मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

शब्द गोखरू

अब जब 
पलट कर देखती हूं 
तो पाती हूं 
आवाज़ बेहद
 मीठी मिली थी मुझे 
मगर मेरे  शब्द 
गोखरू से रहे हमेशा 

बींधते रहे
लहूलुहान करते गए 
उस  प्राण और 
देह को,
जो मेरे प्रेम में 
लिप्त था 

और फिर
नादान बन
मैं उन्हीं प्रेम की 
विथियों में 
मृत प्रेम को
पुचकार के सतत 
पुकारती रही

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