शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

एक व्यंग्य : मुजरिम हाज़िर हो

  एक व्यंग्य : मुज़रिम हाज़िर हो....


’आनन्द.पाठक पुत्र [स्व0] श्री रमेश चन्द्र पाठक साकिन अमुक परगना अलाना जिला फ़लाना वर्तमान निवासी गुड़गाँव.....हाज़िर हो"- अर्दली ने अदालत के बाहर जोर से आवाज़ लगाई ।
-’अबे ! शार्ट में नहीं बोल सकता  क्या..? पूरे खानदान को लपेटना ज़रूरी था ?-मैने विरोध जताया
’-आप ने 10-रुपया दिया था क्या ? भला मनाइए कि मैने 4-पुरखों तक नहीं लपेटा-
मैने 10-का एक नोट थमाया और बोला-" बेटा आगे से ध्यान रखना’
’ठीक है स्साब ! ’सलाम स्साब !

और मैं अदालत कक्ष में बने कठघरे में जा कर खड़ा हो गया
-आप का कोई वकील ?--जज ने पूछा
-नहीं, मैं ही काफी हूँ। सच को झूठ की क्या ज़रूरत, जज साहब!?
’ठीक है।ठीक है। सरकारी वकील ज़िरह शुरु कर सकते है ।
सरकारी वकील -’हाँ ! तो आप का नाम ?
-आनन्द पाठक-
-पिता का नाम?
-उस अर्दली से पूछ लो जो अभी अभी आवाज़ लगा रहा था’
मै निश्चिन्त था। मेरा 10-रुपए का नोट अर्दली का मुँह नहीं खुलने देगा।
 सरकारी वकील ने कहा-’मैं आप से पूछ रहा हूँ । यह आप की कोई साहित्यिक मंच मंडली नहीं है कि जो चाहे बोल दें। अल्लम गल्लम लिख दे.और सब वाह वाह कर दें ।.यह अदालत है अदालत ।यहाँ कुछ भी बोलने की स्वतन्त्रता नहीं ।
- आप का पेशा ?
-व्यंग्य लिखना-
-मैं आप का पेशा पूछ रहा हूं रोग नहीं’- सरकारी वकील ने कुटिल मुस्कान लाते हुए पूछा
-तो आप डाक्टर हैं क्या ?-
-अच्छा ! तो आप व्यंग्य लिखते हैं?- तो आप व्यंग्य क्यों लिखते है ?
-कि समाज को आईना दिखाना है ।
- समाज को आईना क्यों दिखाना है?समाज से बिना पूछे “आईना दिखाना”- अनधिकॄति ’ट्रेसपासिंग’ अतिक्रमण का केस बनता है। जज साहब नोट किया जाए ।
- इसलिए दिखाता हूँ कि उसको अपना चेहरा नज़र आए-
-तुम्हें मालूम है? समाज अपना विभत्स और कुरूप चेहरा देख कर डर भी सकता है,?.अत: तुम समाज में डर फैला रहे हो ? -इस प्रकार अनावश्यक आतंक फैलाने से तुम्हारे ऊपर ’आतंक’ फ़ैलाने का भी केस बन सकता है-जज साहब नोट किया जाए ।
-नहीं । समाज डरता नहीं है, हँसता है।वो समझता है कि इस आईने में उसका चेहरा नही ,किसी और का चेहरा देख रहा है।
-अच्छा , इस तरह आईना चमकाने से कुछ लोगों की आँखे चौधियाँ भी सकती है । लोग अन्धे भी हो सकते है । .जमीर धुँधला भी सकता है ।जब जमीर अंधा हो जाएगा तब उन्हें कुछ भी नहीं दिखाई देगा,।,न भ्रष्टाचार..न बेईमानी..न भाई ,,न भतीजावाद, न सदाचार,न कदाचार ,न ’सदाचार की तावीज” ’,न अपना कुरूप चेहरा...इस तरह से तुम समाज को नुकसान पहुँचा रहे हो? अन्धों को भी आईना दिखाते हो क्या ?? --सरकारी वकील ने अपना जिरह जारी रखते हुए पूछा ।
-नहीं । अन्धी क़ौम को आईना दिखाने का कोई लाभ नहीं ।
-तो इस का मतलब, तुम ’हानि-लाभ’ देख कर लिखने का व्यापार करते हो ?-जज साहब नोट किया जाए ।यह आदमी  बिना ’लाईसेन्स’ का व्यापार करता है -इस पर "अवैध व्यापार’ का केस बनता है।
-नहीं मैं लिखता हूं~

सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना  मेरा मक़सद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
न हो तो , दुष्यन्त कुमार जी से पूछ लीजिए।
-इस हंगामा फ़ित्ना से सूरत बदली क्या ? -वकील साहब ने पूछा --तुम्हारे लेखन से समाज का भला हुआ क्या ? .लोग पढ़ते है और कहते हैं ’मज़ा आ गया ’....क्या बखिया उधेड़ी है....क्या जम कर धुलाई की है...क्या ’लतियाया है ? पानी पिला दिया .मज़ा आ गया .. बस यही न ? तुम्हारे लिखने से समाज से  भ्रष्टाचार मिट गया क्या...?? समाज सुधर गया.क्या .?? नहीं न ,तो फिर क्यों लिखते हो....?.
मैने कहा -वकील साहब !

