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बुधवार, 17 अगस्त 2022

एक ग़ज़ल


एक ग़ज़ल


नई जब राह पर तू चल तो नक़्श-ए-पा बना के चल,

क़दम हिम्मत से रखता चल, हमेशा सर उठा के चल ।



बहुत से लोग ऐसे हैं , जो काँटे ही बिछाते हैं ,

अगर मुमकिन हो जो तुझसे तो गुलशन को सजा के चल । 



डराते है तुझे वो बारहा बन क़ौम के ’लीडर’ ,

अगर ईमान है दिल में तो फिर नज़रें  मिला के चल ।



किसी का सर क़लम करना, सिखाता कौन है तुझको ?

अँधेरों से निकल कर आ, उजाले में तू आ के चल ।



तुझे ख़ुद सोचना होगा ग़लत क्या है सही क्या है ,

फ़रेबी रहनुमाओं से ज़रा दामन बचा के चल ।



न समझें है ,न समझेंगे , वो अन्धे बन गए क़स्दन ,

मशाल इन्सानियत की ले क़दम आगे बढ़ा के चल ।



सफ़र कितना भी हो मुशकिल, लगेगा ख़ुशनुमा ’आनन’

किसी को हमसफ़र, हमराज़ तो अपना बना के चल ।




-आनन्द.पाठक-


शब्दार्थ


क़स्दन = जानबूझ कर


मंगलवार, 16 अगस्त 2022

चौपई छंद "चूहा बिल्ली"

चौपई छंद / जयकरी छंद


(बाल कविता)

म्याऊँ म्याऊँ के दे बोल।
आँखें करके गोल मटोल।।
बिल्ली रानी है बेहाल।
चूहे की बन काल कराल।।

घुमा घुमा कर अपनी पूँछ।
ऊपर नीचे करके मूँछ।।
पंजों से दे दे कर थाप।
मूषक लेना चाहे चाप।।

छोड़ सभी बाकी के काज।
चूँ चूँ की दे कर आवाज।।
मौत खड़ी है सिर पर जान।
चूहा भागा ले कर प्रान।।

ज्यों कड़की हो बिजली घोर।
झपटी बिल्ली दिखला जोर।।
पंजा मूषक सका न झेल।
'नमन' यही जीवन का खेल।।
***********

चौपई छंद / जयकरी छंद विधान - 

चौपई छंद जो जयकरी छंद के नाम से भी जाना जाता है,15 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। कहीं कहीं इसका जयकारी छंद नाम भी मिलता है। यह तैथिक जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। 

चौपई छंद से मिलते-जुलते नाम वाले अत्यंत ही प्रसिद्ध चौपाई छंद से भ्रम में नहीं पड़ना चाहिये। चौपाई छंद 16 मात्राओं का छंद है जिसके चरणान्त से एक लघु निकाल दिया जाय तो चरण की कुल मात्रा 15 रह जाती है और चौपाई छंद से मिलता जुलता नाम चौपई छंद हो जाता है। इस प्रकार चौपई छंद का चरणान्त गुरु-लघु रह जाता है जो इसकी मूल पहचान है। 

इन 15 मात्राओं की मात्रा बाँट:- 12 + S1 है। 12 मात्रिक अठकल चौकल, चौकल अठकल या तीन चौकल हो सकता है। अठकल में दो चौकल या 3 3 2 मात्रा हो सकती है। चौपई छंद के सम्बन्ध में एक तथ्य यह भी सर्वमान्य है कि चौपई छंद बाल साहित्य के लिए बहुत उपयोगी है, क्योंकि इसमें गेयता अत्यंत सधी होती है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

गंग छंद "गंग धार"

गंग छंद

गंग की धारा।
सर्व अघ हारा।।
शिव शीश सोहे।
जगत जन मोहे।।

पावनी गंगा।
करे तन चंगा।।
नदी वरदानी।
सरित-पटरानी।।

तट पे बसे हैं।
तीरथ सजे हैं।।
हरिद्वार काशी।
सब पाप नाशी।।

ऋषिकेश शोभा।
हृदय की लोभा।।
भक्त गण आते।
भाग्य सरहाते।।

तीर पर आ के।
मस्तक झुका के।।
पितरगण  सेते।
जलांजलि देते।।

मंदाकिनी माँ।
अघनाशिनी माँ।।
भव की तु तारा।
'नमन' शत बारा।।
***********

गंग छंद विधान -

गंग छंद 9 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत गुरु गुरु (SS) से होना आवश्यक है। यह आँक जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। इन 9 मात्राओं का विन्यास पंचकल + दो गुरु वर्ण (SS) हैं। पंचकल की निम्न संभावनाएँ हैं :-

122
212
221
(2 को 11 में तोड़ सकते हैं, पर अंत सदैव दो गुरु (SS) से होना चाहिए।)
******************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

रविवार, 14 अगस्त 2022

चन्द माहिए : 15-अगस्त पर

 चन्द माहिए

[ 15-अगस्त पर ]


1

यह पर्व है जन-जन का, 

करना है अर्पण,

अपने तन-मन-धन का।


2

सौ बार नमन मेरा,

वीर शहीदों को,

जिनसे है चमन मेरा।


3

हासिल है आज़ादी,

रंग तिरंगे का, 

क्यों आज है फ़रियादी?


4

जब तक सीने में दम,

झुकने मत देना,

भारत का यह परचम।


5

इस ध्वज का मान रहे, 

लहराए नभ में,

भारत की शान रहे। 


-आनन्द.पाठक-


शनिवार, 6 अगस्त 2022

15-अगस्त पर एक गीत

 स्वतन्त्रता के  पर अमृत महोत्सव पर और घर घर तिरंगा अभियान पर----

एक गीत -15 अगस्त पर-   हर घर पर लहराए तिरंगा------



भारत माँ की शान तिरंगा, घर घर पर लहराए

विश्व शान्ति ,बलिदान त्याग का नव संदेश सुनाए


’जन-मन-गण ’का प्रान तिरंगा

हम सब की पहचान तिरंगा

प्राण निछावर करने वालों-

का करता सम्मान  तिरंगा


हिमगिरि से भी ऊँची जिसकी कीर्ति-पताका जग में

’सत्यमेव जयते’- का निश दिन मंत्र सदा दुहराए 


इस झंडे के तले लड़े हम

चट्टानों-सा  रहे खड़े हम

सत्य, अहिंसा, आदर्शों पर

नैतिकता पर रहे अड़े हम


 इस झंडे का मान रखें, संकल्प यही करना है

आँच न इस पर आने पाए ,प्राण भले ही जाए


वीरों ने हुंकार भरा जब

दुश्मन का दिल सदा डरा तब

आगे आगे ध्वजा हमारी

फिर पीछे जयघोष किए सब


इस झंडे की मर्यादा की, आन-बान की खातिर

हँसते हँसते वीर शहीदों ने हैं प्राण गँवाए


गाँधी जी का त्याग भी देखा

           ’जलियाँवाला बाग’ भी देखा

           लाल रंग से रहे खेलते -

          वीरों का वह फाग भी देखा

    

 वीरॊं के बलिदानों का यह देता सदा गवाही

अमर रहे यह झंडा मेरा, कभी न झुकने पाए


केसरिया रंग त्याग सिखाता

श्वेत- शान्ति का अनुपम नाता

हरा रंग मानो भारत की

समृद्धि का गीत सुनाता


तीन रंग से बना तिरंगा मेरा झंडा न्यारा

मानवता का पाठ पढ़ाए, नई राह दिखलाए


भारत माँ की शान तिरंगा हर घर पर लहराए  


-आनन्द.पाठक-

गुरुवार, 4 अगस्त 2022

एक ग़ज़ल : वक़्त देता वक़्त आने पर सज़ा है

 


एक ग़ज़ल 



वक़्त देता, वक़्त आने पर सज़ा है  ,

कौन इसकी मार से अबतक बचा है ।


रात-दिन शहनाइयाँ बजती जहाँ थीं ,

ख़ाक में ऎवान अब उनका पता है ।


तू जिसे अपना समझता, है न अपना,

आदमी में ’आदमीयत’ लापता है ।


दिल कहीं, सजदा कहीं, है दर किसी का,

यह दिखावा है ,छलावा और क्या है !


इज्तराब-ए-दिल में कितनी तिश्नगी है,

वो पस-ए-पर्दा  बख़ूबी जानता है   ।


क्या उसे ढूँढा कभी है दिल के अन्दर.

बारहा ,बाहर जिसे तू  ढूँढता  है ?


ज़िंदगी क्या है ! न इतना सोच ’आनन’

इशरत-ओ-ग़म से गुज़रता रास्ता है ।



-आनन्द.पाठक-


शब्दार्थ

ऎवान                = महल , प्रासाद

इज़्तराब-ए-दिल  =बेचैन दिल

तिश्नगी          = प्यास

पस-ए-पर्दा         = परदे के पीछॆ से

बारहा = बार बार 

इशरत-ओ-ग़म से     = सुख -दुख से