कुछ अनुभूतियाँ---
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रविवार, 27 फ़रवरी 2022
कुछ अनुभूतियाँ
गुरुवार, 24 फ़रवरी 2022
चन्द माहिए
चन्द माहिए-
1
हर पल जो गुज़र जाता,
छोड़ के कुछ यादें
फिर लौट के कब आता ?
2
होती भी अयाँ कैसे?
दिल तो ज़ख़्मी है,
कहती भी ज़ुबाँ कैसे?
3
तुम ने मुँह
फेरा है,
टूट गए सपने,
दिन में ही
अँधेरा है।
4
शोलों को भड़काना,
ये भी सज़ा कैसी
भड़का के चले
जाना?
5
कितने बदलाव जिए,
सोच रहा हूँ मैं,
कागज की नाव
लिए।
-आनन्द पाठक-
बुधवार, 23 फ़रवरी 2022
नाग छंद विधान
जन्म दिन - 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान - तिनसुकिया (असम)
रुचि - काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) "मात्रिक छंद प्रभा" जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में 'मात्रिक छंद कोष' दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) "वर्णिक छंद प्रभा" जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में 'वर्णिक छंद कोष' दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
Web Site - visit kavikul.com
शनिवार, 19 फ़रवरी 2022
एक ग़ज़ल : झूठ पर झूठ वह
नोट - आजकल चुनाव का मौसम चल रहा है ।उसी सन्दर्भ में।
एक ग़ज़ल
झूठ पर झूठ वह बोलता आजकल ,
क़ौम का रहनुमा बन गया आजकल ।
चन्द रोज़ा सियासत की ज़ेर-ए-असर,
ख़ुद को कहने लगा है ख़ुदा आजकल ।
साफ़ नीयत नहीं, ना ही ग़ैरत बची ,
शौक़ से दल बदल कर रहा आजकल ।
उसकी बातों में ना ही सदाक़त रही ,
उसको सुनना भी लगता सज़ा आजकल ।
तल्ख़ियाँ बढ़ गई हैं ज़ुबानों में अब ,
मान-सम्मान की बात क्या आजकल ।
आँकड़ों की वह घुट्टी पिलाने लगा ,
आँकड़ों से अपच हो गया आजकल ।
यह चुनावों का मौसम है ’आनन’ मियाँ ,
खोल कर आँख चलना ज़रा आजकल ।
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
ज़ेर-ए-असर = प्र्भाव से
सदाक़त = सच्चाई
रविवार, 13 फ़रवरी 2022
Kiss Day
मेरे होंठों को
तेरे होंठों से , सुन ना,
कुछ तो है कहना
कहने भी दे ना
लिखेंगी सांसें
कुछ किस्से कहानी
पढ़ेंगी आंखें
देहों की ज़ुबानी
बदन पे तुम्हारे
लम्सो की कहानी
युगों से है लिखना
लिखने भी दो न
महकी मैं खुशबू
संदली कुछ रूमानी
दरिया हुआ तू
मैं हुई जैसे पानी
लहू की रवानी
बदन में तुम्हारे
जब तक न हो जाऊं फानी
है तुममें है बहना
बहने भी दो न
शनिवार, 12 फ़रवरी 2022
एक व्यंग्य : वलेन्टाइन डे--उर्फ़ प्याज पकौड़ी चाय
डायरी के पन्नों से----
[ परसों वैलेन्टाइन डे है -- हमारे सभी युवा मित्र [ और कुछ हमारी उम्र वाले भी चोरी छुपे ] अपनी पुरानी डायरी से इश्किया शायरी को धो-पोंछ कर नया रूप दे रहे होंगे।
यह व्यंग्य बहुत से पाठकों ने पढ़ा होगा. बहुत से लोगों ने नहीं भी पढ़ा होगा -उनके लिए। और जिन्होने पढ़ा होगा --वह भूल गए होंगे अबतक ।
। वैलेन्टाइन डे हर साल आता है ------मेरे इस व्यंग्य व्यथा की तरह।
भई ! कभी हम भी जवान थे--यह अलग बात है कि लगते नहीं थे।
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एक व्यंग्य : वैलेन्टाइन डे - उर्फ़ प्याज-पकौड़ी चाय
जाड़े की गुनगुनी धूप और धूप सेंकता मै।।रेडियो पर बजता गाना ....
