बुधवार, 24 मई 2017

एक ग़ज़ल : ज़रा हट के---ज़रा बच के---

           एक मज़ाहिका ग़ज़ल :---ज़रा हट के ---ज़रा बच के---


मेरे भी ’फ़ेसबुक’ पे कदरदान बहुत हैं
ख़ातून भी ,हसीन  मेहरबान  बहुत हैं

"रिक्वेस्ट फ़्रेन्डशिप" पे हसीना ने ये कहा-
"लटके हैं पाँव कब्र में ,अरमान बहुत हैं"

’अंकल’ -न प्लीज बोलिए ऎ मेरे जान-ए-जाँ
’अंकल’, जो आजकल के हैं ,शैतान बहुत हैं

टकले से मेरे चाँद पे ’हुस्ना !’ न जाइओ
पिचके भले हो गाल ,मगर शान बहुत है

हर ’चैट रूम’ में सभी हैं जानते मुझे
कमसिन से,नाज़नीन से, पहचान बहुत है

पहलू में मेरे आ के ज़रा बैठिए ,हुज़ूर !
घबराइए नहीं ,मेरा ईमान बहुत है 

’बुर्के’ की खींच ’सेल्फ़ी’ थमाते हुए कहा 
"इतना ही आप के लिए सामान बहुत है"

’व्हाट्अप’ पे सुबह-शाम ’गुटर-गूँ" को देख कर
टपकाएँ लार शेख जी ,परेशान बहुत हैं

आदत नहीं गई है ’रिटायर’ के बाद भी
’आनन’ पिटेगा तू कभी इमकान बहुत है

बेगम ने जब ’ग़ज़ल’ सुनी ,’बेलन’ उठा लिया
’आनन मियां’-’बेलन’ मे अभी जान बहुत है


-आनन्द.पाठक-
08800927181

शब्दार्थ
हुस्ना   = हसीना
इमकान = संभावना
"गुटर-गूं" = आप सब जानते होंगे नहीं तो किसी ’कबूतर-कबूतरी’ से पूछ लीजियेगा
हा हा हा


5 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आ0 आशा जी
      अच्छा लगा -जान कर खुशी हुई
      मगर यह न पता चला कि कौन सी बात अच्छी लगाई----कहीं मक़्ता तो अच्छा नहीं लगा--श्रीमती जी का मिसरा ऊला --कि---
      "आनन मियां ! बेलन में मेरी जान बहुत है"

      हा हा हा हा हा----

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25-05-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2636 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  3. आ0 दिलबाग जी
    िस स्नेह के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद
    सादर

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