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रविवार, 31 मई 2015

चन्द माहिया : क़िस्त 21



:1:
दिल हो जाता है गुम
जब चल देती हो
ज़ुल्फ़ें बिखरा कर तुम

:2:
जब तुम ही नहीं होगे
फिर कैसी मंज़िल
फिर किसका पता दोगे ?

:3:
पर्दा वो उठा लेंगे
उस दिन हम अपनी
हस्ती को मिटा देंगे

:4:
चादर न धुली होगी
जाने से पहले
मुठ्ठी भी खुली होगी

:5:
तोते सी नज़र पलटी
ये भी हुनर उनका
एहसान फ़रामोशी

-आनन्द.पाठक
09413395592

मेरी पहली दोस्त

जब हुआ मेरा सृजन,
माँ की कोख से|
मैं हो गया अचंभा,
यह सोचकर||

कहाँ आ गया मैं,
ये कौन लोग है मेरे इर्द-गिर्द|
इसी परेशानी से,
थक गया मैं रो-रोकर||

तभी एक कोमल हाथ,
लिये हुये ममता का एहसास|
दी तसल्ली और साहस,
मेरा माथा चूमकर||

मेरे रोने पर दूध पिलाती,
उसे पता होती मेरी हर जरूरत|
चाहती है वो मुझे,
अपनी जान से  भी बढ़कर||

उसकी मौजूदगी देती मेरे दिल को सुकून,
जिसका मेरी जुबां पर पहले नाम आया|
पहला कदम चला जिसकी,
उंगली पकड़कर||

http://hindikavitamanch.blogspot.in/2015/05/blog-post_13.html

शनिवार, 30 मई 2015

हो रहे जो हादसे ये बात कुछ तो ज़रूर है



...

हो रहे जो हादसे ये बात कुछ तो ज़रूर है,
आदमी जो आम है वो हर तरह बे-कसूर है |

कर रहे बदनामियाँ बिन फिर अदालत फैसला,
शख्स जिनपर हो सज़ा इस हादसे से दूर है |

बस्तियों में जल रहे हैं कागजों के वो मकां ,
दर्द अब जिसपे लिखा वो आदमी बे-कसूर है |

खो चुका वो अब भरोसा क्या खुदा औ नाखुदा
शख्स अब भी चुप खड़ा उसे हर सज़ा मंजूर है |

झूठ के पैबंद लगे हैं हर्षअब पोशाक पर
आदमी जिसपे लगें वो आदमी मशहूर है |

हर्ष महाजन


http://harashmahajan.blogspot.in/2009/04/ho-rahe-jo-haadse-yun-baat-kuchh-toh.html

बुधवार, 27 मई 2015

Laxmirangam: तुम्हारी नजर

Laxmirangam: तुम्हारी नजर: तुम्हारी नजर तुम्हें न जानें, कितनी अदाओँ में देखा लेकिन आज तक समझ नहीं पाया जब मेरे सामने खड़ी   नजरें झुकाए रहती हो, तो ...

Laxmirangam: कैंसर के कारक - तंबाखू और शराब

Laxmirangam: कैंसर के कारक - तंबाखू और शराब: कैंसर के कारक - तंबाखू और शराब ( http://www.rachanakar.org/2015/05/kainsar-ke-kaarak-tnbaakhoo-aur-sharaab.html बहुत बार सुना कि ...

रविवार, 24 मई 2015

एक ग़ज़ल : जादू है तो उतरेग ही...

जादू है तो , उतरेगा ही
सच बोलूँगा, अखरेगा ही

दिल में ख़ुदगरज़ी का आलम
कुनबा है तो बिखरेगा ही

अच्छे दिन जब फ़ानी थे तो
दौर-ए-ग़म भी गुज़रेगा ही

दरपन में जब वो आ जायें
सूना मन फिर सँवरेगा  ही

भटका है जो राह-ए-हक़ से
वक़्त आने पर मुकरेगा ही

होगा दिल जब उस का रौशन
फ़ित्नागर है ,सुधरेगा ही

साया हूँ उनका ही ’आनन’
रंग-ए-दिल कुछ उभरेगा ही

-आनन्द.पाठक-
09413395592

शब्दार्थ
फ़ानी   = ख़त्म होने वाला
दौर-ए-ग़म = मुसीबत के दिन
राह-ए-हक़ = सच्चाई के मार्ग से
फ़ित्नागर          = दहशतगर्द /उपद्रवी

मंगलवार, 19 मई 2015

आंसु भी बनने लगे है कि सपने













आंखियों मे आंसु मेरी थे ओ-साथी
सपनो कि आहट न कोई यहां थी
जब से हुये हो  तुम मेरे  अपने
आंसु  भी  बनने  लगे है  कि सपने

