मेरी नवीन पुस्तक---ebook--
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मंगलवार, 27 सितंबर 2022
तेरे कितने रूप गोपाल , श्याम पदावली --डॉ श्याम गुप्त की नवीन पुस्तक---ebook---
एक ग़ज़ल :हर जगह झूठ ही झूठ की है ख़बर--
एक ग़ज़ल
हर जगह झूठ ही झूठ की है ख़बर ,
पूछता कौन है अब कि सच है किधर?
इस क़लम को ख़ुदा इतनी तौफीक़ दे,
हक़ पे लड़ती रहे बेधड़क उम्र भर ।
बात ज़ुल्मात से जिनको लड़ने की थी,
बेच कर आ गए वो नसीब-ए-सहर।
जो कहूँ मैं, वो कह,जो सुनाऊँ वो सुन,
या क़लम बेच दे, या ज़ुबाँ बन्द कर ।
उँगलियाँ ग़ैर पर तुम उठाते तो हो -
अपने अन्दर न देखा कभी झाँक कर ।
तेरी ग़ैरत है ज़िन्दा तो ज़िन्दा है तू ,
ज़र्ब आने न दे अपनी दस्तार पर।
एक उम्मीद बाक़ी है ’आनन’ अभी,
तेरे नग़्मों का होगा कभी तो असर ।
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ -
ज़ुल्मात से = अँधेरों से
सहर = सुबह
दस्तार पर = पगड़ी पर, इज्जत पर
शनिवार, 24 सितंबर 2022
एक हास्य व्यंग्य : टाइम-पास
शुक्रवार, 23 सितंबर 2022
नोरा और वो
एक दशक पहले यूरोप से अफ्रीका जब मेरा आना हुआ तो रुई के फाहे की तरह गिरते बर्फ की जगह यहाँ की ठंडी पुरवाई मेरे मन को लुभाती चली गयी मन हज़ार तरह की आशंकाओं से घिरा था / यूरोप का अत्याधुनिक माहोल और यहाँ के लोग प्रकृति पर पूरी तरह निर्भर /एअरपोर्ट से बाहर आते ही कुछ दूर आने पर शांत समुन्दर जिसमे कोई भी हलचल नही ,जिसके समुन्दर होने पर मुझे यकीं तो नही हुआ लेकिन मेरे मन में एक खूबसूरत एहसास की तरह ठहर गया / मन तुलनात्मक दृष्टिकोण से हर चीज़ को देख रहा था कभी कोई चीज़ मन में बैठती कोई सिरे से खारिज करती /रास्ते में बड़े बड़े बिभिन्न भांति के पेड़ों से घिरे जंगलों में झांकते आम के बड़े बड़े वृक्ष आश्चर्य से मन को भर रहे थे /आम भी अलग अलग तरह के दिख रहे थे मन कौतुहल से भर उठा और ड्राइवर से पूछा की यह आम का ही पेड़ है या किसी और का ? डाइवर ने स्पष्टिकरण करते हुए एक पेड़ की छावं को देखते हुए गाड़ी को किनारे में park कर दी और गाड़ी से उतर कर आम तोड़ के ले आया / आम को हाथ में ले कर मन इतना प्रफुल्लित हुआ कि जैसे किसी अपने बिछड़े परिजन से मिल रही हूँ / यूरोप में 5 यूरो का एक आम और यहाँ जंगल ...कैसा विरोधाभास है प्रकृति पर यह दृश्य प्रत्यक्ष दिख रहा था वास्तव में यूरोप में पेड़ों के नीचे बिछे सेव भी उतना मन को प्रफुल्लित नही कर सके थे जितना अपने देश के फलों के राजा आम ने किया / यूरोप की चकाचौंध पर नैसर्गिक दृश्य हावी होने लगे थे / रास्ते भर ड्राइवर से यहाँ के भाषा और परिवेश की बातें सुनते सुनते 2 घंटे का सफर कैसे कट गया पता ही नही चला और हम अपने रिसोर्ट में आ गये /अब कुछ महीनो का अस्थायी आवास यही था और यहाँ रहते हुए अलग अलग तरह के लोगों से मिलते सुनते यहाँ की संस्कृति काफी करीब से देखने को और समझने को मिलने लगी / यहां के लोगों में भारत और भारतीय सिनेमा के प्रति सम्मान और दीवानगी , फ़िल्मी गानों को गाकर भारतीओं को रिझाने की कोशिशें कभी कभी बड़ी दिलकश भी लगती हैं /इसी बीच इक समारोह में जाने का अवसर मिला जिसमे हम शामिल भी हुए / कई तरह के लोगों से मेल मिलाप भी हुआ/ समारोह में नोरा नाम की एक लड़की से भी मुलाक़ात हुई / नोरा सुन्दर मिलनसार व्यक्तित्व की स्वामिनी थी / बातों ही बातो में पता चला की उसे जानवरों से बेहद लगाव है और उसने एक अजगर पाल रखा है और वह उसके साथ सोता खेलता भी है / सुनकर मैं तो एक अनजाने भय से काँप उठी और उससे पूछ बैठी तुम्हे डर नही लगता ?
