चन्द माहिया : क़िस्त 37
:1:
सद ख़्वाब ,ख़यालों में
जब तक है परदा
उलझा हूँ सवालों में
;2:
शिकवा न शिकायत है
मैं ही ग़लत ठहरा
ये कैसी रवायत है
:3:
तुम ने ही बनाया है
ख़ाक से जब मुझ को
फिर ऎब क्यूँ आया है ?
:4:
सच है इनकार नहीं
’तूर’ पे आए ,वो
लेकिन दीदार नहीं
:5;
कहता है कहने दो
बात ज़हादत की
ज़ाहिद तक रहने दो
-आनन्द.पाठक-
08800927181
शब्दार्थ
ज़हादत की बातें = जप-तप की बातें
तूर = उस पहाड़ का नाम जहाँ पर हज़रत
मूसा ने ख़ुदा से बात की थी
:1:
सद ख़्वाब ,ख़यालों में
जब तक है परदा
उलझा हूँ सवालों में
;2:
शिकवा न शिकायत है
मैं ही ग़लत ठहरा
ये कैसी रवायत है
:3:
तुम ने ही बनाया है
ख़ाक से जब मुझ को
फिर ऎब क्यूँ आया है ?
:4:
सच है इनकार नहीं
’तूर’ पे आए ,वो
लेकिन दीदार नहीं
:5;
कहता है कहने दो
बात ज़हादत की
ज़ाहिद तक रहने दो
-आनन्द.पाठक-
08800927181
शब्दार्थ
ज़हादत की बातें = जप-तप की बातें
तूर = उस पहाड़ का नाम जहाँ पर हज़रत
मूसा ने ख़ुदा से बात की थी
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