देख के हमको जो तुम मुस्कुरा दी
लाखों ये खुशियां इस मन में ला दी
मीठे  से अरमां  लगे  है मचलने
आंसु  भी  बनने  लगे है  कि सपने

परदा गिरा के जो तुमने दिया गम
नही जानते अब जियें या मरें हम
दिल का परिंदा  लगा अब तडपने
आंसु  भी  बनने  लगे है  कि सपने

शरमा के तुमने यें अंख जो मिला दी
इस जख्मी से दिल को बस इक दवा दी
अनदेखी सी हसरत  लगी है  पनपने
आंसु  भी  बनने  लगे है  कि सपने

जरा यूं सरक के तूमने इशारा किया है
डूबती कश्ती को इक किनारा दिया है
तेरे मुहल्ले के  लडके  लगे है कलपने
आंसु  भी  बनने  लगे है  कि सपने

लटो को जो अपनी यें झटका दिया है
गुलाबों को कितने ही बिखरा दिया है
धडकन भी अब तो लगी  है  महकने
आंसु  भी  बनने  लगे है  कि सपने

सुर्ख आंचल जो तुने यूं बिखरा दिया है
इन चिगांरियों को बस हवा सा दिया है
गर्म शोला सा तन में लगा है दहकने
आंसु  भी  बनने  लगे है  कि सपने


-जितेन्द्र तायल

रविवार, 17 मई 2015

नमूदार (प्रकट )होंगे तो जूते पड़ेंगे

आनंद शर्मा अगर कांग्रेस की अब भी समालोचना नहीं कर सकते और मोदी की तारीफ़ नहीं कर सकते तो बेहतर है चुप रहें नमूदार (प्रकट )होंगे तो जूते पड़ेंगे। सन्दर्भ मोदी की विदेश यात्राओं का है मेक इन इंडिआ को एक ब्रांड बनाने का है। काम करने वाले को देखकर दुनिया खुश होती है स्वयं अमरीका हतप्रभ है ये जान लेने को आज उतावला है आखिर मोदी में ऐसा क्या जादू है जो दुनिया उनके पीछे आ रही है। उनसे सहयोग को उतावली है।

कांग्रेस सौतिया डाह से सुलग रही है। वज्र की तरह देश उस मौनसिंह  का बोझ ढोता रहा और सोनिया देश के  सीने पे चक्की  चलाती रही।एक कठपुतली नुमा को सरकार के नाम पर अपनी उंगलियों के नीचे नचाती रही। अब सोनिया का खेल खत्म हो चुका है। जीजाजी की पोल खुलने वाली है। 

क्या आनंद शर्मा उस कोयला मंत्री को विदेश भेजेंगे जो कोयला खा गया उस खेल मंत्री को भेजेंगे जो खेलों का साज़ो सामान हड़प गया। क्या बतायेंगे उस इंडियन डायस्पोरा को जो गत दस सालों से शर्मशार था भारत की वंशधरता को लेकर। अब उसने स्वाभिमान के साथ दुनिया में सिर उठाया है वह आतुर है मोदी को सलाम करने को जिन्होनें एक देश का खोया हुआ स्वाभिमान दोबारा से हासिल करवाया है ।

कांग्रेस मोदी के पीछे पीछे कौन सा चेहरा भेजना चाहती है विदेशों में उनकी खुफिया गिरी करने को जब बात आज की  चलेगी तो ज़िक्र कल का भी होगा। कांग्रेस के दशानन चेहरे का भी होगा जिसने दस सालों में दस बड़े घोटाले किये।

क्या कहना चाहते हैं आनंद शर्मा। बेहतर हो मीडिया के सामने हाथ जोड़ दें बजाय कांग्रेस की भद्द पिटवाने के।

जय श्रीकृष्णा 

शुक्रवार, 15 मई 2015

एक ग़ज़ल : औरों की तरह .....



औरों की तरह "हाँ’ में कभी "हाँ’ नहीं किया
शायद इसीलिए  मुझे   पागल समझ लिया

जो कुछ दिया है आप ने एहसान आप  का

उन हादिसात का कभी  शिकवा  नहीं किया

उलफ़त न हो ज़लील , मुहब्बत की शान में

उसने दिया जो जहर  मैने जहर  भी  पिया

दो-चार बात तुम से भी करनी थी .ज़िन्दगी !

लेकिन ग़म-ए-हयात ने  मौक़ा  नहीं  दिया

आदिल बिके हुए हैं जो क़ातिल के हाथ  में

साहिब ! तिरे निज़ाम का सौ  बार  शुक्रिया

क़ानून भी वही है ,सज़ायाफ़्ता  वही

मुजरिम को देखने का नज़रिया बदल लिया

पैसे की ज़ोर पे वो ज़मानत पे है रिहा
क़ानून का ख़याल है ,इन्साफ़ कर दिया

’आनन’ तुम्हारे दौर का इन्साफ़ क्या यही !

