाम जहाँ पर हज़रत
मूसा ने ख़ुदा से बात की थी



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