.दो सितारों का ज़मीं पर है मिलन आज की रात
मुस्कराता है उमीदो का चमन आज की रात --
गाने के सुर में अपना सुर मिलाया ही था-
रंग लाइ है मेरे दिल की लगन की आज की रात
सारी दुनिया नज़र आती है दुलहन आज की रात
कि अचानक
"अच्छा ---बड़ी रिहर्सल चल रही है वैलेन्टाइन डे की। इतनी तैयारी पढ़ने में की होती तो आज ये कलम न घिसते ।शरम नहीं आती -उमर ढल गई रिटायर हो गए । गुलाटी मारना नहीं गया ।मैं सब समझती हूँ । उड़ती चिड़िया के पंख गिन सकती हूँ ।जब जब वैलेन्टाइन डे आता है तो मियाँ को रोमान्स याद आता है ,मस्ती चढ़ जाती है। ।रंगीन सपने आते हैं। सब समझती हूँ -संस्कारी लड़की हूँ। कोई गाय बछिया नहीं हूँ""--मुड़ कर देखा तो श्रीमती जी हैं ।गनीमत थी कि हाथ में बेलन नहीं था।
"बेगम ! तुम अब बछिया नहीं -अम्मा बन गई हो ,अम्मा । दो बच्चों की मां~ "
"हाँ हाँ मै तो अम्मा बन गई -और तुम कौन से छोकरे रह गए , बाल रंग -रंग के बछड़ा बने फिरते हो"
सुधी पाठक गण अब समझ गये होंगे कि रिटायर होने के बाद घर में मेरा गाना गाना भी गुनाह और शक की नज़र से देखा जाने लगा है ।
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उन दिनों ,जब मैं जवान था और "वैलेन्टाइन" शब्द का आविष्कार नहीं हुआ था तो अपनी एक ’किसी’ से [ जो अब भूतपूर्व हो गई है ] एक सवाल पूछा था -
जो पूछा कि होतीं क्या उलफ़त की रस्में
दीया रख गई वो हवा के मुकाबिल ।
-हम ही ’दिया’ महफ़ूज़ न रख सके ज़माने की हवाओं से ।तो उसने ’ दिया’ कहीं और बढ़ा दिया और वो किसी और की ’वैलेन्टाइन’ हो गई।
जब जब वैलेन्टाइन डे आता है तो मैं श्रीमती जी के ’सर्विलिएन्स कैमरे ’ की जद में आ जाता हूँ वैसे ही जैसे जेटली साहब की जद में नोटबन्दी के दिनों में काले धन वालों आ गए थे। श्रीमती जी को लगता है कि वैलेन्टाइन डे पर मैं किसी डेड "जन धन खाता" में पैसे डालने की तैयारी कर रहा हूँ -हफ़्ते भर हर वक़्त कड़ी नज़र रखती हैं मुझ पर किसी इनकम टैक्स वालों की तरह ।-क्या गा रहा हूँ --.किधर झाँक रहा हूँ ...क्या शायरी कर रहा हूँ..... कैसा गीत लिख रहा हूँ..... कितनी बार बाल सँवार रहा हूँ ....कितनी बार माँग निकाल रहा हूँ.... कितनी बार कपड़े पर परफ़्यूम छिड़क रहा हूँ..कौन सा ’परफ़्यूम लगा रहा हूँ ..कितनी बार मूछें तराश रहा हूँ....वग़ैरह वग़ैरह।
