रविवार, 6 अक्टूबर 2019

एक व्यंग्य : रावण का पुतला

[ विजय दशमी के पर्व पर विशेष----
एक व्यंग्य ----रावण का पुतला

 ---- आज रावण वध है । 40 फुट का पुतला जलाया जायेगा । विगत वर्ष 30 फुट का पुतला जलाया गया था। इस साल रावण का कद बढ़ गया । पिछ्ले साल से इस साल लूट-पाट ,अत्याचार ,अपहरण ,हत्या की घटनायें बढ़ गई तो ’रावण’ का  कद भी बढ गया।रावण बलात्कार नहीं करता था क्योंकि वह ’रावण’ था । रामलीला की  तैयारियाँ पूरी हो चुकी हैं  मैदान में भीड़ इकठ्ठी हो रही है । बाल-बच्चे,  महिलायें , वॄद्ध,  नौजवान सब धीरे धीरे ’राम लीला’ मैदान में आ रहे हैं ।आज रावण वध देखना है  । मंच सजाया रहा है । इस साल मंच बड़ा बनाया जा रहा है ।  इस साल वी0आई0पी0 -लोग ज़्यादा आयेंगे। सरकार में कई पार्टियों का योगदान है- सभी पार्टी के नेताओं को जगह देना  है मंच पर । पिछली साल ’अमुक’ पार्टी के नेता जी को मंच पर जगह नहीं मिली थी तो बिफ़र गये थे मंच पर ही ।-धमकी देकर गए थे---’हिन्दुत्व ’ पर ,आप का ही मात्र ’कापी -राईट’ नही है  है ? --हमारा भी है। इसी लिए तो ’काँग्रेस’  छोड़ कर इधर आये  वरना उधर क्या बुरे थे?  इस बार कोई दूसरा नेता न बिदक जाये -इस लिए मंच बड़ा रखना ज़रूरी है सबको जगह देना है --सबका साथ -सबका विकास और अब तो सबका विश्वास लेना ज़रूरी है । पता नहीं कब टाँग खींच दे । ’राम-सीता-लक्षमण-हनुमान ’ की जगह कम पड़ गई  -तो क्या हुआ ?-} उन्हें  जगह की क्या ज़रूरत ।वो तो सबके दिल में है  परन्तु वी0आई0पी0 लोगो को मंच पर जगह कम न पड़ जाये।
नेता आयेंगे।अधिकारी गण आयेंगे। रावण वध देखने। मंच पर वो भी आयेंगे जिन पर ’बलात्कार’ के आरोप हैं ---वो भी आयेंगे जिनपर  ’घोटाले’ का आरोप हैं ---वो भी आयेंगे जो ’बाहुबली’ हैं जिन्होने आम जनता के ’ खून’ का बूँद बूँद चूस कर अपने ’घट’ भरे हैं---रावण ने भी भरा था। वो भी आयेंगे जो कई ’लड़कियों’ का अपहरण कर चुके है -वो भी आयेंगे जिन पर ’रिश्वत’ का आरोप है ।’भारत तेरे टुकड़े होंगे’ वाले भी आयेंगे ।कहते है- आरोप से क्या होता है ? सिद्ध भी तो होना चाहिये। सब भगवान को माला पहनायेंगे--बगल में कोने में सिमटे ’राम’ जी सब सुन रहे हैं -उन्हे ’रावण वध’ करना है --इधर वाले का नहीं --सामनेवाले  का --पुतले का।
उधर रावण का पुतला खड़ा किया जा रहा है -भारी है । अपने पापों से भारी है ।सेठ जी ने बड़ा चन्दा  देख कर खड़ा करवाया  है।  कमेटी वालों ने येन केन प्रकारेण ’पुतला’ खड़ा कर के सीना चौड़ा किया और चैन की साँस ली । पुतला खड़ा हो गया मैदान में उपस्थित सभी लोगों ने तालिया बजाई । सब की नज़र में आ गया रावण का पुतला --उसका पाप --उसका ’अहंकार’ --उसका ’लोभ--उसका रूप ’ । यही तो देखने आए हैं इस मेला में। ऐसे पापियों का नाश अवश्य होना चाहिए} वध में अभी विलम्ब है। राम- लक्ष्मण जी अपना तीर धनुष लेकर पहुँच चुके हैं --मगर रावण को अभी नहीं मार सकते ।भगवान को इन्तज़ार करना पड़ेगा। मुख्य अतिथि महोदय अभी नहीं पहुँचे हैं।
मैदान में लोग आपस में बात चीत कर रहे हैं --समय  काटना है।
कान्वेन्ट के एक बच्चे ने रावण के पुतले को देख कर अपनी जिज्ञासा ज़ाहिर किया-"मम्मा हू इस दैट अंकल"?
"बेटा ! ही इज ’रावना’ --लाइक योर डैडू । रामा विल किल ’रावना’-थोड़ी देर में
बच्चे को -’डैडू’ वाली बात तो  समझ में नहीं आई ,पर ’रामा’ किल ’रावना’ वाली बात समझ में आ गई
उधर "हरहुआ’ अपने काका को बता रहा था  --’काका ! ई अब की बार का पुतला न बड़ा जानदार बनाया है } महँगा होगा?
काका ने अपना अर्थ शास्त्र का ज्ञान बताया--- हाँ  ,अरे ! बड़े आदमी का पुतला भी मँहगा होता है रे । हम गरीबन का थोड़े ही है कि एक मुठ्टी घास ले कर फूंक  दिया ---
रमनथवा की बीबी ने कान में अपने मरद से कुछ कहा -"सुनते हो जी ! हमें तो आजकल महेन्दरा की नीयत ठीक नहीं लगती---बोली-ठोली करता रहता है  --हमें तो उसकी नज़र में खोट नज़र आ रहा है---"
’अच्छा ! स्साले को ठीक करना पड़ेगा"-रामनाथ ने बोला--"बहुत चर्बी चढ़ गई है उस को . बड़ा ’रावण’ बने फिर रहा है ।छोड़ , तू रावण देख---"
उधर शर्मा जी ने माथुर साहब से कहा -" या या पुतला इज वेरी नाइस --बट  इट लैक ए ’टाई’
माथुर साहब ने हामी भरी ---यस सर ! हम लोग ’टाई ’ में कितना ’नाइस" लगता है--बेटर दैन ’रावना’
 भीड़ बेचैन हो रही थी । मुख्य अतिथि महोदय अभी तक पहुँचे नही ।मोबाइल से खबर ले रहे हैं --अरे  कितनी  भीड़ पहुँची  है मैदान में  अभी ?---नेता जी के चेला-चापड़ खबर दे रहे हैं - बस सर आधा घंटा और ।पहुँचिए रहें हैं लोग । नेता जी तो भीड़ से ही जीते हैं  ---रावण को क्या मारना ...?जल्दी क्या है ?--- रावण तो यूँ ही हर साल मरता है । चुनाव तो इस साल है।   राम जी उधर अपना डायलाग’ याद कर रहे हैं
--अब रावण भी बेचैन होने लगा। एक तो मरना और उस पर धूप में खड़ा होने की सज़ा ।पता नहीं ये मुख्य अतिथि का बच्चा कब आयेगा  उसका धैर्य अब जवाब देने लगा । अन्त में बोल उठा---
"हा ! हा ! हा! हा! मैं ’रावण’ हूं
भीड़ उस की तरफ़ मुड़ गई । ये कौन बोला --रावण कहां है --ये तो पुतला है । सभी एक दूसरे को आश्चर्य भरी दॄष्टि से देखने लगे- ये पुतला कहां से बोल रहा है?
"हा ! हा! हा! हा!’ -पुतले से पुन: आवाज़ आई-- मैं पुतला नहीं ,रावण बोल रहा हूँ ,! अरे भीड़ के हिस्सों ! मूढ़ों   तुम लोग क्या समझते हो कि तुम लोग मुझे मार दोगे? वाल्मीकि से लेकर तुलसी तक,राधेश्याम से लेकर नन्ह्कू हलवाई तक सभी ने मुझे मारा । क्या मैं मरा?  हर साल तुम ने मुझे मारा । क्या मैं मरा? तुम कहते हो कि मैने ’सीता का अपहरण किया ? क्या मेरे मरने  के बाद सीता का अपहरण बन्द हो गया । क्या तुम्हारे ’बाहुबली’ लोग अब सीता का  ’अपहरण’ नही करते?--उन्हें ’फ़ाइव स्टार’ होटल में क़ैद कर के नही रखते? कहते हो कि मैने छल किया --क्या तुम लोग छल नहीं करते ?मैं ’अहंकारी’ था .क्या तुम लोग सत्ता के नशे में ’अहंकारी’ नहीं हो?
हा हा ! हा! हा!
-----मैं मरता नही  अपितु ज़िन्दा हो जाता हूँ हर साल -----तुम्हारे अन्दर --- लोभ बन कर ,,,,हवस बन कर,,,, , छल बन कर ...अहंकार बन कर ---ईर्ष्या बन कर--परमाणु बम्ब बन कर --हाईड्रोजन बम्ब बन कर ।हर देश में ..हर काल में मैं ज़िन्दा रहा हूँ मैं । हर युद्ध में  ,हर मार काट में --कभी सीरिया में ----कभी लेबनान मे--- । तुम विभीषण’  को पालते हो क्यों कि वह तुम्हे ’सूट’ करता है ----तुमने कभी अपने अन्दर झांक कर नही देखा ---तुम देख  भी नही सकते -तुम देखना चाहते भी नही -तुम्हे मात्र मुझ  पर पत्थर फ़ेकना आता है --क्योंकि तुम्हे आसान लगता है --तुम अपने आप पर ’पत्थर नहीं  फ़ेंक सकते----- - मुझे जलाना तुम्हे आसान लगता है -तुम अपने अन्दर का लोभ नहीं जला सकते -मुझे मारना तुम्हे आसान लगता है ---तुम अपने आप का ’अहंकार नही मार सकते । - मेरा अहंकार स्वरूप दिखता है ---।तुम्हे मेरे नाम से नफ़रत है--तुम्हें अपने अन्दर की नफ़रत नहीं दिखती -कोई  अपने बेटे का नाम ’रावण’ नही रखना चाहता ----सब ’राम’ का ही नाम रखना चाहते हैं ---कई ढोंगी बाबा लोग तो राम के नाम की आड़ में क्या क्या कुकर्म नहीं करते ---ऐसा ही चलता रहा तो भविष्य में लोग ’राम’ का नाम  भी रखने में 2-बार सोचेंगे  । मैने  तो राम के नाम का सहारा नहीं लिया  -।  रावण एक प्रवॄत्ति है--उसे कोई नही मार सकता--अगर कोई मार सकता है बस--तुम्हारे दिल के अन्दर का ’रामत्व’ ही मुझे मार सकता है --- तुम राम नही ----अपने अन्दर का ’रामत्व’ जगाऒ ---क्षमा जगाओ----करुणा जगाओ--प्यार जगाओ -- मैं खुद ही मर जाऊँगा----

