मंगलवार, 25 सितंबर 2018

अस्तित्व

क्या यही संसार है?
क्या यही जीवन है?

झुठलाना चाहती हूं
इस सत्य को
पाना चाहती हूं
उस छल को

जो भटका देता है
छोटी सी नौका को
इस विस्तृत जलराशि में
डूब जाती है नौका
खो देती है अपना
अस्तित्व......!

भुला देता है संसार
उस छोटी सी नौका को
जिसने न जाने कितनों
को किनारा दिखाया !
सब कुछ खोकर भी
उस नौका ने क्या पाया?


अभिलाषा चौहान

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन एकात्म मानववाद के प्रणेता को सादर नमन : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

    जवाब देंहटाएं
  2. सादर आभार आपका आदरणीय सर बुलेटिन में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए 🙏 आपके मार्गदर्शन की सदैव अपेक्षा रहेगी

    जवाब देंहटाएं