बुधवार, 13 अक्टूबर 2021

 

               लखिमपुर में घटी घटनाओं की अनकही कहानी

लखिमपुर में जो हिंसा की घटना कुछ दिन पहले घटी उसको लेकर आप ने हर टीवी चैनल पर बहुत कुछ सुना होगा. पर शायद ही किसी मीडिया विश्लेषक ने आपको उस कारण के विषय में कुछ बताया होगा जो लखिमपुर और उसके आसपास के इलाकों में बसे हुए किसानों की चिंता की असली वजह है. मुझे इस विषय की जानकारी प्रदीप सिंह जी के यू-ट्यूब चैनल ‘आपका अख़बार’ के विडियो सुनने पर मिली. आज की घटनाओं को समझने के लिए हमें थोड़ा इतिहास में जाना पड़ेगा.

पकिस्तान से आये कई सिखों को लखिमपुर और उसके आसपास के इलाकों में बसाया गया था. यह सत्य है कि इन लोगों ने कठिन चुनौतियों का सामना करते हुए अपने को इन नयी जगहों पर स्थापित किया था.

इन लोगों के आने से पहले इन इलाकों में जनजाति के लोग रहते थे, मुख्य जनजातियाँ थीं थारु और बुक्सा. एक समय पर इन लोगों के पास कोई 2.5 लाख एकड़ भूमि थी पर अब इनके पास सिर्फ 15,000 एकड़ भूमि ही बची है.

इन मूल निवासियों की ज़मीन का क्या हुआ? प्रदीप सिंह जी के अनुसार साठ और सत्तर के दशक में थारु और बुक्सा लोगों के बड़े पैमाने पर हत्याएं हुईं, खून बहा, हिंसा हुई और इन लोगों की भूमि पर कब्ज़ा किया. कई मूलनिवासियों से जबरदस्ती लिखवा लिया गया. परिणाम स्वरूप, जहाँ कानूनी तौर पर कोई फार्म 12.5 एकड़ से बड़ा न हो सकता था, वहाँ कुछ लोगों के पास 200, 400, 1000, 2000 एकड़ के फार्म है. यह फार्म इन जनजातियों की भूमि पर और वन विभाग की भूमि पर बने हैं.

यू पी सरकार ने 1981 में कानून बनाया कि कोई भी थारु और बुक्सा जनजाति के लोगों की ज़मीन नहीं खरीद सकता और जिसने भी सीलिंग से अधिक भूमि खरीदी है वह उससे वापस ली जायेगी. पर इस आदेश पर उस समय के हालात के कारण आगे कोई कारवाही नहीं हुई. बाद में कल्याण सिंह सरकार ने भी इस कानून को लागू करने का प्रयास किया पर कुछ कर न पाई.

योगी जी ने उत्तर प्रदेश का मुख्य मंत्री बनने के बाद एक निर्णय लिया कि जिन लोगों ने सरकारी या दूसरों की भूमि पर अवैध कब्ज़ा कर रखा है उस भूमि को मुक्त कराने का अभियान चलाया जाएगा.

इस अभियान के चलते पिछले साढ़े चार सालों में 1,54,000 एकड़ भूमि अवैध कब्ज़े से मुक्त कर ली गयी है.

अब इस अभियान की आंच लखिमपुर में बसे हुए किसानों तक पहुँच रही है. चूँकि इन किसानों में कई लोग अकाली दल से और कुछ कांग्रेस के साथ जुड़े हैं इसलिए आजतक इन लोगों के विरुद्ध कोई कारवाही नहीं हो सकी.

लखिमपुर में बसे हुए किसान जानते हैं कि वह इस बात को लेकर आन्दोलन नहीं कर सकते. न ही वह इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं. कानूनन उत्तर प्रदेश में कोई भी व्यक्ति 12.5 एकड़ से अधिक भूमि का स्वामी नहीं हो सकता.

अब चूँकि अन्य रास्ते बंद हैं और योगी जी कोई ढिलाई बरतने को तैयार नहीं लगते, इसलिए किसान आन्दोलन की आढ़ में यहाँ के किसान यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जो अभियान उत्तर प्रदेश सरकार ने चलाया उन्हें इससे बाहर रखा जाए.

जैसी की अपेक्षा थी, इस आन्दोलन को उत्तर प्रदेश के बजाय पंजाब के राजनेताओं का पूरा समर्थन मिल रहा है.

(इस मुद्दे पर श्री प्रदीप सिंह का विडिओ यू-ट्यूब पर अवश्य सुनें)

 

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