“अरविंद केजरीवाल जी, कृपया मतदाताओं का
अपमान न करें”.
दिल्ली में सत्ता पाने के समय से ‘आप’ दल के नेताओं का जैसा व्यवहार रहा
है, उसे देख कर यह अनुमान लगाया जा सकता था कि दिल्ली एमसीडी चुनावों में पार्टी
की हार के लिए वह किसी न किसी को दोषी करार दे देंगे. संविधानिक संस्थाओं और
परम्पराओं का सम्मान करने का चलन उनके दल में नहीं है ऐसा हम सब ने देखा ही है. वह
उसी नियम-कानून के मानने को तैयार हैं जो उनकी समझ में सही है, भ्रष्टाचार की उनकी
अपनी परिभाषा है. ऐसे में उनसे अपेक्षा करना कि जनता के निर्णय का सम्मान करते हुए
वह इस निर्णय को विनम्रता से स्वीकार कर लेंगे गलत होगा.
चुनाव के नतीजे आने से पहले ही ‘आप’ के नेता जैसी बोली बोल रहे थे वह अपेक्षित ही थी. उनके किसी
नेता ने कहा कि अगर उनकी पार्टी की जीत होगी तो यह जनता का निर्णय होगा पर अगर बीजेपी
की जीत होती है तो यह ईवीएम् मशीनों के कारण होगी.
आज यही राग उनके नेता आलाप रहे हैं. ऐसा करके वह उन सब मतदाताओं का अपमान
कर रहे हैं जिनका लोकतंत्र में पूरा विश्वास है, जिन्होंने मतदान में भाग लिया.
समय-समय पर चुनाव हारे हुए नेता ऐसा राग अलापते रहे हैं. बीजेपी के नेताओं ने भी
ऐसी बातें कहीं हैं. पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस के नेता भी ऐसी बातें कहने लगें
हैं, हालांकि कांग्रेस के राज में ही इन मशीनों का प्रयोग आरम्भ हुआ था.
पर जितने भी नेताओं ने (या उनके प्रतिनिधियों ने) ईवीएम् मशीनों को लेकर
प्रश्न उठायें हैं उन में से आजतक एक भी व्यक्ति कोई ऐसा प्रमाण नहीं दे पाया
जिससे यह प्रमाणित हो कि ईवीएम् मशीनों के साथ छेड़छाड़ हुई थी.
और एक बात सोचने वाली है कि जनता तो जानती है कि उन्होंने किसे वोट दिए
हैं. आज तक देश की किसी भाग में मतदातों ने चुनावों की सत्यता या प्रमाणिकता पर
प्रश्न नहीं उठायें हैं. कहीं कोई आंदोलन नहीं हुआ, कहीं भी लोगों ने यह बात नहीं
उठायी कि ईवीएम् मशीनों का गलत इस्तेमाल हुआ है. अगर ईवीएम् मशीनों को इतने बड़े
पैमाने पर दुरुपयोग संभव होता तो क्या कोई सत्ताधारी पार्टी चुनाव हारती? क्या
मोदी जी तीन बार गुजरात में चुनाव जीत पाते? क्या दिल्ली में सत्ता परिवर्तन होता?
आज किसी टीवी पर हो रही चर्चा में ‘आप’ के नेता कह रहे थे ‘क्या कोई मुझे
“समझा” सकता है वगैरह-वगैरह’. मुझे उसकी
बात सुन हंसी आई. जब ‘आप’ ने यह तय कर ही लिया है कि ‘आप’ की हार का कारण मतदाता
नहीं, ईवीएम् मशीनों हैं तो ‘आप’ को कोई क्या समझा सकता है. कहावत है कि सोये को
जगाया जा सकता है, जागे को कौन जगा सकता है.
अरविंद केजरीवाल जी हम नहीं जानते कि ‘आप’ की क्या मजबूरी है जो आप सत्य को स्वीकार नहीं कर सकते. पर चुनावों
में मिली करारी हार के लिए ईवीएम् मशीनों को दोष देकर मतदाताओं का अपमान न करें. आपका संविधान में, संस्थाओं में,
लोकतंत्र में विश्वास हो न हो, देश के अधिकतर लोगों का विश्वास है, उनके विश्वास
का अपमान न करें, इसी में देश और समाज की भलाई है.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’समानान्तर सत्ता स्थापित करते नक्सली : ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएं