शुक्रवार, 28 अगस्त 2020

एक ग़ज़ल

एक ग़ज़ल -- बेज़ार हुए तुम क्यों---


बेज़ार हुए तुम क्यों  , ऐसी भी  शिकायत क्या ?
मै अक्स तुम्हारा हूँ ,इतनी भी हिक़ारत क्या !     

हर बार पढ़ा मैने , हर बार सुना तुमसे ,
पारीन वही किस्से ,नौ हर्फ़-ए-हिक़ायत क्या ?     

जन्नत की वही बातें  ,हूरों से मुलाक़ातें ,
याँ हुस्न पे परदा है ,वाँ  होगी इज़ाजत क्या ?

तक़रीर तेरी ज़ाहिद ,मुद्दत से वही बातें ,
कुछ और नया हो तो ,वरना तो समाअत क्या ! 

हर दिल में निहाँ हो तुम ,हर शै में फ़रोज़ां  हो ,
ऎ दिल के मकीं मेरे ! यह कम है क़राबत क्या !

दिल पाक अगर तेरा ,क्यों ख़ौफ़जदा  बन्दे !
सज़दे का दिखावा है ? या हक़ की इबादत , क्या ?

मसजिद से निकलते ही,फिर रिन्द हुआ ’आनन’ ,
इस दिल को यही भाया ,अब और वज़ाहत क्या !

-आनन्द.पाठक--

16 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (२९-०८-२०२०) को 'कैक्टस जैसी होती हैं औरतें' (चर्चा अंक-३८०८) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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  2. तक़रीर तेरी ज़ाहिद ,मुद्दत से वही बातें ,
    कुछ और नया हो तो ,वरना तो समाअत क्या !

    हर दिल में निहाँ हो तुम ,हर शै में फ़रोज़ां हो ,
    ऎ दिल के मकीं मेरे ! यह कम है क़राबत क्या !-- बहुत खूब ल‍िखा पाठक जी

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  3. बहुत बहुत धन्यवाद सुधा जी
    सादर

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  4. आप यहाँ बकाया दिशा-निर्देश दे रहे हैं। मैंने इस क्षेत्र के बारे में एक खोज की और पहचाना कि बहुत संभावना है कि बहुमत आपके वेब पेज से सहमत होगा।

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