बुधवार, 6 अक्टूबर 2021

एक ग़ज़ल

 एक ग़ज़ल

बगुलों की मछलियों से, साजिश में रफ़ाक़त है,
कश्ती को डुबाने की, साहिल की  इशारत  है ।


वो हाथ मिलाता है, रिश्तों को जगा कर के,
ख़ंज़र भी चुभाता है, यह कैसी शरारत है ?


शीरी है ज़ुबां उसकी, क्या दिल में, ख़ुदा जाने ,
हर बात में नुक़्ताचीं, उसकी तो ये आदत है ।


जब दर्द उठा करता, दिल तोड़ के अन्दर से,
इक बूँद भी आँसू की, कह देती हिकायत है ।


इकरार नहीं करते, हां’ भी तो नहीं करते ,
दिल तोड़ने वालों से, क्या क्या न शिकायत है।


अब कोई नहीं मेरा, सब नाम के रिश्ते हैं,
हस्ती से मेरी अपनी, ताउम्र बग़ावत है।


इक राह नहीं तो क्या, सौ राह तेरे आगे,
चलना है तुझे ’आनन’, कोई न रिआयत है।


=आनन्द.पाठक-

 

शब्दार्थ

रफ़ाक़त = दोस्ती, सहभागिता

हिकायत = कथा-कहानी ,वृतान्त

रिआयत = छूट 

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