शनिवार, 24 जुलाई 2021

एक ग़ज़ल : हमें मालूम है --

 डायरी के पन्नों  से---

एक ग़ज़ल : हमें मालूम है संसद में ---



हमें मालूम है संसद में कल फिर क्या हुआ होगा,

कि हर मुद्दा सियासी ’वोट’ पर  तौला  गया होगा ।


वो,जिनके थे मकाँ वातानुकूलित संग मरमर  के,

हमारी झोपड़ी के  नाम हंगामा   किया  होगा


जहाँ भी बात मर्यादा की या तहजीब की आई,

बहस करते हुए वो गालियाँ  भी दे रहा  होगा


बहस होनी कभी जो थी किसी गम्भीर मुद्दे पर,

वहीं संसद में ’मुर्दाबाद’ का  नारा लगा होगा


चलें होंगे कभी चर्चे जो रोटी पर ,ग़रीबी  पर,

दिखा कर आंकड़ों  का खेल, सीना तन गया होगा ।


कभी मण्डल-कमण्डल पर, कभी ’मस्जिद पे, मन्दिर पर

इन्हीं के नाम बरसों से तमाशा हो रहा होगा ।


खड़े है कटघरे में हम , लगे आरोप ’आनन’ पर,

कि शायद भूल से हम ने कहीं सच कह दिया होगा ।


-आनन्द.पाठक-

3 टिप्‍पणियां: