शनिवार, 28 दिसंबर 2019


समझ के परे
नागरिकता कानून को लेकर देश में जो बवाल खड़ा करने का प्रयास हो रहा है वह समझ के परे है.
हो सकता है कि यह कानून संविधान का उल्लंघन करता हो,  पर इस बात का निर्णय तो उच्च न्यायालय ही कर सकता है. सडकों पर दंगे कर के तो यह बात तय नहीं हो सकती.
हो सकता है कि पाकिस्तान, बंगलादेश, अफगानिस्तान से आये मुसलमानों को भी भारत की नागरिकता देने का कोई जायज़ तर्क हो, पर उसके लिए कांग्रेस और उनके हिमायती लोगों को संसद में एक प्रस्ताव लाना चाहिए या अन्य किसी दूसरे तरीके से अपनी बात लोगों और सरकार के सामने रखनी चाहिए.
परन्तु पाकिस्तान, बंगलादेश, अफगानिस्तान से आये हिन्दू, सिख आदि लोगों को भारत की नागरिकता देने का कानून  किस प्रकार से भारत के मुसलमानों  के लिए अहितकर है यह  बात समझ के परे है. यह संशोधन  तो भारत के किसी नागरिक पर लागू ही नहीं होता. इसलिए किसी भी नागरिक का, चाहे वह किसी भी धर्म का क्यों न हो, इससे अहित हो ही नहीं सकता.
राजनेताओं से अपेक्षा करना  गलत होगा कि वह देश के लोगों को सही दिशा दिखाएँगे. उनका एक ही लक्ष्य होता, सत्ता की कुर्सी.
पर आम लोगों को तो थोड़ा बुद्धिमानी से काम लेना चाहिए. हर दंगे-फसाद में सिर्फ आम आदमी पिसता या मारा जाता है. लेकिन शायद यही दुर्भाग्य है हमारे देश का. आम आदमी हमेशा शतरंज का मोहरा बनता रहेगा.

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

चन्द माहिया

चन्द माहिया

01
रंगोली आँगन की
देख रही राहें
छुप छुप कर साजन की

02
धोखा ही सही माना
अच्छा लगता है
तुम से धोखा खाना

03
औरों से रज़ामन्दी
महफ़िल में तेरी
मेरी ही ज़ुबाँबन्दी

04
माटी से बनाते हो
क्या मिलता है जब
माटी में मिलाते हो ?

05
सच,वो न नज़र आता
कोई है दिल में
जो राह दिखा जाता

-आनन्द.पाठक-

शनिवार, 21 दिसंबर 2019

एक ग़ज़ल : झूट इतना इस तरह बोला गया---

एक ग़ज़ल : झूठ इतना इस तरह ---



झूठ इतना इस तरह  बोला  गया
सच के सर इलजाम सब थोपा गया

झूठ वाले जश्न में डूबे  रहे -
और सच के नाम पर रोया गया

वह तुम्हारी साज़िशें थी या वफ़ा
राज़ यह अबतक नहीं खोला गया

आइना क्यों देख कर घबरा गए
आप ही का अक्स था जो छा गया

कैसे कह दूँ तुम नहीं शामिल रहे
जब फ़ज़ा में ज़ह्र था घोला गया

बेबसी नाकामियों के नाम पर
ठीकरा सर और के फ़ोड़ा गया

हो गई ज़रख़ेज़ ’आनन’ तब ज़मीं
प्यार का इक पौध जब रोपा गया


-आनन्द.पाठक-

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

चन्द माहिया

चन्द माहिया

01
कुछ याद तुम्हारी है
उस से ही दुनिया
आबाद हमारी है

02
जब तक कि सँभल पाता
राह-ए-उल्फ़त में
ठोकर हूँ नई खाता

03
लहराओ न यूँ आँचल
दिल का भरोसा क्या
हो जाए न फिर पागल

04
जीने का जरिया था
सूख गया वो भी
जो प्यार का दरिया था

05
गिरते न बिखरते हम
काश ! सफ़र में तुम
चलते जो साथ सनम

आनन्द.पाठक