शनिवार, 24 अप्रैल 2021

एक ग़ज़ल

 

एक ग़ज़ल

सच कभी जब फ़लकसे उतरा है,
झूठ को नागवार  गुज़रा है।


बाँटता कौन है चिराग़ों को ,
रोशनी पर लगा के पहरा  है?


ख़ौफ़ आँखों के हैं गवाही में,
हर्फ़-ए-नफ़रत हवा में बिखरा है।


आग लगती कहाँ, धुआँ है कहाँ !
राज़ यह भी अजीब  गहरा है ।


खिड़कियाँ बन्द हैं, नहीं खुलतीं,
जख़्म फिर से तमाम उभरा है ।


दौर-ए-हाज़िर की यह हवा कैसी?
सच  भी बोलूँ तो जाँ पे ख़तरा है ।


आज किस पर यकीं करे ’आनन’
कौन है क़ौल पर जो ठहरा है ?

 


-
आनन्द.पाठक- 

 

गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

शीर्षा छंद (शैतानी धारा)

शैतानी जो थी धारा।
जैसे कोई थी कारा।।
दाढों में घाटी सारी।
भारी दुःखों की मारी।।

लूटों का बाजे डंका।
लोगों में थी आशंका।।
हत्याएँ मारामारी।
सांसों पे वे थी भारी।।

भोले बाबा की मर्जी।
वैष्णोदेवी माँ गर्जी।।
घाटी की होनी जागी।
आतंकी धारा भागी।।

कश्मीरी की आज़ादी।
उन्मादी की बर्बादी।
रोयेंगे पाकिस्तानी।
गायेंगे हिंदुस्तानी।।
========
शीर्षा छंद विधान -

"मामागा" कोई राखे।
'शीर्षा' छंदस् वो चाखे।।

"मामागा" = मगण मगण गुरु
(222 222 2),
दो-दो चरण तुकांत (7वर्ण प्रति चरण )
***************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

शुभमाल छंद "दीन पुकार"

सभी हम दीन।
निहायत हीन।।
हुए असहाय।
नहीं कुछ भाय।।

गरीब अमीर।
नदी द्वय तीर।।
न आपस प्रीत।
यही जग रीत।।

नहीं सरकार।
रही भरतार।।
अतीव हताश।
दिखे न प्रकाश।।

झुकाय निगाह।
भरें बस आह।।
सहें सब मौन।
सुने वह कौन।।

सभी दिलदार।
हरें कुछ भार।।
कृपा कर आज।
दिला कछु काज।।

मिला कर हाथ।
चलें सब साथ।।
सही यह मन्त्र।
तभी गणतन्त्र।।
==========
शुभमाल छंद विधान -

"जजा" गण डाल।
रचें 'शुभमाल'।।

"जजा" =  जगण  जगण 
( 121    121 ) , 
दो - दो चरण तुकान्त , 6 वर्ण प्रति चरण
*****************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

वो अफ़्साना

''वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
..........उसे इक ख़ूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा''

कई बार हर रिश्ते से पवित्र और सुखद दोस्ती का रिश्ता भी बिछड़ कर मिल ही जाता है , और ईश्वर कब कहाँ और कैसे इसकी रंगों के परत को उड़ा और कब कहाँ भर देता है इसका किसी को पता भी नही चलता है । एक दशक पहले जब सोशल साइट्स पर लोग जुड़ना शुरू किए थे तो लोग अपने परिवार के सदस्य मित्र और जान पहचान वालों की भी ख़ूब तलाश करते थे ।यह मायावी दुनिया किसी तिलिस्म से कम ना थी ।लोगों में दोस्ती करने की भी बड़ी ललक थी ।कोई मिल जाता तो बड़े हाल चाल पूछे जाते ।कहाँ से हो?... कैसे हो ??..किसको जानते हो ?? जैसे अनगिनत सवाल ।
आर्वी चेक रिपब्लिक में रहती थी तो फ़ेसबुक ट्विटर और ब्लॉग जैसे सोशल साइट्स पर ऐक्टिव भी रहती थी ।उसे लिखने का शौक़ था तो अपने विचार ऐसे माध्यम से व्यक्त भी किया करती थी ।लिखना उसका अपना शौक़ था और वह फ़ैशन की दुनिया में कार्यरत थी ।कभी रंगों के ताल-मेल के साथ शब्दों की भी अच्छा तालमेल कर जाती तो सभी चकित से रह जाते ।वह हिंदी और आंग्ल भाषा दोनो ही में बहुत ही अच्छा लिखती थी , उसकी दोनो ही भाषाओं पर अद्भुत पकड़ थी ।
अच्छा लेखन उसका फ़ेसबुक मित्र संख्या चार हज़ार के पार कर गयी सभी पढ़ते उसे ।उसी पाठक में एक पाठक था आरव रंजन ।उसके पोस्ट पर आरव ने अपने विचार रखे तो आर्वी धन्यवाद कह निकल गयी । दो तीन दिन बाद आरव का संदेश इनबॉक्स में भी पहुँच गया ।आर्वी ने हल्के से जबाब दिया और अपने काम में व्यस्त हो गयी ।सप्ताहंत और बर्फ़ भी बहुत गिर रही थी तो आज आउटिंग का कार्यक्रम स्थगित कर लैपटॉप ले कर बैठ गयी , कुछ ऑफ़िस के काम निपटा लिए फिर ट्विटर हैंडल पर ट्वीट किया और अब फ़ेसबूक पर status अपडेट करते ही कई विचारों की टिप्पडी की बरसात सी हो पड़ी ।शायरी का जबाब शायरी बहुत ही शायराना सा महोल बन गया और ख़ूब लिखती ही जा रही थी ।आरव का भी कई विचारों द्वारा आदान प्रदान हुआ ।आरव भी अच्छा लिख रहा था ,पर आर्वी अपनी धुन में थी ।
आरव साधारण सा पारिवारिक नेक दिल इंसान था और बातें करने को बेचैन भी रहता था। आरव ने आर्वी को संदेश भेजे लेकिन आदतन आर्वी ने उधर ध्यान नही दिया लेकिन जब वह खाली हुई तो उसने संदेश को देखा उसका जबाब दिया।आरव ने उससे दोस्ती की बात की, आर्वी के जबाब से संतुष्ट आरव ने उसे अपनी छोटी बहन बनने का आग्रह कर डाला, आर्वी का किसी भी रिश्ते पर कभी भी बहुत विश्वास नही था लिहाज़ा वह टाल गयी,लेकिन आरव अब जब बात करता आर्वी को कहता वह कितनी प्यारी है अगर उसकी कोई छोटी बहन होती तो बिलकुल उसी की तरह होती,आर्वी बातों को हंस कर टाल जाती।
आज सुबह जब आर्वी ने अपना फ़ेसबुक खोला उसने देखा आरव किसी रूप नाम की लड़की के status पर टिप्पडी में व्यस्त था,टिप्पडी में तारीफ़ पर तारीफ़,रूप भी हाज़िर जबाब हुए जा रही थी,अच्छी जुगलबंदी बनती दिख रही थी,यह सिलसिला अब अक्सर ही देखने को मिलने लगा था पर कुछ दिनो से ऐसा कुछ नही दिखा, इधर जब शायद आरव रंजन को रूप नही मिलती तो आर्वी से बातें करते और बातों में हज़ार सवाल करता कभी अपनी इच्छाओं कभी अपनी जीवनसगिनी कभी कुछ ऐसी बातें आर्वी से करता रहता था, आर्वी कभी कभी जबाब दे देती और कभी दो चार जबाब देकर फ़ेस बुक ही बंद कर चली जाती, इस तरह दोनो बातें तो करने लगे थे। आर्वी की तरह अब तक आरव की कई बहने फ़ेस बुक पर बन चुकी थीं।कुछ ही समय बाद फ़ेसबुक पर लिखने वालों ने किताब छपवा कर लेखक/लेखिका बन रहे थे।कवि सम्मेलन कर बड़े कवि और कवित्री के तमग़े से ख़ुद को नवाजे जा रहे थे।
शायद रूप भी अब बड़ी कवित्री के ओहदे को उठा चुकी थी वह विरासत में मिली हुई प्रतिभा को संभाल रही थी, लिहाज़ा आज आरव रंजन को रूप की ओर से बहुत तवज्जो नही मिल रही थी, आज आरव थोड़ा चिड़चिड़ा सा था और उसके पोस्ट पर कुछ तंज भरे लहजे में टिप्पडी लिखी थी, जिसे आर्वी ने पढ़ा और मुस्कुराकर मामले को समझ आगे बढ़ गयी।
आज आरव रंजन ने दो लाइन आर्वी से बातें करते करते लिखी ----