हक़ में अमीर के ही  सदा फ़ैसला   किया

-आनन्द.पाठक-
09413395592

अमेठी फ़ूड पार्क

अमेठी फ़ूड पार्क

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल के लिए अमेठी का फ़ूड पार्क उनके गले की हड्डी बन गया है। लोकसभा में राहुल ने इस मुद्दे को ज़ोरदार हंगामे के साथ उठाया। इससे पहले उन्होंने वर्तमान सरकार के लिए चोर शब्द का बेहूदा इस्तेमाल भी  किया।सत्कार की भाषा तो इस शहज़ादे को आती नहीं है। क्योंकि भाषा बोध संस्कारों से जुड़ा होता है  और संस्कार ये दुर्बुद्ध उस महान महीयसी  के लिए  है जो गत  पांच दशकों में भी न तो इस देश की भाषा  सीख सकी हैं  न हिन्दुस्तानी तहज़ीब।

अमेठी फ़ूड परियोजना मूलतया यूपीए शासन काल में २०१०  में उठायी गई थी ,किन्तु पांच साल तक यूपीए सरकार सोती रही। लेकिन चुनाव से पहले राहुल की ज़िद पर अमेठी फ़ूड पार्क की घोषणा करा दी गई। इस फ़ूड पार्क को विकसित करने वाली आदित्य बिरला कम्पनी की ओर से सोलह जनवरी दो हज़ार तेरह (16.01.2013)को सहयोग के लिए यूपीए सरकार को चिठ्ठी लिखी गई। किन्तु यूपीए सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। कम्पनी से सरकार से सस्ती बिजली उपलब्ध कराने  की बात कही  थी। उन्होंने जगदीशपुर के गेलप्लांट से गैस देने की मांग भी की थी। आपको ये जानकार हैरानी होगी कि फ़ूड पार्क के लिए यूपीए सरकार के उस समय के पैट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने घरेलू प्राकृतिक गैस उपलब्ध कराने में असमर्थता व्यक्त कर दी थी। ये तो उस समय की बात है जब यूपीए सरकार की सोनिया का रूतबा पूरी बुलंदियों पर था। यूपीए सरकार ने इस योजना के साथ ऐसा व्यवहार किया जैसा कोई पिता अपनी सौतेली औलाद के साथ भी नहीं करता होगा।

आखिर उस समय श्रीमती सोनिया क्या कर रहीं थीं। क्यों नहीं उस समय श्रीमती सोनिया ने अपने अगूंठे के नीचे चल रही यूपीए सरकार का गला दबाया ?उल्लेखनीय है कि अपने उत्कर्ष काल  में इस यूपीए सरकार ने जिस योजना को २०१० में मंजूरी दी थी उसके लिए वांछित ७२ एकड़ की ज़मीन  में कमसे  पचास एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जाना ज़रूरी था। अक्टूबर दो हज़ार तरह तक अमेठी फ़ूड पार्क की इस परियोजना को यूपीए सरकार आठ बार विस्तार दे चुकी थी। बिना बात के बात ही बात में केंद्रीय सरकार के लिखित निर्णय को फाड़ कर  फैंक देने का नाटक करने वाले श्रीमान राहुल चुप रहे। इसके लागू न करने का दोष मोदी सरकार पर लगा रहे हैं ,उन्हें ज़मीन अधिग्रहण करने से किसने रोका था ?फिर इस सब के हुए बिना श्रीमती सोनिया और राहुल को अक्टूबर २०१३ में इस फ़ूड पार्क का शिलान्यास करते समय  थोड़ी सी भी शर्म  नहीं आई ?

