शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

एक ग़ज़ल : क्या कहूँ मैने किस पे----

 एक ग़ज़ल :


क्या कहूँ मैने किस पे कही  है ग़ज़ल।

सोच जिसकी थी जैसी, सुनी है ग़ज़ल ।


दौर-ए-हाज़िर की हो रोशनी या धुँआ,

सामने आइना  रख गई है  ग़ज़ल   ।


लोग ख़ामोश हैं खिड़कियाँ बन्द कर,

राह-ए-हक़ मे खड़ी थी ,खड़ी है ग़ज़ल


वो तक़ारीर नफ़रत पे करते रहे,

प्यार की लौ जगाती रही है ग़ज़ल।


मीर-ओ-ग़ालिब से चल कर है पहुँची यहाँ,

कब रुकी या  झुकी कब थकी है  ग़ज़ल ।


लौट आओगे तुम भी इसी राह पर,

मेरी तहज़ीब-ए-उलफ़त बनी है ग़ज़ल।


आज ’आनन’ तुम्हारा ये तर्ज़-ए-बयां,

बेज़ुबाँ की ज़ुबाँ बन गई है ग़ज़ल।


-आनन्द.पाठक-


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