शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

एक ग़ज़ल : कहाँ आवाज़ होती है--

एक ग़ज़ल : कहाँ आवाज़ होती है--


कहाँ आवाज़ होती है कभी जब टूटता है दिल
अरे ! रोता है क्य़ूँ प्यारे ! मुहब्बत का यही हासिल

मुहब्बत के समन्दर का सफ़र काग़ज़ की कश्ती में
फ़ना ही इसकी क़िस्मत है, नहीं इसका कोई साहिल

मुहब्बत का सफ़र आसान है तुम ही तो कहते थे
अभी तो इब्तिदा है ये ,सफ़र आगे का है मुश्किल

समझ कर क्या चले आए, हसीनों की गली में तुम
गिरेबाँ चाक है सबके ,यहाँ हर शख़्स है  साइल

तरस आता है ज़ाहिद के तक़ारीर-ओ-दलाइल पर
वो जन्नत की कहानी में खुद अपने आप से गाफ़िल

कलीसा हो कि बुतख़ाना कि मस्जिद हो कि मयख़ाना
जहाँ दिल को सुकूँ हासिल हो अपनी तो वही मंज़िल

न जाने क्या समझते हो तुम अपने आप को ’आनन’
जहाँ में है सभी नाक़िस यहाँ कोई नहीं कामिल


-आनन्द.पाठक-

9 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (20-04-2019) को "रिश्तों की चाय" (चर्चा अंक-3311) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    - अनीता सैनी

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  2. वाह बहुत खूब लिखा है आप ने.

    "कलीसा हो कि बुतख़ाना कि मस्जिद हो कि मयख़ाना
    जहाँ दिल को सुकूँ हासिल हो अपनी तो वही मंज़िल"

    गज़ब.....

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