कल ’ग़ज़ल का फ़ाइलातुन--फ़ाइलातुन --फ़ाइलुन----रट रहा था कि पीछॆ से श्रीमती जी ने उचारा--अच्छा ! ! ......... फ़ाइलातुन--फ़ाइलातुन .. करने से ’अफ़लातुन’ नहीं बन जाओगे वैलेन्टाइन डे के दिन । दो बच्चों के बाप हो गए हो ...घर में रहों --गीता पढ़ो ..रामायण पढ़ो ..माला फेरो..राम राम जपो ...सनी लिओनी ...सनी लियोनी मत जपो .... ..वैलेन्टाइन डे तुम्हारे लिए नहीं है ---तुम्हारे लिए शास्त्रों में ’एकादशी व्रत’ है....,भगवती जागरण ,है ,.... शिव-रात्रि का प्रावधान है---।
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मेरे एक कवि-मित्र है। हमउम्र है । नाम बताना उचित नहीं ,कारण कि भाभी जी से उनको सुरक्षित रखना मेरी जिम्मेदारी है ।वैलेन्टाइन डे पर बड़ी प्रेमभरी कविता लिखते है उसे सुनाने के लिए ।दिल की दबी उचित / संकुचित भावनाएँ निकाल कर लिखते है । वैसे तो कई कवि लिखते है ,कुछ बताते हैं कुछ छुपाते हैं ,कुछ शरमाते है और कुछ दिल में दबा जाते है जैसे मैं ।औरों का नाम बताऊँ क्या ?हम कवि गण ’अर्थहीन [कविता अर्थहीन भले न हो जेब से ’अर्थहीन ही रहते हैं } अपनी वैलेन्टाइन को महँगे गिफ़्ट नहीं दे पाते हैं , सो कविता से ही आसमां से तारा तोड़ कर ला देते है ... सितारे दे देते है --जमीन दे देते हैं.. आसमान दे देते हैं । बहुत खुश हो गए तो आरा-बलिया-छ्परा -भी हिला देते है ...कौन सा अपने बाप का जाता है ....और दूसरे दिन झोला लटकाए दाढ़ी बढ़ाए सड़क पर गाते फिरते रहते है --हम ने ज़फ़ा न की थी --उस को वफ़ा न आई---पत्थर से दिल लगाया और दिल पे चोट खाई -- -- । यही कारण है कि कवियों और. शायरों की कोई परमानेन्ट वैलेन्टाइन नहीं होती ।मेरी भी नहीं है ।अगर किसी की होगी भी तो वह बतायेगा नहीं। तो भाई साहब ने बड़ा ही सुमधुर गीत लिखा था ......... गा कर जाँचा -परखा .... एक एक शब्द को सजाया ... सँवारा . ..आवाज़ में लोच पैदा की ,कमर में लोच पैदा की --कई बार खुद सुना --मुझ को सुनाया ..... कविता में जो जो मिर्च मसाला डालना था डाला इस उमीद से कि उनकी वैलेन्टाइन प्रभावित होगी ।
"भाई साहब ! बात हो गई उस से ?" -मैने पूछा
"किस से?"
"अरे उसी से जिसके लिए आप ने यह गीत लिखा है । वैलेन्टाइन डे है न परसों !!
"ही ही ही’! ’-बत्तीसी निकलते निकलते रह गई }-हे हे हे ! क्या पाठक जी-- अब कहाँ मैं ....कहाँ वैलेन्टाइन --- ये कविता तो बस वसन्त पर लिखी "वसन्ती" पर लिखी ...-प्रकॄति पर लिखी है... प्रकॄति देवी पर लिखी है ...विराट में सूक्ष्म देखता हूं--- निराकार में साकार देखता हूँ....जड़ में चेतन देखता हूँ .....