दस्तकों का अब किवाड़ों पर असर होगा ज़रूर
हर हथेली खून से तर और ज़्यादा  बेक़रार

वकील साहब ने लगभग चीखते हुए कहा -’ जज साहब ! यह आदमी ’खून-ख़राबे’ की बात कर रहा है ।नोट किया जाय।
हाँ तो -और कौन कौन से लोग हैं तुम्हारे ’गिरोह’ में जिस से तुम्हें इस प्रकार के ’आतंकी ’कामों में मदद मिलती है ?
-गिरोह नहीं है ,’वर्ग’ कहिए वकील साहब ’वर्ग’। ..प्रेरणा  मिलती है। ,. बहुतेरे हैं । हम अकेले नहीं है ---हरिशंकर परसाई जी है...शरद जोशी जी है ..गोपाल चतुर्वेदी ..लतीफ़ घोंघी.. ...ज्ञान  चतुर्वेदी ...... शौक़त थानवी-- कृशन चन्दर.. फ़्रिंक तौंसवी --किन किन का नाम गिनाउँ..कहाँ तक गिनाऊँ ?...और गिनाऊँ क्या....
-अरे भूतिए ! इन विभूतियों के नाम अपने नाम के साथ क्यों घसीट रहा है ? ये महान विभूतियां है ..सम्मानित विभूतियाँ है ...पुरस्कॄति विभूतियां है ..ये समाज सुधारते है ..ये तुम्हारी जैसी गंदगी नहीं फैलाते.।
-तो क्या हुआ ? दर्द तो एक जैसा है ....प्यास तो एक जैसी है...
- हा हा हा ! ’ प्यास’ एक जैसी है ? अच्छा तो पैसे के मामले में तुम्हारी ’प्यास’ और अदानी -अंबानी माल्या...बियानी की ’ प्यास’ एक जैसी है क्या ???
--आर्डर आर्डर आर्डर...जज साहब ने 3-4 बार अपना हथौड़ा ठक ठकाया ।आप सिर्फ़ काम की ही बातें पूछें । फ़ालतू बातों से अदालत का वक़्त ज़ाया न करे॥--जज साहब ने हिदायत की ।
-अरे वकील स्साब ! यह मुजरिम टटपूंजिया ही सही ।पर है व्यंग्य लेखक वकील स्साब ...व्यंग्य लेखक। -आप बहस में इस से नहीं जीत पायेंगे"--- वादी पक्ष के लोगो ने अलग से नसीहत की ।
आर्डर आर्डर आर्डर...जज साहब ने 3-4 बार अपना हथौड़ा फिर ठक ठकाया --जज साहब ने कहा -हो गया ,हो गया । बहस पूरी हो गई।
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जज साहब ने अपना फ़ैसला सुनाया-- ’तमाम गवाहों के बयानात को मद्दे नज़र रखते हुए और मुज़रिम के बयानात को दरकिनार करते हुए अदालत इस नतीज़े पर पहुँची है कि मुज़रिम अपने लेखन से समाज में चेतना फैलाने की कोशिश कर रहा है। इस चेतना से जनता में क्रान्ति के बीज पड़ सकते है ।..जनता आन्दोलन कर सकती है। ,,बगावत कर सकती है अत: ऐसे लेखकों का ’बाहर ’रहना या ’रखना ’ जनहित में उचित नहीं है।समाज के लिए ठीक नहीं है । साथ ही यह अदालत इस लेखक के व्यंग्य लेखन की ’नौसिखुआपन्ती’ और ’ कच्चापना’  के देखते हुए  और सहानुभूतिपूर्वक  विचार करते हुए ताज़िरात-ए-हिन्द की दफ़ा  अलाना..फलाना...चिलाना--ढिकाना और .धारा अमुक अमुक अमुक ......में इसे ’अन्दर’ करती है और 3-महीने की क़ैद-ए-बा मशक्कत  की सज़ा देती है ।
-तुम्हें इस सज़ा के बारे में कुछ कहना है ?- जज साहब ने पूछा ।
"हुज़ूर ..जेल में मुझे कुछ सादे पन्ने मुहैय्या कराने की इज़ाजत दी जाये-मैने  गुज़ारिश की
-मंज़ूर है
-और एक अदद ’कलम’ भी
-नहींईईईईईई........ जज साहब की अचानक चीख निकल गई ...."नहीं ,’कलम’ की इज़ाजत नहीं दी जा सकती ...’कलम’ लेखक का घातक हथियार होता है और जेल में ’घातक हथियार’ रखने की इज़ाजत नही है।
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वादी पक्ष ने तालियाँ बजाई ।.जज साहब की जय हो. ।.एक और आईनादार ’अन्दर ’ गया ।.साहब ने सज़ा नहीं , सज़ा-ए-मौत सुनाई है ।---अगर सच्चा लेखक होगा तो 3-महीने में बिना "क़लम’ के  यूँ ही मर जायेगा वरना तो ये भी कोई ’टाइम-पासू"-लेखक होगा ।
अस्तु

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