शिलान्यास करके मुद्दे को छोड़ देना कांग्रेसियों की पुरानी आदत है। ऐसा ही व्यवहार राजीव गांधी ने राम मंदिर मुद्दे पर किया था।उससे जुडी अन्य योजनाओं का क्या होगा जिनकी घोषणा श्रीमती सोनिया और राहुल ने गला फाड़ आवाज़ में की थी। अब अमेठी ऊंचाहार रेल खंड योजना का क्या होगा ?रायबरेली एम्स की सेटेलाइट शाखा का कब काम करेगी। उस सैनिक स्कूल का क्या होगा जिसके लिए पचास एकड़ भूमि देने का चुनावी नारा दिया गया था। उस समय केंद्रीय विद्यालय और अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा भी की गई थी। यूपीए सरकार नेट्रिप  प्रॉजेक्ट (National Automotive Testing Research and Infrastructure Project,NATRIP )के लिए भी बढ़चढ़कर घोषणाएं   की थीं। लेकिन सभी योजनाओं के लिए न कोई साधन जुटाए गए और न ही वांछित ज़मीन का अधिग्रहण किया गया। कांग्रेस के लिए तो एक ही तरीका शेष बचा है कि श्रीमती सोनिया हो रही इस भद्द के लिए मनमोहन सरकार पर हमला बोल दें।अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए राहुल को भी यही करना चाहिए। मनमोहन सरकार ने इस मामले में कुछ किया ही नहीं मैं क्या करता ? अब पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह यदि अपनी आत्मा की आवाज़ सुनेंगे तो यही कहेंगे कि मैं क्या कर सकता था। श्रीमती सोनिया ने कुछ करने ही नहीं दिया। अब दरअसल ये सारा फसाद   श्रीमती सोनिया ओर  राहुल के बीच का है,और पिस रही है अमेठी की गरीब जनता। अब अमेठी की जनता को आगे सावधान हो जाना चाहिए कि परिवार -सीमित -कांग्रेस फिर कोई और छल न कर दे। लोगों की ये टिप्पणी बिलकुल सही बैठती है कि  श्रीमान राहुल और सोनिया जिस फ़ूड पार्क को अपने गले का हार बनाने जा रहे थे वह उनके गले का फंदा बन गया है।  

Rahul Gandhi's own UPA govt junked 

Amethi food park project in 2013

NEW DELHI: While Congress and Rahul Gandhi are accusing the Modi government of resorting to "politics of vendetta" on mega food park in Amethi, the documents accessed by Times Now show that the Amethi project was shelved by the UPA government in January, 2013.

Amethi food park's corporate partner pulled out due to the UPA government's decision of not allowing it to access natural gas from GAIL plant, Times Now reported on Wednesday. 

Earlier in the day, the issue of mega food park in Rahul Gandhi's constituency Amethi again generated heat in the Lok Sabha.

There were verbal exchanges between members of Congress and treasury benches after leader of the Congress Mallikarjun Kharge referred to the food park scrapped by the Narendra Modi government.

Alleging that "politics of vendetta" was being resorted to either by cancelling or not proceeding ahead with projects cleared by the erstwhile UPA regime, he came out names of several such projects including a canal project in Rajasthan named after Indira Gandhi and 1000-bedded National Cancer Institute as part of expansion of AIIMS in Delhi.

"If this is not politics of vendetta, what is it," Kharge asked.

He then referred to the statement made by food processing minister Harsmirat Kaur on the reasons for cancellation of the Amethi food park.

Immediately Kaur repeatedly sought to have a say, contending that her name has been taken by the Congress leader and she should be given right to reply.


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Amethi food park: Govt mounts counter attack on Rahul



Egged on by BJP members including Kirit Somaiya and ministers like Smriti Irani sitting by her side, Kaur pressed for having a say despite Speaker Sumitra Mahajan repeatedly telling her that she was not allowing her to speak.

Kaur's attempts angered Congress members who stormed into the well of the House forcing the Speaker to adjourn the House for 20 minutes.

The issue was first raised by Rahul in the House last week.

When the House re-assembled, the Speaker allowed Kaur to table her response drawing sharp reaction from the Congress members.

As the Speaker pacified the Congress members and took up the Negotiable Instruments Bill for consideration, some BJP members from Rajasthan raised slogans alleging that Congress was misleading the House on the Rajasthan canal project aimed at providing drinking water to some towns.

A visibly annoyed Speaker then adjourned the House till 2pm observing that the members did not appear to be in a mood for smooth conduct of the House.

Rahul Gandhi, Congress vice-president, had last week attacked the government over the issue and also accused Prime Minister Narendra Modi of practising politics of revenge.

(With inputs from PTI)

गुरुवार, 14 मई 2015

हुश - हुश पार्टी

हुश - हुश पार्टी 

लोकसभा में कांग्रेस के हंगामे के कारण सदन की कार्रवाई को तीन बार स्थगित करना पड़ा। कांग्रेस पार्टी ने फ़ूड पार्क मुद्दे पर वाक् आउट किया था। इस हंगामे और वाकआउट के पीछे कांग्रेस की मंशा ये थी कि महत्वपूर्ण विधेयक पारित न हो सकें। जो कुछ कांग्रेस ने लोकसभा में किया वही कुछ राज्यसभा में भी किया। विभिन्न अखबारों में छपी रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस के आक्रमण की कमान खुद सोनिया और राहुल ने संभाल रखी थी। 

हंगामे के बीच सोनिया और राहुल कांग्रेसी सांसदों को इशारे करते देखे गए। कांग्रेसी सांसदों को इशारों से भड़काने  का जो कौशल सोनिया में है उतना कौशल अबोध से दिखने वाले राहुल में नहीं है। कांग्रेस के लिए दरअसल वह दुर्भाग्य का दिन  था जिस दिन कांग्रेस सरकार ने लोकसभा और राज्यसभा की कार्रवाई को सीधे दिखाने का फैसला लिया था। टीवी से सीधा प्रसारण अब कोई लिहाज़ तो नहीं करता वह तो यांत्रिक पद्धति है ,इलेक्ट्रॉनि तंत्र है। देखने सुनने और पढ़ने वाले तो श्रीमती सोनिया के इशारों समेत उनके चेहरे पे आई मानसिक खीझ को भी देख  सुन और पढ़ लेते हैं। शायद यही कारण है कि  अब लोग राहुलसोनिया कांग्रेस को हुश -हुश कांग्रेस  कहने लगें हैं। हमें तो यह जानसुनकर अच्छा नहीं लगता पर यदि कांग्रेस अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आई तो ये बहुत सम्भव है कि राजनितिक फ़िज़ा में कांग्रेस पार्टी के लिए हुश -हुश पार्टी की संज्ञा प्रचलित हो जाए। क्या कांग्रेस पार्टी इस बात को नहीं समझती कि दर्शक उनकी अलोकतांत्रिक हरकतों से बेहद गुस्से में हैं। आखिर लोकतांत्रिक संवाद को ध्वस्त  कर सोनिया कांग्रेस इस राष्ट्र की जनता से किस जन्म का वैर निकाल रही है।  आखिर हुश -हुश पार्टी जो ठहरी। 

बुधवार, 13 मई 2015

"समीक्षा (बाल कहानी संग्रह) “चिड़िया मैं बन जाऊँ” (समीक्षक-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

समाज के सभी वर्गों के लिए सुपाठ्य
(बाल कहानी संग्रह)
“चिड़िया मैं बन जाऊँ”

     1975 से कथा विधा को निरन्तर गति प्रदान करने वाली श्रीमती पवित्रा अग्रवाल जालजगत पर एक जाना पहचाना नाम है। इनकी कहानियों की विशेषता यह है कि ये हर कथा में अपनी सार्थक सोच के साथ एक सन्देश भी पाठकों को देने का प्रयास करती हैं।
     कुछ दिनों पहले मुझे इनका बाल कहानी संग्रह “चिड़िया मैं बन जाऊँ” मिला था। मगर अपनी व्यस्ताओं के चलते इस पुस्तक के बारे में चाह कर भी कुछ नहीं लिख पाया था। आज कुछ फुरसत मिली तो मुझे अपने बुकशैल्फ मॆं यह पुस्तिका दिखाई पड़ गयी और कलम अपने आप कुछ लिखने को बाध्य हो गयी।
      मैं जानता हूँ कि जिस प्रकार बाल कविताओं को रचने के लिए खुद को बच्चा बनाना पड़ता है ठीक उसी प्रकार बाल कहानियों के लिए भी बच्चों का मनोविज्ञान समझकर बिल्कुल सीधी और सरल भाषा में रोचकता का आवरण लिए बाल कहानी रची जाती है। मैं समझता हूँ कि श्रीमती पवित्रा अग्रवाल इस कसौटी पर बिल्कुल खरी उतरतीं हैं।
     “चिड़िया मैं बन जाऊँ” बाल कहानी संग्रह में लेखिका द्वारा 25 बाल कथाओं का समावेश किया गया है। इस संग्रह की शीर्षककथा “चिड़िया मैं बन जाऊँ” में कथा की नायिका सपना एक छात्रा है जो एक स्वप्न देखती है कि वह चिड़िया बन गयी है और चिड़िया के रूप में उसे शत्रुओं से किस प्रकार अपने को बचाना होता है। यह सोचकर सपना के मन में भावों का प्रवाह निरन्तर चलता रहता है। साथ ही इस कथा से यह भी शिक्षा मिलती है कि बालकों को अपनी दैनिक प्रयोग की वस्तुओं को यथास्थान रखना चाहिए।
   संग्रह की दूसरी कहानी “दो चोटी वाली” शीर्षक से है। जिसमें लेखिका ने रुचि और श्रुति नामक दो बहनों के माध्यम से शरारती रुचि को एक ही विद्यालय में श्रुति के साथ पढ़ने को प्रेरित किया है।
    तीसरी कहानी “खाली कागज का कमाल” में लेखिका ने तुषार नामक बालक के माध्यम से यह सन्देश देने का प्रयास किया है कि जहाँ बुद्धि होती है वहीं बल होता है। तुषार के अपहृत हो जाने के बाद उसने अपहर्ताओं के कहने पर एक पत्र लिखा और उसे अदृश्य लेख लिखने वाली पेंसिल से दूसरे खाली कागज में अपना अदृश्य सन्देश लिख कर मूल पत्र को अपहर्ताओ के सामने यह कह कर लपेट दिया कि बाहर बारिश हो रही है और पत्र भीग न जाये। इस प्रकार वह बालक अपने बुद्धि-विवेक से अपहरणकर्ताओं के चंगुल से सकुशल छूट गया।
    अगली कथा “माँ मुझे माफ कर दो” एक छोटी उम्र के बालक बिन्नू की है जो कुसंगति में पड़कर काफी बिगड़ गया था मगर उसके दोस्तों को पुलिस द्वारा पकड़ लिए जाने पर उसे सद्बुद्धि आ जाती है।
     “समाधान” नामक कहानी रत्ना और प्रीति नामक दो सहेलियों की है जिसमें लेखिका ने पठन के प्रति रुचि जगाने का प्रयास किया है।
   होली पर्व पर आधारित “मुट्ठी भर गुलाल”, “मेरी कहानी”, रंगों की धारा”, “बड़ा दान”, “दण्ड या पुरस्कार”, “सोनम की समझदारी” “अवैतनिक सचिव” “कमाल का विचार”, “थोड़ी सी सूझबूझ”, “बहादुर बालक”, “रंग भरा गुब्बारा”, “फूलों की चाहत”, “एक मुहल्ला एक ही होली”, “विकलांगता का दुःख”, यादगार दीपावली”, “पतंग लूटने का मजा”, “जी का जंजाल”, “फौजी का बेटा”, “कपड़े की थैली क्यों” और “सवाल सुरक्षा का” ऐसी कहानियाँ हैं जो बच्चों के दैनिक जीवन से जुड़ी हुई हैं।     
“चिड़िया मैं बन जाऊँ” बाल कहानी संग्रह को पढ़कर मैंने अनुभव किया है कि कथा लेखिका पवित्रा अग्रवाल ने सरलता के साथ कहानी की सभी विशेषताओं का संग-साथ लेकर कहानी कला का जो निर्वहन किया है वह अत्यन्त सराहनीय है।
मुझे पूरा विश्वास है कि बाल पाठक ही नहीं अपितु सभी वर्गों के पाठक इस बाल कहानी संग्रह से अवश्य लाभान्वित होंगे और प्रस्तुत बाल कथा कृति समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगी।
(बाल कहानी संग्रह) 
“चिड़िया मैं बन जाऊँ”
लेखिका- पवित्रा अग्रवाल
प्रकाशक- 
 अयन प्रकाशन, 1/20-महरौली, नई दिल्ली-110030
मूल्य- 200-00 रुपये मात्र
इस कहानी संग्रह को श्रीमती पवित्रा अग्रवाल, घरोंदा, 4-7, इसामिया बाजार, हैदराबाद-500027 (आन्ध्र-प्रदेश) से भी प्राप्त किया जा सकता है।
अन्य जानकारी के आप इनके मोबाइल नम्बर-09393385447 तथा ई-मेल  agarwalpavitra78@gmail.com से भी प्राप्त कर सकते हैं।
दिनांकः 12-05-2015
                                  (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)
                                     कवि एवं साहित्यकार
                                     टनकपुर-रोड, खटीमा
                        जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262 308
Website.  http://uchcharan.blogspot.com.
 Phone/Fax: 05943-250129
Mobiles: 
09997996437, 08979159828, 
07417619828, 09368499921

मंगलवार, 12 मई 2015

आग में हाथ डालने से हाथ जल जाता है बबुआ

आग में हाथ डालने से हाथ जल जाता है बबुआ 

यूं भाषा का सम्बन्ध संस्कार से है। इस मंदबुद्धि बालक को संस्कार की भाषा तो आती नहीं हैं क्योंकि संस्कार तो उस महान महीयसी के लिए है ये बालक जो गत पचास सालों में भी भारत के लोकमन की भाषा हिंदी नहीं सीख सकी। इस बालक को लिहाज़ा क्या दोष दें। कहीं से इसने चोर शब्द सुन लिया और बस चोर चोर की रत लगाने लगा। 

इस बालक के गुरु खुद एक उम्र दराज़ मदारी हैं जिन्हें भोपाली के नाम से जाना गया है। इनके पुरखे १८५७ में अंग्रेज़ों की मुखबिरी करते थे अब ये सोनिया की कर रहे हैं। ये ही इस बालक को अपभाषा सीखा रहें  हैं।

ये वही बालक है जो अपनी हार्दिक संवेदनाएं भी मोबाइल से टीप टीप कर लिखता है। 

मालूम हो इस मंदबुद्धि बालक हो आग में हाथ डालने से हाथ जल जाता है।बेहतर हो भारत धर्मी समाज से कुछ सत्कार की भाषा भी सीख लें।अर्जुन का आर्जव भी। 

दुर्मुखों का संग छोड़ें। अपनी अम्मा से ये भी पूछें ये नेहरू की विरासत नेहरू गांधी की विरासत कैसे हो गई और कि गांधी से हमारा क्या सम्बन्ध रहा है ?  