’या ही इज टाकिंग समथिंग नाइस’-- शर्मा जी ने कहा

माथुर साहब ने हुंकारी भरी--’ जब मौत सामने दिखाई देती है तो ज्ञान निकलता है  सर --दैट इज व्हाट एक्ज़ैक्टली ही इज टाकिंग’ सर !
कथावाचक ने जैसे ही अपने हारमोनियम पर तान छेड़ी---’रावन रथी ,विरथ रघुबीरा-----उसी समय मुख्य अतिथि महोदय अपने "रथ’ मर्सीडीज़ कार से पधारते भए।
माईक से घोषणा हुई --- भाइयो और बहनो ! आप के दुलारे और हम सब के चहेते मुख्य अतिथि महोदय अब  हमारे बीच पधार चुके है ---जोरदार तालियों से उनका स्वागत कीजिए। थोड़ी देर में ’रावण वध’ का आयोजन किया जायेगा
सब ने अपने अपने हाथ में पत्थर  उठा  लिए।
अस्तु
-आनन्द.पाठक

5 टिप्‍पणियां:

  1. सब आये रावण दहन करने लेकिन इस बार तो पानी फिर गया रावण दहन पर, अधजला रह गया, फिर भी लोग बाग़ खुश हो लिए

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी कविता जी !
      ’रावण’ अधजला रहा या अधमरा रहा ---’रावणत्व’ कब मरा है । रावण नहीं मरता
      इन्सानियत मरती है आदमियत मरती है---

      हटाएं
  2. प्रदूषण के राक्षस को मारना जरूरी यही तो इंसान को बदल कर भ्रष्टाचार और आपके रास्ते में ले जाता है हां वही प्रदूषण का राक्षस।

    जवाब देंहटाएं