नोरा कहने लगी वह बहुत प्यारा है और अभी तो बच्चा है घर में इधर उधर घूमता है कभी कभी मैं नींद में रहती हूँ तो बिस्तर में मेरे आ जाता है और मुझ से लिपट जाता है /मुझे बड़ी हैरानी हुई अभी तो अपने देश में गाय भैंस घोडा खरगोश और कुत्ते ही पालतू पशु के रूप में देखा था और मैं उनसे भी डर जाती थी ये कहाँ मैं घने जंगल में आ गयी और ये महारानी तो मुझे मॉडर्न दिख तो रही है पर है अन्दर से भयंकर जंगली /नोरा के लिए उस अजगर से सुन्दर प्यारा और दिल के करीब जितना था उतना तो कोई नही लग रहा था और जब तक साथ थी सिर्फ उसी की बातें ,मुझे ऊब सी लगने लगी थी / किसी तरह हम वहां से निकल अपने रिसोर्ट आ गये / हालाकि रिसोर्ट में भी शुतुरमुर्ग मोर रंग बिरंगे तोते जैसे मन मोहने वाले कुछ जानवर थे / शाम हमारी इन्ही को आस पास घूमते देखते बीत जाती / धीरे-धीरे हम भी यहाँ के माहोल से परिचित हो चुके थे और हमारे अपने आवास में शिफ्ट होने का समय भी नजदीक आ रहा था / लगभग तीन-चार महीने रहने के उपरांत हम अपने आवास में पहुच गये /नोरा भी उसी कैंपस में ही थी लिहाजा अक्सर मुलाक़ात होने लगी और उसके पालतू जानवर की बातें जो मुझे अन्दर से एक डर ही महसूस करवाती उससे सुनती रही /एक दिन मैं अपने बेटे को स्कूल से लेने जा रही थी कि नोरा मिल गयी पूछने पर पता चला कि हॉस्पिटल जा रही है उसका पालतू हफ्ते भर से खाना नही खा रहा है और अक्सर उससे कुछ ज्यादा ही लिपट रहा है / नोरा को उसके भूखे रहने से उसके मर जाने की आशंका ने घेर रखा था / खैर नोरा उसको लेकर जब डॉक्टर के पास पहुची तो डॉक्टर ने गहन जांच की जिसमे कुछ न पाया / डॉक्टर का अब अगला सवाल नोरा से था 'क्या यह आपको लिपटता है ?' नोरा ने बड़ी खुशी से जबाब हाँ में दिया और यह भी बताया की कभी कभी इतनी जोर से लिपटा रहता है कि उससे छुड़ाना भी थोडा मुश्किल होता है / डॉक्टर चुपचाप सुनते रहे ,नोरा की सारी बातें सुनने के बाद एक गहरी साँस लेते हुए डॉक्टर ने कहा ,''यह आपको निगलना चाहता है और जब आप से लिपटता है तो आपसे लाड प्यार में नही बल्कि आपकी माप लेता है कि आपको निगलने के लिए उसके पेट में कितनी जगह होनी चाहिए और अब यह बड़ा हो गया है तो अपनी पेट में जगह बना रहा है भूखे रह कर '' यह सुनकर नोरा के होश उड़ गये उसे समझ ही नही आया की करे तो क्या करे ,जिसे वो इतना लाड प्यार दे रही है वही उसकी मौत है और मौत भला किसको प्यारी लगती है / नोरा हास्पिटल से सीधे जंगल की ओर चली गयी और उसे ले जाकर जंगल के बाहर छोड़ आई पर उसके मन में डर ने घर कर लिया, उसने किसी भी जानवर को पालतू न रखने की कसम खा ली और मैंने राहत की साँस क्युकि अब मुझे उसके खतरनाक पालतू के बारे में नही सुनना पड़ेगा और जिसकी वजह से मैं उसके घर में भी पैर रखने से डरती थी आसानी से आ जा सकुंगी /~Shweta Misra