'सूट-बूट की सरकार' पर राहुल गांधी का फिर वार, अब तो दिनदहाड़े आते हैं चोर


राहुल ने अपने भाषण के अंत में बहुत तीखा कटाक्ष करते हुए कहा, सुना था कि चोर सिर्फ रात को आते हैं, छुपकर आते हैं, खिड़की के अंदर से कूद कर आते हैं, लेकिन सबसे बड़े चोर दिन दहाड़े आते हैं, सबके सामने आते हैं, और सूट पहनकर आते हैं।


'सूट-बूट की सरकार' पर राहुल गांधी का फिर वार, अब तो दिनदहाड़े आते हैं चोर

http://www.ndtv.com/video/player/news/rahul-gandhi-repeats-suit-boot-charge-bjp-s-comeback-jijaji/367157

सोमवार, 11 मई 2015

What is a Collodion Baby?

अजब-गजब: अमृतसर में महिला ने दिया प्लास्टिक बेबी को जन्म

Collodion babyCollodion baby

 Collodion baby

Collodion Baby

All parents hope that their new born baby will be entirely normal. Words can not easily express the initial distress and shock of being told you have a collodion baby especially as parents receive little information about the condition in the first few days after birth. This article attempts to provide such information:
What is a collodion baby?
This is a medical term used by doctors to describe the appearance of a new born baby who appears to have an ”extra skin”. It is a descriptive term not a specific diagnosis or disorder. Parents often describe the appearance as;
  • being like an extra skin
  • having a sausage-like skin on the outside
  • a shiny film looking like I had just covered my child in Vaseline

Parents may notice that the eyelids and lips have a forced open appearance due to the tightness of the skin.

When will I know if I have a collodion baby?
This skin condition is rarely predicted during pregnancy.
Stage 1
The problem appears at the time of birth. The first thing that usually confronts the parents is either a doctor or midwife explaining that something is wrong and actually seeing the baby themselves with abnormal looking skin. Because the condition is so rare, it is not unusual for the medical personnel attending the birth to have little knowledge of the condition. Parents who have been through such an experience often say they were told ”their baby is abnormal but we are not sure what is wrong”. To know that something is wrong but to have no idea what is wrong can be very distressing in the early stages.
Stage 2
A collodion baby will have to be nursed in a humidified incubator in the first few days of life which can further increase the sense of isolation that parents may feel.
During this time it is likely that you will meet a number of other doctors, which can be somewhat bewildering. A children’s doctor (paediatrician) will arrive soon after the birth to look after your child and take over their care from the midwife or obstetrician (doctor involved in the pregnancy and delivery).
Stage 3
Depending on the level of expertise at your local hospital it is likely that you will see a dermatologist (skin specialist) within the first few days. Even dermatologists do not see this condition very frequently and they may choose to refer you on to a specialist paediatric dermatologist for assessment if they are not locally available.

What are the risks of being a collodion baby?
The baby can lose heat and fluid through the abnormal skin. This is easily avoided by applying a moisturiser to the skin. The condition is not thought to be painful or distressing to the child.
What happens to this extra skin?
The outer skin layer will shed off on its own within the first few days of life. Occasionally this process takes 1-2 weeks.
Then what is going to happen to my baby?
After the collodion skin is shed off the following possibilities can occur:
  • Normal skin
  • Abnormal scaling of the skin develops (called ichthyosis)
  • Lamellar ichthyosis (generalised)
  • Non-bullous ichthyosiform erythroderma
  • Limited lamellar ichthyosis
  • Other ichthyosiform syndromes (very rare)
It is frustrating that we can’t predict which of the above events will happen in the first few days of life. It is important that your doctor monitors the situation closely and deals with any problems if and when they arise.

What causes a collodion skin?
We do not know the exact cause but there appears to be an inherited or genetic abnormality in normal skin shedding.
Are there likely to be any internal problems with my baby?
No, in the vast majority of cases the problem is confined to the skin.