"और मैं चोर की दाढ़ी में तिनका देखता हूँ , कोई बात नही प्रभुवर ! मैं भी वैलेन्टाइन के दिनों में ऐसी ही कविता लिखता हूँ प्रकॄति पर लिखता हूँ ।ग़ज़ल लिखता हूँ इश्क़-ए-हक़ीकी पर । मगर श्रीमती जी हैं कि मानती ही नही ।"
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पिछली बार भी ऐसी ही एक कविता सुनाई थी अपनी वैलेन्टाइन को ।
इक जनम भी सनम होगा काफ़ी नहीं
इतनी बातें हैं कितनी बताऊँ तुम्हें
यह मिलन की घड़ी उम्र बन जाए तो
गीत अपने मिलन का सुनाऊँ तुम्हें
इतना सुन लिया ,बहुत था ।-बहादुर लड़की थी ।
नतीज़ा यह हुआ कि कविता सुनने के बाद आज तक वो लौटी नहीं --न जाने किस हाल में होगी बेचारी ? ।आज तक उसकी याद में दिवाना बने फिरता हूँ।
धीरे धीरे दूर हो गई ऐसी भी थी क्या मज़बूरी
पहले ऐसा कभी नहीं था हम दोनों में दिल की दूरी
काल चक्र पर किस का वश है अविरल गति से चलता रहता
अगर लिखा था नियति यही है प्रणय कथा कब होगी पूरी---जाने क्यूँ ऐसा लगता है
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पिछली बार भी वैलेन्टाइन डे मनाया था मगर ये हिन्दू सेना ,बजरंग दल वालों ने अपनी ’सुसंस्कॄति सोटा ’ से ऐसी संस्कृति लागू किया मुझ पर कि बस शहीद होते होते बचा वरना यह खाकसार -वैलेन्टाइन संस्करण-2 हो जाता। 1-2 हड्डी सीधी बची भी तो बाद में पुलिसवालों ने सीधा कर दिया ।
वैलेन्टाइन डे हर साल आता है और मुआ दिल हर बार हड्डियाँ तुड़वा कर सीधा खड़ा हो जाता है ।आखिर जवानी भी कोई चीज़ होती है । मैं नहीं तो क्या दिल तो जवान है । 2-4 डंडे 2-4 बेलन तो खा ही सकता है ।
हर बार तौबा करता हूँ , हर बार रिन्द का रिन्द हो जाता हूँ और वैलेन्टाइन डे आते आते ख़ुमार बाराबंकी साहब का शे’र गुनगुनाने लगता हूँ।
न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है
दिया जल रहा है हवा चल रही है ।
और जब पुरवा हवा चलती है तो हड्डियों का एक एक जोड़ .पिछली वेलेन्टाइन डे की गवाही देता है।
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रिहर्सल चल रहा है तैयारी चल रही है लड़के ग्रीटिंग कार्ड खरीद रहे हैं लड़कियाँ ड्रेस बनवा रही है -नीतू ये देख कैसी रहेगी ? -- पिछली बार तो उसने घास ही नही डाली.. खुसट था साला ---रिया ये देख तो ये ’इयर-रिंग’ कैसी लगेगी ?---अन्तरा इधर आ न देख न...तेरा वाला तो ठरकी था लास्ट इयर ..साला चाय/काफ़ी भी मेरे ही पैसे से पी के सरक लिया .देख न ..ये..मैचिंग कैसी लगेगी...? सब यारी तैयारी में लग गए।लड़के गिफ़्ट ख़रीद रहे है---मोटर साइकिल में पेट्रोल भरवा रहे हैं--हवा-पानी चेक कर रहा है---हिन्दू संस्कृति सेना वाले लाठी में तेल पिला रहे हैं--कि इस ’अप-संस्कॄति’ को इस साल फिर पानी पिलाना है-ऐसे खींच कर लाऊँगा स्सालों को कि सब "वैलेन्टाइनपन्ती" उतर जायेगी---पुलिस वाले अपनी दूरबीन साफ़ कर रहें हैं --नज़र रखनी है झाड़ पे झाड़ियों पे --पार्कों में --खण्डहरों में --झील पर --’कजिनपन’ पनपने नहीं देना है--सब स्साले कजिन कजिन कहते रहते हैं---