गुरुवार, 15 सितंबर 2022
एक कविता
कविता
शनिवार, 10 सितंबर 2022
एक व्यंग्य : टैग करने वालो से
एक व्यंग्य : ---’टैग करने वालों से’
रेडियो पर गाना बज रहा है। झूठ। आइपैड, आइपोड के ज़माने में रेडियॊ।
अच्छा, तो मोबाइल पर गाना बज रहा है--
"अल्लाह बचाए नौज़वानो से ,
-- --- ---
तौबा है ऐसे इन्सानों से ,
अल्लाह बचाए----"
और इधर मैं गा रहा था--
बाते हैं मीठी मीठी , रचना है फीकी फीकी।
कहता हूँ मै सीधे सीधे, कविताएँ उल्टी-पुल्टी
अल्लाह बचाए ’टैग वालों ’ से । अल्लाह !
अल्लाह बचाए---
गाना जो भी हो, दर्द एक -सा है। फ़र्क इतना है कि वो गा रही हैं मैं गा रहा हूँ। वह मनचले नौज़वानो से परेशान है
मैं ज्ञानी टैग वालों से ।
"टैग करना" क्या होता है? "शो-रूम" पीढ़ी वाले फ़ेसबुकिया नौज़वान अच्छी तरह जानते होंगे ,
और जो "म्यूजियम मैटिरल" वाले लोग है,[जैसे मैं ], तो उन्हे स्पष्ट कर दूँ कि यह एक मानसिक बीमारी है
जिसमे आप अपनी रचना को श्रेष्ठ मानते है और- मान न मान मैं तेरा मेहमान- वाली शैली में।-
अपने फ़ेसबुकिया मित्रों के ’वाल ’ पर चेंप देते हैं।। यह एक घातक बीमारी तो नहीं, पातक बीमारी ज़रूर है ।
इस बीमारी मेंआदमी ’विक्षिप्त’ भी हो सकता है। तब उसे होश नहीं रहता कि वो किसी के गाल पर "टैग’
कर रहा है कि किसी के सर पर ’टैप’ कर रहा है।
इस बीमारी हर वक़्त फ़ेसबुक चेक करते रहना अच्छा लगता है। कितने लाइक आए--कितने कमेन्ट मिले -
-कितने वाह वाह हुए। कितनो ने मुझे ख़िताब दिया। रात में सोते हुए भी अपनी रचना का ’लाइक’ गिनता है
और कमेन्ट पढ़ता है, आल्हादित होता है।
चिकित्सा शास्त्र में इसे ’ फ़ेसबुखेरिया" कहते हैं--मलेरिया --फ़ाइलेरिया --लभेरिया-- की तर्ज़ पर।
। यह अपने अनुभव से कह रहा हूँ-फ़ेस बुखेरिया-का अनुभव। इस रोग में ’भूख’ नही लगती ।
-कल एक सज्जन फ़ेसबुक पर विलाप करते हुए मिल गए। उनके कई मित्र है जो उनके ’वाल’ पर[गाल पर नहीं] हर रोज़
2-4-10 रचनाएँ टैग कर देते हैं। कचरा फ़ैला देते है। और भाई साहब हैं कि रोज़ सुबह सुबह झाड़ू लेकर अपना ’वाल साफ़’ करते हैं
और मनोच्चरित गाली भी देते हैं, उन टैग वालो को जो यहाँ उल्लेख करने योग्य भी नहीं। मैने सलाह दिया कि भाई साहब! उन सबको
"ब्लाक’ क्यों नहीं कर देते। { पाठको को मैं ज़रा स्पष्ट कर दूँ कि कुछ महिला-कवयित्रियों ने मुझे ब्लाक कर रखा है ,मगर वह "टैग" के कारण नहीं।]