अमृतसर। आपको जानकर हैरत होगी कि पंजाब के अमृतसर जिले से लगभग 240 कलोमीटर दूर राजसंशी इलाके में एक महिला ने एक ऐसी बच्ची को जन्म दिया है जिसका पूरा शरीर प्लास्टिक का बना हुआ है। बच्ची के इस रूप को देखकर बच्चे के मां-बाप समेत डॉक्टर भी हैरान हैं। डॉक्टरों ने कहा कि बच्ची को एक विचित्र तरह का चर्म रोग है जिसका इलाज होना तुरंत होना जरूरी है।

बच्ची की प्रतिक्रियाएं भी काफी अलग हैं, जैसे ही इस बच्ची को कोई छूता है वो जोर-जोर से रोने लगती हैं तो वहीं दूसरी ओर इस बच्ची का मुंह हमेशा ही खुला रहता है जिसके कारण वो ना तो खा सकती है औऱ ना ही कुछ पी सकती है।


जहां स्थानीय लोग बच्ची को देखकर तरह-तरह की अंधविश्वासी बातें कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर डॉक्टरों का कहना है कि बच्ची को कोलोडिओन रोग है जिस बच्चे को यह रोग होता है उसकी चमड़ी शरीर से प्रत्येक तीन-चार सप्ताह में अपने आप उतरती रहती है। इस दौरान शरीर की चमड़ी फट जाती है, जो कि काफी दर्दनाक होता है। बच्ची के घरवाले बच्ची के स्वास्थ्य को लेकर बहुत ज्यादा चिंतित हैं, तो वहीं डॉक्टर बेबी का इलाज कर रहे हैं। उसे ड्राप के जरिये पानी और दूध पिलाया जा रहा है। जन्म के समय उसे और उसकी मां को कोई तकलीफ नहीं थी, बावजूद इसके कोलोडिओन बेबी का जन्म हुआ है।

Collodion baby










Collodion baby


The collodion baby is a descriptive term for the infant who is born encased in a tight shiny membrane that resembles plastic wrap. The collodion baby is not a disease entity but is the first expression of some forms of ichthyosis.

The collodion membrane cracks and peels over the course of several weeks. The tightness of the membrane may cause the eyelids to turn out revealing the pink inner lid; a condition called ectropionEclabium, the turning out of the lips due to the tightness of the membrane, may accompany the ectropion, and may cause difficulties with nursing. When the membrane is completely shed the infant may display one of several ichthyosis skin types. Congenital ichthyosiform erythroderma (CIE) and lamellar ichthyosis are the most commonly seen forms of ichthyosis presenting with a collodion membrane. However, the membrane may also be present in Netherton syndrome and other very rare forms of ichthyosis, and is always present with harlequin ichthyosis. A small percentage of infants shed the membrane and never display any other skin involvement; a phenomenon called “self-healing collodion baby.”

Collodion babies are at high risk of some complications. The cracking and peeling of the membrane increases the risk of infection from microorganisms. These infants are also at risk for fluid loss, dehydration, electrolyte imbalance, body temperature instability, and pneumonia. Collodion babies should be placed in a high humidity chamber, and monitored closely for complications. A high humidity environment will allow slow, gradual sloughing off of the membrane. The membrane will come off on its own and should not be peeled off.   Application of mild petroleum-based moisturizers may help the infant feel more comfortable while the membrane is peeling off.

A consult with a pediatric dermatologist will be necessary to determine which form of ichthyosis is present, if any. (Contact FIRST for a referral to a dermatologist familiar with ichthyosis.)

Collodion baby is the name given to a baby who is born encased in a skin that resembles a yellow, tight 

and shiny film or dried collodion (sausage skin). These babies are often premature.


The collodion membrane undergoes desquamation or peeling, which is usually complete by 2 to 3 weeks of life. This reveals the underlying skin disorder.


CAUSES 



The collodion membrane is due to abnormal desquamation (a peeling process). It is due to mutation of certain genes and is usually an autosomal recessive, congenital ichthyosis (scaly skin condition). However 10% of collodion babies have normal underlying skin – a mild presentation known as ‘self-healing’ collodian baby.


COMPLICATIONS

As the collodion membrane dries up it can crack leading to fissures. This affects the barrier function of the skin.
  • Infection
  • Overheating or cooling
  • Dehydration
Another concern is that the membrane acts like a thick film causing physical constraints of underlying tissues. This can create problems with:

  • Suckling and nutrition
  • Breathing
  • Ectropion (lower eyelids turned outwards away from the eyeball)
  • Constriction bands resulting in reduced blood supply and swelling of the limbs.
MANAGEMENT

The baby is usually transferred to a neonatal intensive care unit (NICU).
An incubator provides a humidified, neutral temperature environment. Other supportive treatments such as intravenous fluid and tube feeding are often necessary.
The aim is to keep the skin soft and attempt to reduce scaling. The collodion membrane should not be debrided (pulled off). Treatment may include:
  • Regular emollients such as petrolatum to keep the skin moist.
  • Pain relief such as paracetamol.
  • Mild topical steroids to reduce secondary inflammation.
  • Artificial tears if there is severe ectropion (outward turning eyelid).
Management requires the expertise of a dermatologist and the paediatric team. Other specialists that may need to be involved include
  • Ophthalmologist
  • Geneticist
  • Physiotherapist
The life expectancy and difficulties that the collodion baby faces depend upon the particular underlying condition.


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