''हम को अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तिरा
कोई तुझ सा हो तो फिर नाम भी तुझ सा रक्खे''

आर्वी ने सोचा आरव ने यूँ ही लिखा दिया होगा शायद उसने कोई शायर को पढ़ लिया होगा।अब इस तरह कभी कभी आर्वी को आरव कभी दो कभी चार कभी कविता लिख भेजी, लगभग दो तीन सालों का साथ फ़ेसबुक पर दोनो का हो ही चुका था।एक दिन बात ही बात ने आर्वी ने कहा, '' इन बातों का क्या मतलब है मैं तो सिर्फ़ आप से बात कर लेती हूँ जस्ट लाइक अ फ़्रेंड ?आरव के स्वर कुछ तल्ख़ से हो उठे,उसने आर्वी से कहा फ़ालतू बातें ना करो आर्वी, '' तुम इतनी अच्छी हो सुंदर हो, वो बातें पुरानी हो चुकी हैं भूल जाओ उसे । इससे आर्वी को लगा कि आरव ने उसे कुछ ज़्यादा ही सोच रखा और अपने मन में कोई अलग ही जगह बना चुका है लेकिन कभी कभी आरव रंजन की बातें आर्वी को अटपटी सी लगती ।आर्वी की अपनी ज़िंदगी थी एक ख़ूबसूरत सा अच्छे पद पर कार्यरत स्मार्ट और उससे बेइंतहा प्यार करने वाला पति उसके सुंदर से प्यारे छोटे बच्चे ।एक अजनबी की रुहानी प्यार की बातें उसे बहुत लुभा नही पाती ,इधर उधर की बातें तक तो ठीक रहता था पर जैसे ही आरव आर्वी की तारीफ़ में कुछ लिखता ,उसे ऊब सी हो आती और आर्वी फ़ेसबुक बंद करके चली जाती । आज फिर आरव ने उसे सुंदरता की तारीफ़ करती हुई शायरी लिख भेजी,आज आर्वी भी उसकी इस बात को टोकते हुए बोली, '' आरव रंजन जी जब आपने दोस्ती की थी तो मुझे अपनी छोटी बहन कहा था न, तो फिर ये सब क्या है??
आरव के स्वर पहले ही तल्ख़ थे और आर्वी को लिखा तुम फ़ालतू बातें ना किया करो , वो बीती बातें हुईं, तुम इतनी ख़ूबसूरत हो.......ब्लाह...ब्लाह....ब्लाह
आर्वी ने अपना फ़ेसबुक बंद कर अपने काम में लग गयी ,फ़ुर्सत मिलने पर सोचने लगी क्या वास्तव में रिश्तों का कोई मोल नही या ज़रूरत के हिसाब से रिश्ते भी बनाए और सम्भाले जाते हैं । ख़ैर.......
आर्वी अब बातें बहुत ही कम करती इधर आरव और रूप सभी अपने अपने काम के सिलसिले में व्यस्त रहने लगे सभी आगे बढ़ते जा रहे थे । आर्वी भी धीरे धीरे सारी बातें समझ चुकी थी।इसी बीच आर्वी की माँ के अचानक निधन से आर्वी बुरी तरह टूट गयी।वह पूरी तरह अवसाद में चली गयी वह कई दिनो तक अस्पताल में रही अकस्सर अपनी माँ को याद करते करते बेहोश हो जाया करती थी, आर्वी के घर वालों को आर्वी को खोने का डॉक्टर सताने लगा था लेकिन डॉक्टरों के प्रयास ने आर्वी को काफ़ी हद तक ठीक कर दिया लेकिन हिदायत दी कि किसी तरह बात जिसे आर्वी के दिमाग़ पर असर डाले उससे आर्वी को दूर ही रखा जाय।
आर्वी ने अब आपने काम से पूरी तरह से दरकिनारा कर लिया।अब उसके पास पति बच्चे और ख़ुद उसका स्वास्थ्य ,जिसे सम्भालने में उसका पूरा समय निकल जाता।कभी कभी वह फ़ेसबुक खोलती उस पर उसने अपनी माँ की याद में पोस्ट डाली थी सामने आ जाती वह फिर बेचैन हो उठती।
लेकिन इधर कभी कभी आरव रंजन आर्वी से बातें करता और उस भारी समय में उसे दिलासे देता एक सच्चे और अच्छे मित्र की तरह।आर्वी को उससे हिम्मत मिलती थोड़ा दिमाग़ में भी माँ की लिखी बातों से पृथकता मिलती।लगभग साल बीत गया,समय ऐसे ही चलता रहता।आरव रंजन अपनी आदत की तरह उसे शायरी ग़ज़ल लिख भेजते लेकिन अब आर्वी असहज महसूस करती लिहाज़ा आर्वी आरव की इस आदत से बहुत ही जल्दी ऊब सी महसूस करने लगी थी और हर चीज़ आर्वी को जैसे तकलीफ़ ही दे रही थी आर्वी अपने ही हालात के आगे विवश थी और एक दिन उसने अपने फ़ेसबुक अकाउंट को ही हमेशा के लिए बंद कर दिया उसे बड़ा ही सुकून सा महसूस होने लगा लिहाज़ा उसे अपना यह निर्णय उचित लगा ।