भाई साहब कहने लगे- पाठक जी! शरीफ़ आदमी हूँ ,शराफ़त में मारा जाता हूँ। अगर उनको नहीं है अपनी तो है ।
फ़ेसबुक पर हर दूसरा आदमी -कवि है .लेखक है, ग़ज़लकार है,साहित्यकार है, साहित्य के एक्सपर्ट है।
वह बस लिखता रहता है निरन्तर, परन्तु पढ़ता नहीं । न अपना न किसी और का ।
मैं भी ऐसे 2-4 ’टैग वालों ’से पीड़ित हूँ। कई बार मना किया, हाथ जोड़ा, माफ़ी माँगी ,करबद्ध प्रार्थना की।
आप के चरण किधर हैं, प्रभु-भी कई बार पूछा। मगर वह कहाँ माने।
वो कब बाज़ है मुझे ’टैग’ कर के
हमी थक गए है हटाते-हटाते
कई बार कहा-भाई साहब माना कि आप , वरिष्ठ कवि है, गरिष्ठ कवि है, शिष्ट कवि हैं. राष्ट्रीय कवि है
अन्तर्राष्ट्रीय कवि है, अन्तरराष्ट्रीय कवि है, इस सदी के महान कवि हैं ,प्रथम कवि है, अन्तिम कवि हैं
हिंदी साहित्य के चाँद हैं सूरज हैं, मगर मेरी आँख में उँगली डाल डाल कर यह सब क्यूँ बता रहे हैं?
जब सूरज आसमान पर चढ़ेगा तो देख लेंगे।
वो कहते हैं --भाई साहब! हम लोगों का मकसद इतना होता है कि आप देखे--मैं बड़ा हुआ तो कितना -- और तुम रह गए ठिगनामैं कहाँ से कहाँ चला आया और तुम ? मैं कितना सनद प्रमाण पत्र बटॊर लाया, और तुम? मैं कितना नारियल फ़ोड़ आया और तू[ अब वह तुम से तू पर आ गए-बड़े कवि हो गए ] मैं कितना साल ओढ़ आया और तू ?मैं कितना मुशायरा लूट आया और तूो।यह देख मेरी फोटो-"दद्दू" के साथ और तू । यह देख मेरी प्रोफ़ाइल --यह ’बुक’ मेरा देखो-- ये सूट मेरा देखो--ये बूट मेरा देखो --मैं हूँ शायर लंदन का।
खैर वह इन्ही सब में मगन है। हिंदी की सेवा कर रहे हैं । हिंदी कृतार्थ हो रही है । हम आप कौन होते है उन्हें टोकने वाले।
कविता कर के वह खुद न लसे
कविता लसी पा यह ’टैग ’ कला
टैग करने वालों की हालत तो यह है कि --
कल जिसे अपनी कविता सुना कर आया था
उसी के टैग का पत्थर मेरी तलाश में है ।
[ नूर जी से क्षमा याचना सहित]
लोग टैग इसलिए करते हैं कि हमे पता चलता रहे कि ’फ़ेसबुक ’पर आजकल हिंदी का दशा-दिशा क्या चल रही है।
[ नोट ; चलते चलते अपने "टैग करने वाले नौज़वान भाइयॊ से-क्षमा याचना सहित -
मजरूह सुल्तानपुरी साहब का शे’र है [शायद] -
जफ़ा के ज़िक्र पर तुम क्यों सँभल कर बैठ गए
तुम्हारी बात नहीं, बात है ज़माने की ।
वैसे -जफ़ा करने और टैग करने में कोई फ़र्क नहीं --भाव बरोबर है ]
अच्छा । आज इतना ही। चलते हैं । अभी यह लेख "टैग’ करने जाना है ।
सादर
-आनन्द.पाठक-
मंगलवार, 6 सितंबर 2022
एक ग़ज़ल : उनसे हुआ है आज तलक
एक ग़ज़ल