इधर मैं अपनी तैयारी में लग गया ।
इस बार ऐसा गीत सुनाऊँगा ,,वो बहर-ए-तवील गाऊँगा कि अपनी वैलेन्टाइन तो क्या उसकी 2-4 सहेलियाँ भी खीची चली आयेगी .... ’एम डी एच ’ मसाले’ की तरह ....खीचा चला आए ।
गीत गुनगुना रहा था --गीत बना रहा था ---.’अन्तरा’ के लिए ...अन्तरा नहीं बन पा रहा था ....मीठी मीठे शब्द खोज खोज कर ला रहा था । जेब का खाली कवि बस शब्दों से ही मन बहलाता है और -अपनी वैलेन्टाइन को ,। और वैलेन्टाइन ऐसी कि मात्र शब्दो से नहीं बहलती [ सच्ची वैलेन्टाइन तो श्रीमती जी हैं -श्रीमती जी की बात और है शायद उनके पास कोई दूसरा ’आप्शन नहीं है ]
एक मन दो बदन की घनी छाँव में
इक क़दम तुम चलो इक क़दम मैं चलूँ
आगे की लाईन सोच ही रहा था कि--
’वाह वाह वाह वाह ’- तालियां बजी-- मुड़ कर देखा श्रीमती जी खड़ी-हैं -" घुटने का दर्द ठीक हुआ नहीं... आपरेशन कराने के पैसे नहीं ......,चलने के क़ाबिल नहीं.... - और चले हैं ’वैलेन्टाइन से कदम-ताल करने" --जाइए जाइए अपने वैलेन्टाइन के पास ....घर की खाँड़ खुरदरी लागे ,बाहर का गुड़ मीठा । शिवसेना --बजरंग दल वाले जब मरम्मत करेंगे तो ’रिपेयरिंग’ कराने यहीं लौट कर आओगे ।
अरे ! इस उमर में अब कहां जाना ,पगली ।
जीवन भर तू साथ रही ,मुझको रही सँभाल
’वेलेन्टिन ? धत ,और कोई ?जीणौ कित्तै साल ?
पगली अब और कितने साल जीना है ? अयं
फिर क्या था ! बालकनी में ही बैठ कर वैलेन्टाइन डे मना रहे है श्रीमती जी और--प्याज पकौड़ी चाय के साथ ।
"अच्छा सुन --प्यार जताते हुआ सुनाया --"’अभी हमने जी भर के देखा नहीं है ।
’अच्छा’ -तो तू भी सुन--" अभी हमने जी भर के ठोंका नहीं है ] अभी हमने जी भर के---श्रीमती जी ने सुनाया ।
क्या नहले पे दहला मारा ...क्या तुकबन्दी भिड़ाई ...क्या ’डुयेट ’ गाया आखिर बेगम किस की हो ।रेडियो पर गाना बज रहा है ---दो सितारो का "यहीं" पर है मिलन आज की रात ...दो सितारों का,,,,
अब तो बालकनी ही मेरा ’पार्क’ .....घरवाली ही मेरी वैलेन्टाइन.......प्याज पकौड़ी चाय ही मेरी ’गिफ़्ट’
दुनिया जले जलती रहे.........
अस्तु--
आनन्द.पाठक-
गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022
सीएए पार्ट 2
सरकार ने एक कानून बनाया था जिस के अंतर्गत पाकिस्तान वगैरह से आये
हिन्दुओं, सिखों वगैरह को भारत की
नागरिकता दी जा सकती है. यह वह लोग हैं जो अपने देशों में अल्प-संख्यक थे और जो धार्मिक
उत्पीड़न के कारण उन देशों से भाग कर भारत
आये हैं. इस कानून को मुस्लिम विरोधी बता कर एक आंदोलन शुरू हुआ. इसके समर्थन में लेफ्ट
लिबरल लोग और कई राजनीतिक पार्टियाँ खुल कर सामने आईं. किस प्रकार के नारे लगे और
किस प्रकार लोगों को भड़काया गया वह सब ने देखा.
अब हिजाब को लेकर एक आंदोलन शुरू हो गया जो एक नगर से शुरू हो कर कई
नगरों में फ़ैल रहा है. हिजाब पहनने की हिदायत नई नहीं है, पर अपनी मर्ज़ी से हिजाब पहनने
का मुद्दा २०२२ में बना. ऐसे में परदे के पीछे छिपे लोगों की नियत पर संदेह होना
अनिवार्य है.
क्या इस आंदोलन को सीएए
पार्ट 2 आंदोलन नहीं कहा जा सकता?