लगभग दो साल बीतने के पश्चात आर्वी ने एक नया अकाउंट अपने दूसरे नाम 'आशि 'और तस्वीर के साथ बनायी और अब लिखने का सिलसिला फिर से शुरू किया, नए फ़्रेंड लिस्ट के साथ लिखने का नया कलेवर थोड़ा सुकून सा देने लगा था।परिस्थियों ने उसे और गम्भीर भी बना दिया था लिहाज़ा आर्वी की लेखनी समय की धार से और पैनी हो चली थी ।आर्वी किसी ग्रूप में कुछ लिखी थी उसपर कई लोगों के टिप्पडी से पोस्ट की रौनक़ कई दिनो से बढ़ रही थी ।आरव के भी उस पर कुछ शब्दों के फूल सजे गए थे ।आरव रंजन, आर्वी का हाथ माउस पर ही था उसने नाम पर क्लिक कर दिया ।
दो दिन बाद आरव की फ़्रेंड रिक्वेस्ट आर्वी के पास आ पहुँची ,आर्वी ने सोचा मित्र सूची में जोडू या न जोड़ूँ , इसी सोच में ही कन्फ़र्म बटन दब गया ।मित्र हो जाने के बाद आर्वी आरव की टाइमलाइन तक जा पहुँची ।उसने आरव की कलमकारी भी देखी पर अब आरव वैसा नही था । आरव की बहुत सी लिखी बातें आर्वी को दुखी कर गयी, आर्वी कोमल हृदय की लड़की थी शब्दों की बारीकी बख़ूबी समझती थी ।आरव ने हेलो लिखा । फिर इन बॉक्स , ये जनाब सुधरे नही आजतक कह मन ही मन आर्वी मुस्कुराई ।और जबाब भी दे दिया ।थोड़ी सी बातें हुई और आर्वी चली गयी ।
आदतन आरव आर्वी से अक्सर संदेश का आदान प्रदान करने लगा । दो तीन दिन आरव का कोई संदेश ना देख आर्वी को भी थोड़ी चिंता सी हुई आर्वी ने आरव से कारण जाने के लिए संदेश लिख भेजे । जबाब में आरव ने अपनी तबियत ख़राब की बात बताई और बातों ही बातों में आरव काफ़ी बातें भी कह गया ।आर्वी जाने अनजाने स्वयं को थोडी सी दोषी मान बैठी, आर्वी को लगा कि उसके माँ की निधन के बाद आरव उसको अकस्सर बातों से दिलासे देता था उसका मन इधर उधर बहल भी जाता था कभी नयी नयी शायरी कभी कुछ सवाल जैसे उस राह से उसे अलग ले जा रहे थे शायद समय आर्वी के अनुकूल हो रहा था, वजह जो भी रही हो।
आर्वी मन ही मन सोचने लगी आरव एक नेकदिल इंसान है ।शायद कहीं उसके दिल में भी एक दोस्त की कमी है जिससे वह खुल के बात कर सके ।पारिवारिक समस्याएँ टूटे सपनो को फीका रंग उसके सेहत पर साफ़ नज़र आ रहा था । आर्वी एक मनोविज्ञान की छात्रा रह चुकी थी लिहाज़ा उसका देखने का नज़रिया भी अलग था एक मनोचिकित्सक सी हर बात को समझ मानवता के धागे से आरव की समस्याओं को दूर करने की ठान ली जाने अनजाने उसने अपने ऊपर आरव रंजन के एहसान को एक दोस्त की तरह उतारना भी चाहती थी इसलिए उससे बंध गयी ।आरव अपनी सपनिली दुनिया में ख़ुश था । आज उसका जन्मदिन था और शायद आज पहले वह इतना ख़ुश कभी ना था ।आर्वी ने भी अपने बचपन का दोस्त इन दिनो में खो दिया था तो आरव में वह अपना वही दोस्त देख उसके साथ हो ली थी और उसे उसको उदास देखना अच्छा नही लगता था ।आज उसके जन्मदिन पर आर्वी ने शब्दों के गुलदस्ते और दोस्ती का साथ निभाने की वादे के साथ ढेरों शुभकामनाएँ भी दी ।आरव और आर्वी उस समय एक सच्ची दोस्त बन गये थे ।आरव का स्वास्थ्य भी अब सुधरने लगा था और आरव अब ख़ुश भी रहता था उसकी इसी ख़ुशी को देख आर्वी भी ख़ुश हो जाती थी ।
आर्वी हमेशा कहती ,
''हम से पूछो न दोस्ती का सिला
दुश्मनों का भी दिल हिला देगा
आदमी आदमी को क्या देगा
जो भी देगा वही खुदा देगा !!
लेकिन समय हमेशा एक सा नही रहता। आरव रंजन अपनी आदत के अनुसार आर्वी को एक कविता लिख भेजी।आर्वी ने अपना नाम तो बदल दिया था जिससे आरव रंजन उसे आर्वी नही समझ रहा था अब वह आशि थी।

जहाँ पर "रूप" छाया है
समझ लो तेरा साया है
वहाँ पर गम पराया है
वहीं सुख शांति होती है ।। रंजन

आर्वी/आशि ने कविता पढ़ते ही आरव से पूछा 'रूप' आपकी पत्नी का नाम है जिन्हें आप कोट कर लिखते हैं,अन्दाज़ क़ाबिले तारीफ़ है आपका। आरव ने सफ़ाई देते हुए कहा नही ये मेरी पत्नी का नाम नही यह मेरी काल्पनिक प्रेमिका है जिसका नाम अक्सर मेरी रचनाओं में होता है।आर्वी को समझते देर ना लगी ये रूप है कौन।सब कुछ जानते हुए भी आर्वी अनजान ही बनी रही।बातों ही बातों आरव रंजन ने आशि से आर्वी की बात भी कह डाली,कहा जहाँ से तुम हो वही से आर्वी थी क्या तुम आर्वी को जानती हो?
आशि ने आर्वी को ना जांनने की बात कही और सवाल करते हुए कहा कि क्या आर्वी आपकी कुछ ख़ास लगती थी क्या??
आरव रंजन ने इंकार करते हुए कहा कि, नही वह एक अच्छी लड़की थी बस ।
और बहुत अच्छा लिखती थी पर उसकी माँ के निधन के बाद उसे ना जाने क्या हुआ और वह फ़ेसबुक से अचानक ग़ायब हो गयी थी, बस कभी कभी उसकी फ़िक्र होती है।
आशि ने बात को टालते हुए बातों का रूख दूसरी ओर मोड़ दिया।
इस तरह बातों का सिलसिला तो चलता रहा।आरव रंजन का जन्मदिन आया तोहफ़े में आशि से एक अनोखा तोहफ़ा माँगा, आशि ने सहर्ष स्वीकार करते हुए एक कहानी में अपने विचारों को पिरोकर उसे तोहफ़े में दे दिया।
आरव रंजन ने आशि की लिखने के तौर तरीक़े से बहुत प्रभावित होते हुए उसे किताब छपवाने का प्रस्ताव दे डाला हालाँकि आरव ने आर्वी को भी यह प्रस्ताव दे रखा था पर आर्वी ने कभी भी कोई उत्साह नही दिखाया।इस बार कहानी की किताब की बात थी और आशि ने आरव रंजन की बात को रखते हुए उस पर पूरा विश्वास करते हुए किताब के लिए हाँ कह दिया । आशि अपनी कहानी को समेटने और उन्हें क़रीने से करने में जुट गयी अब आशि और आरव के बीच बात का ज़रिया किताब ही रहता, इस बात में कहीं आशि को लगने लगा था की उसकी कोई किताब नही छप सकती, यह बात उसने आरव रंजन से भी कही। आरव ने कहा तुम मुझ पर सारी बातें छोड़ दो।बातें बढ़ने लगी चैट और फ़ोन दोनो से दोनो बातें करने लगे और इसी बीच आरव ने अपने प्यार का इज़हार भी आशि से कर दिया लेकिन आशि ने कहा आरव जी हम एक अच्छे दोस्त है और हमेशा रहेंगे और मैंने आपको एक दोस्त के अलावा किसी और नज़र से नही देखा मेरे मन में आपके लिए बहुत इज़्ज़त है पर........
इसी बीच आशि ने भी अपनी सच्चाई बताते हुए कहा की वही आर्वी है और बोली मैं आपसे आपका प्यार का हक़ भी छीन रही हूँ........
आरव रंजन ने आर्वी से कहा तुम मेरी आदत हो....
आशि आर्वी बोली आरव जी आदतें समय के साथ बदल जाती है इसलिए मुझे ऐसे ना कहो आप....
आरव ने कहा मेरी आदत कभी नही बदलती......
समय गुज़रता रहा किताब में रिश्ते उलझ गये और रिश्ते की डोर खिच सी गयी....
आरव समय के साथ बदल गया....
आर्वी स्वाभिमानी और कर्मठ लड़की तो थी ही पर दिल की बहुत नाज़ुक और सीधी सच्ची लड़की थी...उससे आरव का रुखा और बदला व्यवहार समझ नही आ रहा था।
वह कारण जाने के लिए आरव को फ़ोन और संदेश देती अब आरव उसे अनदेखा करने लगा था।एक दिन आर्वी ने देखा आरव रंजन रूप की पोस्ट पर अपनी दुआएँ दिए जा रहा था अब यह बार बार होने लगा।अब आर्वी को सारी बात साफ़ साफ़ समझ आ गयी थी। शायद आर्वी की वह दुआ जो उसने आरव रंजन को दी थी कि मैं दुआ करूँगी की आपका प्यार आपको मिल जाय शायद खुदा के यहाँ क़ुबूल हो गयी थी। आरव रंजन की रूप उसे मिल गयी थी।आर्वी ने यह सब देख समझ कर अपने क़दम पीछे कर लिए और अब आरव रंजन को कभी ना परेशान करने के वादे के साथ आपना रूख पीछे की ओर मोड़ लिया था ।
आरव रंजन ने आर्वी को साहिर बना दिया था आशि ने दिल ही दिल में उसके किए के लिए शुक्रिया कहते हुए उससे दूर होने का फ़ैसला ले लिया।
आर्वी कहती थी कि-----
''वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा.............''
आर्वी को वही छोड़ आशि कहीं आगे निकलने के लिए अपने क़दम बढा दिए थे ।

Shweta Misra

सोमवार, 19 अप्रैल 2021

एक गीत : मैं अँधेरा अभी पी रहा हूँ--

 गीत  : मैं अँधेरा अभी पी रहा हूँ ---


मैं अँधेरा अभी पी रहा , इक नई रोशनी  के लिए


वैसे मुझको भी मालूम था, राज दरबार की सीढियां ,

वो कहाँ से कहाँ चढ़ गए, तर गई उनकी दस पीढियां,

मैं वहीँ का वहीँ रह गया, उनकी नज़रों में ना आ सका

सर को लेकिन झुकाया नहीं, एक मन की खुशी के लिए ।


मैं अँधेरा अभी पी रहा हूँ....


मोल सबकी लगाते चलें/ ,खोटे सिक्कों से वो तौल कर,

एक मैं हूँ कि मर-जी  रहा ,अपने आदर्श पर ,कौल पर,

जिंदगी के समर में खडा ,हार का जीत का प्रश्न क्या !

पाँव पीछे हटाया नहीं,  सत्य की  रहबरी  के लिए ।


मैं अँधेरा अभी पी रहा हूँ....


आरती हैं उतारी गई ,गुप्त समझौते जो कर लिए,

रोशनी के लिए जो लड़े ,रात में खुदकुशी कर लिए,

ना वो पन्ने हैं इतिहास के, ना शहीदों की मीनार में।

उसने जितना जिया या लड़ा, देश की बेहतरी के लिए ।


मैं अँधेरा अभी पी रहा हूँ....


आप क्या हैं खरीदे मकाँ , नाम का इक शिला-पट जड़े 

उनके सर पर न छत हो सकी , सत्य की राह पर जो खड़े 

जिंदगी ना मेरी भीख है,  ना किसी की ये सौगात है ,

मैंने जितना जिया आजतक, एक मन की खुशी के लिए।


मैं अँधेरा अभी पी रहा हूँ....


-आनन्द पाठक- 

रविवार, 11 अप्रैल 2021

श्रृंगार छंद "तड़प"

सजन मत प्यास अधूरी छोड़।
नहीं कोमल मन मेरा तोड़।।
बहुत ही तड़पी करके याद।
सुनो अब तो तुम अंतर्नाद।।

सदा तारे गिन काटी रात।
बादलों से करती थी बात।।
रही मैं रोज चाँद को ताक।
कलेजा होता रहता खाक।।

मिलन रुत आई बरसों बाद।
हृदय में छाया अति आह्लाद।।
बजा इस वीणा का हर तार।
बहा दो आज नेह की धार।।

गले से लगने की है चाह।
निकलती साँसों से अब आह।।
सभी अंगों में एक उमंग।
हुई जैसे उन्मुक्त मतंग।।

देख लो होंठ रहें है काँप।
मिलन की आतुरता को भाँप।।
बाँह में भर कर तन यह आज।
छेड़ दो रग रग के सब साज।।

समर्पण ही है मेरा प्यार।
सजन अब कर इसको स्वीकार।।
मिटा दो जन्मों की सब प्यास।
पूर्ण कर दो सब मेरी आस।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

एक ग़ज़ल

 एक ग़ज़ल 



इक क़लम का सफ़र, उम्र भर का सफ़र,

यूँ  ही चलता रहे,  बेधड़क हो निडर  ।


बात ज़ुल्मात से जिनको लड़ने की थी,

बेच कर आ गए  वो नसीब-ए-सहर।


जो कहूँ मैं, वो कह,जो सुनाऊँ वो सुन,

या क़लम बेच दे, या ज़ुबाँ  बन्द कर ।


उँगलियाँ ग़ैर पर तुम उठाते तो हो ,

अपने अन्दर न देखा, कभी झाँक कर ।


तेरी ग़ैरत है ज़िन्दा तो ज़िन्दा है तू,

ज़र्ब आने न दे अपनी दस्तार पर ।


झूठ ही झूठ की है, ख़बर हर जगह,

पूछता कौन है अब कि सच है किधर !


एक उम्मीद बाक़ी है ’आनन’ अभी,

तेरे नग़्मों  का होगा कभी तो असर ।



-आनन्द.पाठक-


गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

एक व्यंग्य व्यथा : फ़ेसबुक पर छींक

 एक व्यंग्य व्यथा : फ़ेसबुक पर छींक


"कल गुरू जी ने मुझे दीक्षित करते हुए कहा-बेटा जा तेरी शिक्षा पूर्ण हुई अब ’फ़ेसबु’क’ पर अपना कमाल दिखा। एक बात बात ध्यान रखना हर 7-दिन पर अपना "डी0पी0" ज़रूर बदलते रहना और हर 15- दिन पर कोई न कोई ”पोस्ट’ ज़रूर डालते रहना।अगर 1-महीना तुम फ़ेसबुक पर फ़ेस नहीं दिखाओगे तो दुनिया तुम्हें "इहलोक" से "उह लोक" समझ लेगी--मिश्रा जी ने सुबह ही सुबह आते हुए उचारा।
मिश्रा ! यह मेरा फ़ेस है ,फ़ेसबुक नहीं "- मैने कहा।

;नहीं फ़ेसबुक मेरी मोबाइल में हैं। कल एक पोस्ट डाली थी। 70-लाइक और 72- कमेन्ट मिल चुके हैं अबतक। तुम भी एक लाइक कर दो। ताई जी से
और बरतन वाली बाई जी से भी ’लाइक’ करवा दो तो अच्छा रहेगा ।--उन्होने अपना मोबाइल मेरी तरफ़ बढ़ाते हुए कहा-" लाइक यहाँ’।
"अच्छा तो तुम्हें भी 70 शूल 72 बाई का रोग हो गया"- मैने हँसते हुए कहा
’-क्या मतलब?
-मतलब तुम्हे समझ में नहीं आयेगा। भई बिना पढ़े कैसे ’लाइक’ कर दूँ ?
- रह गए तुम निरा घोंचू के घोंचू । पढ़ कर कौन लाइक करता है ? लाइक पहले करता है ,पढ़्ता बाद में है। पढ़ लेगा तो फिर लाइक नहीं करेगा "--मिश्रा जी ने अपना ज्ञान बताया।
- भाई मिश्रा ! मैं तो फ़ेसबुक पर इतनी कविता ग़ज़ल कहानी लिखता हूँ मगर 10-12 से ज़्यादा लाइक और 5-10 से ज़्यादा कमेन्ट कभी नही मिलता ।

"तुम ज़िन्दगी भर क्लर्की किए हो न । फ़ेसबुक पर नोट शीट पर नोट शीट, ड्राफ़्ट पर ड्राफ़्ट जैसा कुछ कचरा लिखते होगे। मैने तो ज़िन्दगी भर अफ़सरी की, ’वन-लाइनर-पोस्ट’ [ एक लाइन का पोस्ट] लिखता हूँ 100-50 कमेन्ट तो चुटकी बजाते मिल जाते हैं । मेरे बड़े साहब तो फ़ाइल में उतना भी नहीं लिखते थे । बस- ???-लिख देते थे । और मैं समझ जाता था । फ़ाइल पर जब मैं ’Done "
लिख देता था तब वह फ़ाइल पर "स्वीकृत" देते थे । दुनिया समझती थी ’कम्प्लाएन्स डन"-।- साहब समझता था ’लिफ़ाफ़ा-डन" । सरकारी भाषा में इसे "सरल भाव सम्प्रेषण पद्धति"कहते है।बाद में कोई बदमाशी करता था तो साहब "स्वीकृत" के आगे "अ-" बढ़ा देते थे।
तुम भी ’वन लाइनर पोस्ट किया करो।

-"भई मिश्रा ! कौन सा वन लाइनर पोस्ट कर दिया था कल तुमने कि -- ।"
-यही कि -आज मैने छींक मारी--
-इस पर 70-लाइक 72- कमेन्ट ???
भगवान भला करे तुम्हारे चाहने वालों का -मैने कहा
-भगवान भला तो कर ही रहा है ’फ़ेस बुक ’ वालों पर।तुम्हें मालूम है एक से बढ़ कर एक कमेन्ट आए -मिश्रा जी उत्साह में आकर बताने लगे।
10-20 तो ’स्माइली" वाले "आइकान " थे 10-20 थोबड़ा लटकाए वाले आइकान थे जैसे तुम्हारा है।
एक ने लिखा --छींक किधर से मारी ,नाक से मारी या ---? छी-- छी-- छी --कैसे कैसे कमेन्ट करते हैं ये लोग। एक ने लिखा -छींक मारते समय आँख बन्द थी कि खुली थी?
एक व्याकरणाचार्य जी तो सवाल ही कर बैठे- श्रीमान ! क्या आप को मालूम है कि "छींकना" एक अकर्मक क्रिया है ?आप ’छींक" से ज़्यादा हिंदी पर ध्यान दें।
एक ने लिखा किस दिशा में छींक मारी --ईशान कोण से से अग्नि कोण से ? जब आप ने छींक मारी तो सम्मुख कोई था ? क्योंकि शास्त्रों में लिखा है -

सम्मुख छींक लड़ाई भाखै
छींक दाहिनी द्रव्य विनाशै
ऊँची छींक कहे जयकारी
नीची छींक होय भयकारी

कोई ज्योतिषी भाई थे।
एक सज्जन ने लिखा -

-" रऊआ छींक मारीं तऽ खेल हो जाई
सगरॊ अँगना "करौउना" फ़ईल जाई

बाद में मालूम हुआ कि कोई पूर्वांचली भाई थे ।बम्बई फ़िल्मों में भोजपुरी गीत लिखने गए थे कि प्रोड्यूसर ने वापसी का टिकट थमाते हुए कहा था--सर !आप अपने "अँगना" मे बैठ के गीत लिखें ।अच्छा लिखते हैं । तब से वह फ़ेसबुक के अँगना में गीत लिखते है।
एक महाशय ने तो अपना -वन लाइनर- जोड़ दिया "

आज मैने छींक मारी
हरहूँ नाथ मम संकट भारी

मालूम हुआ कि वह महाशय किसी मंच पर किसी दिए हुए मिसरे पर "गिरह" लगाते है।

एक ने पूछा कि जब आप ने छींक मारी तो संसद में ’विश्वास मत" तो पेश नहीं होने जा रहा था ? । एक छींक से मैने सरकार गिरते देखा है।
एक ने लिखा -आप ने मुँह पर मास्क लगा कर छींक मारी कि मास्क हटा कर ? अगर मास्क हटा कर छींक मारी तो करोना काल में आप समाज के लिए
घातक और अवांछित व्यक्ति हैं ।भारतीय दंड संहिता धारा अमुक--अमुक-- के तहत आप -बाक़ी आप स्वयं समझदार है।
शायद कोई वकील साहब थे।

एक फ़ेसबुकिया डाक्टर ने सलाह दी कि आप अपने नाक का सी0टी0 स्कैन करा लें -इसे आप साधारण नज़ला जुकाम न समझें -आप के नाक में कोई गंभीर रोग न पल रहा हो। नास्ट्रिल कैन्सर भी हो सकता है । मिलिए गली नं 5 खोली नं 4 मोबाइल नं ---- । पहला कन्सल्टेशन फ़्री।

भाई साहब !जानते हैं इस ’वन-लाइनर’ के लिए एक मंच वाले ने " वन-लाइनर आफ़ द मन्थ " -का प्रथम पुरस्कार भी दिया है । 10-20 बधाइय़ाँ तो उस पुरस्कार पर ही मिल गईं।
एक ने लिखा---दूसरे ने लिखा "-तीसरे ने लिखा --- इससे पहले कि मिश्रा जी अपना कमेन्ट गाथा और विस्तार से सुनाते मैने बात बीच में ही काट दी--" बस बस ,बहुत हो गया । आप से ज़्यादा तो आप की ’छींक’ वायरल हो गई।
-गुरुदेव ! मुझे भी 1-2 ’वन लाइनर वाला पोस्ट बता दो। कम से कम मेरे गीत ग़ज़ल माहिया व्यंग्य पर मिलने वाले कमेन्ट से ज़्यादा ही कमेन्ट मिलेंगे।
मिश्रा जी ने 2 मिनट के लिए अपनी आँखें बन्द की और फिर प्रस्फुटित हुए। बोले आप पोस्ट डाल दो -

’आज के कुछ लेखक घमंडी होते हैं--

--"कुछ"-शब्द ज़रूर लिखना वरना तुम भी लपेटे में आ जाओगे।
धन्य हो प्रभु ! आप महान हो-मैने दोनों हाथ जोड़ लिए।

अस्तु

-आनन्द.पाठक-

मंगलवार, 6 अप्रैल 2021

कुछ अनकही सी …………!: ख्वाब

कुछ अनकही सी …………!: ख्वाब: नन्ही  नन्ही आँखों के वो नन्हे से ख्वाब सुनहरे थे कुछ बिखरे कुछ सवरे जो भी थे वो थे मेरे अपने थे नन्हे से घरोंदें में तेरे मेरे ही दिन ...

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

इत्तफ़ाक़

इवा .....
इवा .....
(अन्या अपने पति और बेटे के साथ लाउंज की ओर जा रही थी क्यूँकि अभी उसकी फ़्लाइट के जाने में समय था )
अन्या ने पीछे मुड़कर देखा और सोचा यहाँ एयरपोर्ट पर उसे उसके बचपन के नाम से कौन उसे पुकार सकता है भला .......
हो सकता है किसी और का कोई नाम ले रहा हो .....
इवा .....इवा ....मैं आपको ही आवाज़ दे रहा हूँ ...
अरे मुझे पहचाना नही .... मैं ...मैं ....
इवा रुक गयी ....और अपने पति और बेटे से बोली ..कौन है ये जो मुझे मेरे इस नाम से बुला रहा है ??
डयूटी फ़्री शाप से एक आदमी दौड़ता हुआ (शायद कुछ समान ख़रीद रहा था ) बाहर इवा के पास आया और बोला ...
अरे आप तो बिलकुल वैसी की वैसी ही हैं ....बस थोड़ी सी बड़ी हो गयी हैं और पहले से थोड़ी सी ज़्यादा सुंदर और स्मार्ट ....लेकिन अब भी वही शॉर्ट्स वही लोंग टॉप वही टिक टाक फ़ुट वियर कह कर वह ज़ोर से हँसने लगा ।
आवाज़ तो सुनी सुनाई सी लग रही है और चेहरा भी कुछ जाना पहचाना सा लग रहा है लेकिन ....ख़ुद में ही ख़ुद के सवालों में उलझी माथे पर बढ़ती सिलवटें अन्या को परेशान किए जा रही थी, आख़िर ये शख़्स है कौन ? क्यूँ मुझे याद नही आ रहा कहाँ मिली हूँ इससे ?
वह सोच ही रही थी कि उस शख़्स ने अन्या से फिर कहा, ''परेशान होकर आप कितनी प्यारी लगती हैं बिलकुल जैसी बचपन में लगती थीं , मासूम सी ।
अरे मुझे नही पहचान पा रहीं हैं आप, '' मुस्कुराते हुए उसने अन्या से कहा ।
अंन्या के पास जा कर उसने धीरे से कहा, ''कहिए तो फिर से कह दूँ, '' निष्ठुर ।
ओह माई गॉड...... तुम .....विक्की .....तुम यहाँ क्या कर रहे हो ??कहाँ जा रहे हो तुम ??और बड़े स्मार्ट हो गये हो मुझे इतने सालों बाद भी तुम देख कर एक बार में ही पहचान गये, मान गयी मैं तो तुम्हें , ''अन्या ने अपने चिर परिचित आवाज़ में विक्की से बोला ।
आप किधर जा रही हो पहले ये तो बताओ ...?
मैं ....मैं वापस अपने घर जा रही थी अन्या ने हल्की सी मुस्कान होठों पर बिखेरते हुए कहा ।
मतलब ..... घर तो यहीं है ना तो आना होगा न जाना कैसे ??
मैं समझा नही आपकी बात इवा, ''विक्की ने आश्चर्यचकित हो अन्या से पूछा ।
अन्या ने कहा, '' हमें कई साल हो गये हैं जर्मनी में रहते हमने वहाँ की सिटीजनशिप ले ली है तो अब घर हमारा भारत में न हो कर जर्मनी में हो गया है ।
ओह हो .....मतलब आप पूरी की पूरी ही विदेशी हो गयी हैं और सारी की सारी उमीद ही एक झटके में आपने तो तोड़ ही दिया, '' विक्की ने अन्या से कहा ।
इनसे मिलो ये मेरा बेटा है और ये मेरी ज़िंदगी ....हम साथ ही जा रहे हैं तो घर ही जाऊँगी ना .....कहते हुए अन्या खिलखिला कर हंस पड़ी ।
विक्की ने तपाक से बोला, बेटा तो कहीं से नही लग रहा आपका, कोई बॉय फ़्रेंड लग रहा है और सर आपके चर्चे तो ख़ूब सुने थे हमने, पहली बार आप से मुलाक़ात हुई ।इवा आपको डिसर्व करती ही हैं इसमें कोई संदेह ही नही, शायद आप से बेहतर जीवन साथी इनके लिए हो भी नही सकता था आपकी ख़ूबसूरती स्मार्ट्नेस और क़ाबिलियत के चर्चे थे जो इवा जी की शादी के तय होने से लेकर शादी हो जाने तक लगभग सालों हर रोज़ हमने सुने हैं । मैं इवा जी का पड़ोसी था ।कभी कभी इवा जी से मैथ्स पढ़ने आता था ।सर आप से मिल कर मुझे बहुत ख़ुशी मिली आज आप से मिल कर जैसे मेरी कोई दिली ख़्वाईश पूरी हो गयी हो ।अन्या के पति ने मुस्कुरा कर विक्की की हर बात का स्वागत किया और पूछा आप कहाँ जा रहे हो ?
विक्की ने अपने ऑफ़िस के काम से बैंकाक जाने की बात बताई ।
तभी अन्या के बेटे ने इशारे से अपनी भूख की बात अन्या को याद दिलाई और अन्या ने अपने पति की ओर देखते हुए कहा, ''तुम दोनो लाउंज में चलो और कुछ खाओ मैं भी दो मिनट में आती हूँ ।
अन्या के पति ने कहा, '' हाँ ठीक है , जल्दी आ जाना तुम्हें अभी चेंज भी करना है और टाइम भी तुमको ही लगना है अभी एक घंटे हैं हमारे पास, ऐसा कहते हुए अन्या के बेटे और पति आगे बढ़ कर लाउंज की सीढ़ियाँ चढ़ने लगे ।
अन्या के पति के जाने के बाद अन्या ने विक्की से बोला, ''तुमने मुझे कैसे पहचान लिया वो भी ऐसी जगह पर जहाँ मैं तो सोच भी नही सकती थी कि हम इस तरह मिलेंगे ।
विक्की अन्या की बात सुन कर हंसने लगा और बोला, '' आपको मुझे पहचानना मुश्किल हो सकता है पर मेरा आपको पहचान ना पाना नामुमकिन है, समझी आप इवा जी ।
ओह ...... अन्या के मुँह से बस इतना ही निकला और वह कुछ बोल ना सकी और मुस्कुरा कर रह गयी ।
विक्की ने कहा, '' आज मेरी आँखे ना भी होती, तो भी मैं आपको पहचान लेता ।कोई अपने पहले प्यार को भूल भी कैसे सकता है तो फिर मैं , मैं ....कभी भी नही भूल पाउँगा आपको इवा और आपका ये पहनावा .... चिरपरिचित अन्दाज़ में शॉर्ट्स ड्रेसस और टिक टाक आपकी चाल कहते हुए हंस पड़ा और फिर कहने लगा, ''आपका पर्फ़्यूम आपकी अदा आपकी झलक आपकी मासूमियत .......छोड़ो न ...मत पूछो ...दीवानगी मेरी थी आप नही समझेंगी,आप थोड़ा भी नही बदलीं ।काश थोड़ी मोटी ही हो गयी होती थोड़ी और प्यारी लगने लगती पहनावा ही चेंज कर लिया होता कम से कम दो चार बच्चों की माँ ही दिखने लगतीं ।आज भी तो आप अपने बचपने की ही तरह कोमल अंग और मन साथ लिए फिर रहीं हैं , ''विक्की ने इवा को मुस्कुराते और एक पुरानी याद के सफ़र से गुज़रते हुए कहा ।
इवा मैं उम्र में आप से भले ही छोटा था पर मेरे प्यार में आप कभी बड़ी हो ही नही पायीं हमेशा एक छोटी कोमल बेबाक़ अपनी ही धुन में रहने वाली मासूम बच्ची ही रहीं,और इसी अदा पर मैं तब से लेकर अब तक मरता आ रहा हूँ,आपके अलावा मुझे कोई भाता ही नही और आप हैं कि समझती ही नही चलो छोड़ो अब आप समझ के करेगी भी क्या ?और तो और समझी तो आप उस दिन भी नही थी जब मैंने आपके गालों पर अपनी उँगलियों से अपने बोसे चिपका दिए थे अपनी इन्ही कोमल हथेलियों में आपका मासूम चेहरा पिंक रोज़ की तरह रख लिया था और आप झटक कर मुझे दूर खड़ी हो गयी थी और....उस दिन जब मैंने अपनी नज़रों में आपकी कई तस्वीर छुपा ली थी और आपको ख़बर तक ना हुई थी ।मैं एक बहाने से आप से मैथ्स पढ़ने आता था और जी भर कर मैं अपनी नज़रों में आपको क़ैद कर के चला जाता था । मैं जान बूझकर आपसे कठिन से कठिन सवाल पूछा करता था, और उसके जबाब में आप परेशान होती थी पेन पेपेर लिए उलझी रहती थीं मैं आपको पढ़ा करता था और आप सवाल सुलझा कर ही मानती थीं । कितनी मासूम थीं आप कितनी कोमल थीं आप ।सच कहूँ इवा, '' इतनी बड़ी दुनिया में घूमते घूमते इतने साल गुज़र गए पर आप सा कोई मिला ही नही मुझे , शायद ईश्वर ने बस एक ही पीस आपको बनाया था और जिस फ़्रेम में आपको बनाया वो फ़्रेम भी तोड़ ही दिया होगा , अच्छी लम्बाई छरहरी काया रंग गोरा सुंदर रेशम से घुंघराले बाल नशीली आँखें, किसी संत का भी ईमान डोल जाय आपको देखकर , एक ही साँस में कहते हुए विक्की ज़ोर से हंसने लगा लेकिन उस हँसी के पीछे छिपी प्रेम की गहराई को अन्या देख रही थी और अपने कोमल और पवित्र मन के किसी कोने में हर बात छिपाती जा रही थी ।
अच्छा बस .....बस ..........
कह लिए ना .......कितने सालों की बातें अभी इस थोड़े से समय में कहते ही रहोगे विक्की ??
छोड़ो ये सब बोलो तुम्हारी ज़िंदगी कैसी चल रही है ?
नेहा कैसी है ? तुम दोनो तो साथ ही हो ना ?
सब बढ़िया है और हम दोनो साथ ही हैं और मेरे दो बच्चे हैं इवा बेटी का नाम रखा है ।
सुनकर अन्या के होठों पर मुस्कुराहट सी दौड़ गयी और बोली मतलब तुमने मेरा नाम अपने पास ही रख लिया और अपनी क्या हालत बना रखी है , पहचान में तो आते ही नही तुम .....चाँद आसमान से उतार लिया है और अपने ही सर रख लिया है टमी तो अपनी अलग ही कहानी कहे जा रही है । सुटेड बूटेड काफ़ी मेच्योर्ड लगने लगे हो ।आवाज़ भी कितनी रौबिली हो गयी है मैं तो तुम्हें बिलकुल ही नही पहचान पा रही थी ।
यहाँ दिल्ली में ही कॉन्फ्रेंस थी उसी में आना हुआ था ।पति देव हमेशा हवा में ही रहते हैं कभी इस देश कभी उस देश, फ़्रीक्वेंट फ़्लायर ठहरे तो सुविधाएँ भी हैं फ़्रेश होने लाउंज में ही जा रही थी, कॉन्फ्रेंस में सब से मिलते मिलाते देर भी हो गयी थी मैं जल्दी भी चली आयी थी और एअरपोर्ट निकलने में देर हो रही थी तो जैसी थी वैसी ही कार में बैठी इधर चली आयी । हमेशा ही सामान बुक करवा कर लाउंज में ही चली जाती हूँ तो लगेज बुकिंग के बाद उधर ही जा रही थी कि तुम्हारी आवज सुन रुक गयी ।
विक्की बातें तो बहुत हैं पर मुझे तुम दस मिनट दो मैं चेंज करके आती हूँ वरना फ़्लाइट में पहुँचने में देर हो जाएगी,मुझे पता है तुम बुरा भी नही मानोगे मुस्कुराकर अन्या ने विक्की से बोला ।
विक्की ने भी पलकें झुका कर अन्या को जाने की इजाज़त दे दी ।
अन्या तेज़ी से दौड़ती हुई लाउंज पहुँची । लाउंज में पहुँचते ही देखा की पति और बेटे अंदर की ओर बैठे हैं और डिनर ले रहे थे लेकिन पति और बेटे को अन्या की चिंता भी हो रही थी कि ना ही उसने कुछ खाया था ना ही रेडी हुई थी ।अन्या पहुँचते ही पति और बेटे से सारी बोलते हुए अपने हैंड बैग ले वाश रूम की ओर भागी और ड्रेस चेंज कर फ़ूड काउंटर से बस दो इडली साम्भर और कुछ ड्राई फ़्रूट्स और कॉफ़ी ले कर पति और बेटे दोनो के साथ बैठ गयी आज अन्या को भारतीय भोजन के कोई ज़ायक़ा नही मिल रहा था नही तो अन्या यहाँ स्वाद ले कर जो भी स्वादिष्ट भोजन मिठाइयाँ पेय पदार्थ होते हैं उन्हें बड़े ही इत्मिनान से खाती थी और अपने मन पसंद संगीत में फ़्लाइट में जाने तक खोयी रहती थी ।
अन्या के पति थोड़े से तल्ख़ लहजे में अन्या से पूछा, '' अन्या ये हैं कौन ?जो तुम्हें इतने अच्छे से जानता है और तो और तुम्हारी बचपन की बातें।
अन्या ने कहा,'' उसने तुम्हें बोला न कि मेरा पड़ोसी था हमारी सोसाइटी में ही फ़ैमिली थी हम सब बच्चे थे हम साथ ही खेलते थे पूरी सोसाइटी में एक फ़मिलियर महोल था सभी आपस में मिल जुल के रहते थे और एक दो साल हम साथ ही थे लेकिन फिर पापा का ट्रान्सफ़र लखनऊ हो गया और हम वहाँ चले गये तो दूरी आ गयी जब विक्की दसवीं में पढ़ता था मैं भी ग्यारहवीं या बारहवीं में थी, '' सुनकर अन्या के पति सहज हो गये ।
अन्या को जल्दी भी थी वापस विक्की से मिलने की इसलिए अन्या ने सब जल्दी ही कर लिया और अपने पति बेटे से बोली मैं नीचे चलती हूँ विक्की मेरा इंतज़ार कर रहा है और किसी को इंतज़ार करवाना अच्छा नही लगता तो तुम दोनो आओ वैसे भी फ़्लाइट की बोर्डिंग अनाउन्स्मेंट हो ही चुकी है तो दस ही मिनट तो है,मैं विक्की के साथ नीचे हूँ तुम दोनो आओ फिर तुम्हारे साथ फ़्लाइट में चलूँगी, कहते हुए अन्या हैंड बैग ले नीचे आ गयी ।
अन्या को आते देख विक्की की प्रतिक्षित आँखें खुली की खुली ही रह गयी उसे एक पल को लगा कि वह इवा नही कोई और है और विक्की अन्या को सिर से पावं तक निहारे जा रहा था अन्या जैसी किसी लहराती हुई नदी की तरह तेज़ वेग सी उसकी ओर चली आ रही थी और विक्की को आज ऐसा लग रहा था की उस बहाव में बह भी जाएगा
तभी अन्या विक्की के पास आते ही बोली ऐसे क्या देख रहे हो विक्की, ऐसा लग रहा है जैसे कि तुम मुझे पहली बार देख रहे हो । यार ...अभी तो मैं यहीं से गयी थी न ...वही हूँ चेंज नही हो गयी हूँ कह कर उन्मुक्त हँसी से खिलखिला पड़ी ।
इवा सच कह रही हैं आप तो बदल ही गयी हैं, ये लोंग बूट ये स्किनी जींस ये हेवी फरदर लॉंग जैकेट ये हेयर स्टाइल कुछ भी तो अपना सा नही लग रहा मुझे । अचानक से ऐसा लग रहा है जैसे किसी विदेशी अजनबी के सामने खड़ा हूँ , '' कहते हुए विक्की ने सर झुका लिया और अन्या सुनते ही ज़ोर से फिर खिलखिला कर हंस पड़ी ।अन्या जब हंस रही थी तो उसकी रेशमी ज़ुल्फ़ों की लटे उसके गालों पर आ गिरीं और हँसते हँसते उसका चेहरा भी सुर्ख़ हो चुका था और इधर विक्की का धैर्य अपने ही दिल से बेक़ाबू होता जा रहा था और एक बार फिर वह इवा के चेहरे को अपने हथेलियों से छू लेना चाहता था और जैसे ही विक्की ने ऐसा करने के लिए हाथ उठाया ही था कि उसकी नज़र ऊपर लाउंज से निकलते हुए उसके पति और बेटे पर पड़ गयी और विक्की ने अन्या के चेहरे से उसकी लटे किनारे करते हुए बोला ये शरारती लटें भी न बिलकुल आप पर ही गयी हैं कभी भी इधर उधर मचल जाती हैं बिना सोचे कि इससे किसी को कितनी परेशानी भी हो सकती है ।
अन्या ने विक्की से बोला, '' छोड़ो उसे यार .....
अन्या ने विक्की के रूमानियत को यही बढ़ने से रोकते हुए कहने लगी , ''बचपन के बाद आज ऐसे तुमसे मिल कर बचपन में ही मैं चली गयी मैं तो और सारे चेहरे एक साथ ही सामने आ गये पर ख़बर किसी की नही है किसी को ।कभी तो हम सब एक दूसरे को ऐसे ही याद आते होंगे न , या याद करते होंगे न ।
विक्की ने अन्या को छेड़ते हुए कहा, इवा, आप तो यूँ ना बोलिए, कभी ग़लती से भी याद किया होता मुझे तो आज आपको पहचानने में इतना वक़्त ना लगता या फिर आपके अपने उनके प्यार ने हम सब के लिए कोई जगह ही ना छोड़ी हो, वक़्त ही ना दिया हो कि मुझ नाचीज़ जैसी फ़ितरत को याद करने की ज़हमत भी आप उठाती ।
सब सुनकर अन्या विक्की से कहने लगी, '' विक्की , जिस शादी प्यार जैसी चीज़ों से मुझे जो डर लगता था ना शायद मेरे पति जैसा कोई मुझे ना मिलता तो अब तक तो मैं इस दुनिया ही में ना होती , मैं कहो तो सारी दुनिया से चिल्ला कर बता दूँ कि मुझे जैसा जीवन साथी मिला है वैसा कम ही ख़ुश नसीब होंगे जिन्हें मिला होगा, उसे मेरी उसी सादगी और निश्छलता से ही प्यार हुआ था वह कभी नही चाहता था कि मैं बदलूँ, मैं कभी उदास हो बैठी होती हूँ तो बच्चों सी बदमाशियाँ कर मुझे हँसा देते हैं ।अन्या अपनी दास्ताँ विक्की को सुना ही रही थी कि अन्या के पति की आवाज़ ने अन्या को चौकाते हुए पीछे से बोला, किसी बातें हो रहीं हैं मैडेम ?
अन्या ने अपने पति की ओर देखते हुए जबाब में कहा, ''तुम्हारी ही ...... तारीफ़ तो ये दिल तुम्हारे अलावा किसी की करता ही नही है न , झूठी भी तारीफ़ इससे नही होती, कहते हुए अन्या खिलखिला कर हंस पड़ी ।
यार ...टाइम तो हो गया है, अन्या ने पति की ओर देखते हुए बोला ।
पति ने इशारे में हाँ के लिए सर हिलाया और कहा कि अब चलना चाहिए ।
चलने के नाम से ही विक्की के चेहरे पर वही दर्द फिर उभर आया लेकिन दर्द इस बार अन्या के चेहरे पर भी साफ़ दिखाई दे रहा था इस बार इस दर्द में विक्की अकेला नही था अन्या भी दर्द की भागीदार थी ।
लेकिन दोनो ने जल्दी ही ख़ुद को सम्भालते हुए बिछड़ने के दर्द को अपनी मुस्कुराहट के पीछे छुपा लिया ।
अन्या ने अपने पति का हाथ थाम फ़्लाइट में जाने के लिए क़दम बढ़ाया ही था कि पति ने अन्या से इशारों में कुछ कहा और अन्या पीछे मुड़ विक्की के पास गयी और उसे एक प्यार भरी झप्पी दी और बोली तुम्हारा प्यार उधार ....इस जन्म में नही किसी और जनम में चुका दूँगी इस बार माफ़ कर दो मैंने जानबुझ कर कुछ नही किया लेकिन फिर भी अनजानी सी एक ग़लती की तुम्हारी मैं गुनहगार हो गयी मुझे माफ़ कर देना ।
विक्की ने उसके होंठों पर अपनी ऊँगली रखते हुए कहा, इवा आप गुनहगार नही मेरा प्यार हैं मैं कई जन्मों तक आपका इंतज़ार कर सकता हूँ और करूँगा .....माफ़ी ना माँगों आप मुझे भी थोड़ा प्यार से याद कर लेना ......बस .....।
हाथों से हाथ छूटते .....अन्या ने पलकों को झपका कर मंज़ूरी दे कि वह विक्की की बात रखेगी और मुस्कुराती हुई जा कर अपने पति से लिपट कर थैंक्स कहते हुए उनको कई चुम्बन दे डाले और उसके काँधे पर सिर टिका दिया और बेटे का हाथ थाम लिया ।
दोनो अपने बेटे के साथ चलते हुए फ़्लाइट के अंदर जा चुके थे और कुछ ही देर में फ़्लाइट के दरवाज़े भी बंद हो गये और (एअर lufthansa )फ़्लाइट अपनी मंज़िल के लिए टेक ऑफ़ हो गयी ।