शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

एक युगल गीत

 एक  युगल   गीत 


कैसे कह दूँ कि अब तुम बदल सी गई
वरना क्या  मैं समझता नहीं  बात क्या !

एक पल का मिलन ,उम्र भर का सपन
रंग भरने का  करने  लगा  था जतन
कोई धूनी रमा , छोड़ कर चल गया
लकड़ियाँ कुछ हैं गीली बची कुछ अगन

कोई चाहत  बची  ही नहीं दिल में  अब
अब बिछड़ना भी  क्या ,फिर मुलाक़ात क्या !
वरना क्या मैं समझता----

यूँ जो नज़रें चुरा कर गुज़र जाते हों
सामने आने से तुम जो कतराते हो
’फ़ेसबुक’ पर की ’चैटिंग’ सुबह-शाम की
’आफ़-लाइन’- मुझे देख हो जाते हो

क्यूँ न कह दूँ कि तुम भी बदल से गए
वरना क्या मैं समझती नहीं राज़ क्या !

ये सुबह की हवा खुशबुओं से भरी
जो इधर आ गई याद आई तेरी
वो समय जाने कैसे कहाँ खो गया
नीली आंखों की तेरी वो जादूगरी

उम्र बढ़ती गई दिल वहीं रह गया
ज़िन्दगी से करूँ अब सवालात क्या !
वरना क्या मैं समझता नहीं-------

ये सही है कि होती हैं मज़बूरियाँ
मन में दूरी न हो तो नहीं  दूरियाँ
यूँ निगाहें अगर फेर लेते न तुम
कुछ तो मुझ में भी दिखती तुम्हें ख़ूबियाँ

तुमने समझा  मुझे ही नहीं आजतक
ना ही समझोगे होती है जज्बात क्या !

वरना क्या मैं समझती नहीं--------

-आनन्द.पाठक-

9 टिप्‍पणियां:

  1. गहनता लिए हृदय स्पर्शी रचना।

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  2. एक पल का मिलन ,उम्र भर का सपन
    रंग भरने का करने लगा था जतन
    कोई धूनी रमा , छोड़ कर चल गया
    लकड़ियाँ कुछ हैं गीली बची कुछ अगन


    वाह !!!
    बहुत भावपूर्ण सुंदर रचना !!!

    जवाब देंहटाएं
  3. एक पल का मिलन ,उम्र भर का सपन
    रंग भरने का करने लगा था जतन
    कोई धूनी रमा , छोड़ कर चल गया
    लकड़ियाँ कुछ हैं गीली बची कुछ अगन


    वाह !!!
    बहुत भावपूर्ण सुंदर रचना !!!

    जवाब देंहटाएं