इस बार भी, जैसा पिछली बार हुआ था, लेफ्ट-लिबरल लोग और राजनेता और
देश-विदेश के बुद्धिजीवी इस आंदोलन में कूद पड़ेंगे.
आज नहीं तो कल यह आंदोलन समाप्त हो जाएगा. पर क्या अब इस बात की पूरी
संभावना नहीं है कि निकट भविष्य में सीएए पार्ट 3, फिर सीएए पार्ट 4 भी हो? ऐसे
आंदोलन शुरू करने के लिए क्या मुद्दों की कोई कमी है इस देश में?
बुधवार, 9 फ़रवरी 2022
कौन से चांद हो तुम ?
उसने मुझसे पूछा :
सुनो, तुम
phobos हो ?
या europa ?
या Titan ?
या Ariel
Triton
या फिर
वो इकलौता सा वो
चांद हो तुम?
मैंने कहा :
ये तो तुम पे निर्भर करता है
तुम पृथ्वी हो
या mars
या Jupiter
या Saturn
या Neptune
या Uranus
तुम ही बताओ ...
कौन हो तुम ??
#बस_यू_ही
#ProposeDay
शनिवार, 5 फ़रवरी 2022
सरस्वती वन्दना
[ डायरी के पन्नों से---
नोट : आज वसन्त पंचमी है, और सरस्वती पूजा भी।
इसी क्रम में ------]
सरस्वती वंदना
हंसवाहिनी ! ज्ञानदायिनी ! ज्ञान कलश भर दे !
माँ शारदे वर दे ।
मिटे तमिस्रा कल्मष मन का
मन निर्मल कर दो जन जन का
वीणापाणि! सिर पर मेरे,वरद हस्त धर दे!
माँ! वागेश्वरी ! वर दे !
अंधकार पर विजय लिखे हम
सच के हक़ में खड़े रहें हम
निडर लेखनी चले निरन्तर, धार प्रखर कर दे !
!माँ भारती ! वर दे !
सप्ततार वीणा के झंकृत
हो जाते सब राग अलंकृत
बहे कंठ से स्वर लहरी माँ, राग अमर कर दे !
माँ सरस्वती ! वर दे ।
-आनन्द.पाठक-
बुधवार, 2 फ़रवरी 2022
सुनो न ..... मेरे जानां ....
Come on O love O come Connect
कर ले मुझ को तू select
ये है प्यार का effect
न करना दिल मेरा रिजेक्ट
सुनो न ..... मेरे जानां ....
मुझे है तेरी आरज़ू
मुझे तो सूझे तू ही तू
दिखे है तू ही चार सू
जहाँ हूँ मैं वहां है तू
ओ मेरे जानां ....
आये मुझे न अब तो चैन
दिखे है तू ही दिन औ' रैन
Have been trying to ban
ख़याल तेरे but I can't
करूँ मैं क्या .. तू ही बताना ....
तू खुदा की इक महर
आजा साँसो में ठहर
करेंगे थोड़े में बसर
फिर हो रात या सहर
आ जाना ..... मेरे जानां.. ....
Let our souls weave a song
"That to you, I belong
You won't ever do me wrong
And , till death we stay along ...
मंज़ूर है न ... मेरे जानां.. ....
My blog url : www.sandhyarathoreprasad.blogspot.com
कुछ अनुभूतियाँ
कुछ अनुभूतियाँ :
1
कितनी बार कहा है तुम से
भले बुरे का ज्ञान नहीं है,
दुनिया है तो लूटेगी ही
जीवन-पथ आसान नहीं है ।
2
मेरी छोड़ो, मेरा क्या है
मैं हूँ, दिल है, तनहाई है,
आह नहीं भर सकता हूँ मैं
उस मे तेरी रुसवाई है ।
3
’शुचिता’ हो जब मन के अन्दर
मन का दरपन और निखरता,
रंग प्रेम का जब मिलता है
निर्मल जीवन और सँवरता ।
64
दुनिया ख़त्म नहीं हो जाती
टूट गया दिल अगर कभी तो
यह तो मन की एक अवस्था
वरना आगे राह अभी तो ।
-आनन्द.पाठक-