गुरुवार, 23 जुलाई 2020

एक ग़ज़ल ; दीदार-ए-हक़ में ---

एक ग़ज़ल : दीदार-ए-हक़ में

दीदार-ए-हक़ में दिल को अभी ताबदार कर
दिल-नातवाँ को और ज़रा बेक़रार  कर

गुमराह हो रहा है भटक कर इधर उधर
इक राह-ए-इश्क़ भी है वही इख़्तियार कर

कब तक छुपा के दर्द रखेगा तू इस तरह
अब वक़्त आ गया है इसे आशकार  कर

कजरौ ! ये पैरहन भी इनायत किसी की है
हासिल हुआ है गर तुझे तो आबदार कर

हुस्न-ए-बुताँ की बन्दगी गर जुर्म है ,तो है
ऎ दिल ! हसीन  जुर्म  ये  तू बार बार कर

ऎ शेख ! सब्र कर तू , नसीहत न कर अभी
आता हूँ मैकदे से ज़रा इन्तिज़ार  कर

दुनिया हसीन है ,कभी तू देख तो सही
आनन’ न ख़ुद को हर घड़ी तू अश्कबार कर

-आनन्द.पाठक-

शब्दार्थ --

आशकार      = ज़ाहिर
कज रौ = ऎंठ कर चलनेवाला
पैरहन = लिबास
आबदार =चमकदार /पानीदार
हुस्न-ए-बुताँ की = हसीनों की
नासेह = नसीहत करने वाला
अश्कबार = आँसू बहाना

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही उम्दा लिखावट , बहुत ही सुंदर और सटीक तरह से जानकारी दी है आपने ,उम्मीद है आगे भी इसी तरह से बेहतरीन article मिलते रहेंगे Best Whatsapp status 2020 (आप सभी के लिए बेहतरीन शायरी और Whatsapp स्टेटस संग्रह) Janvi Pathak

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