गुरुवार, 25 नवंबर 2021

                            क्या यह लोग हिंदू विरोधी नहीं हैं?

किसान कानूनों के वापस लेने के परिपेक्षय में नागरिकता कानून को लेकर लेफ्ट-लिबरल और कुछ नेता सक्रिय हो रहे हैं. इनके बयानों को सुन कर प्रश्न उठता है कि क्या यह लोग हिंदू विरोधी नहीं हैं?

नागरिकता कानून के अंतर्गत उन लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है जो बँगला देश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक हैं और जो धार्मिक उत्पीड़न के कारण 2014 से पहले भारत आ गये थे.

पाकिस्तान और अफगानिस्तान में तो हिंदुओं की संख्या अब न के बराबर ही है. बँगला देश में भी हिंदुओं की संख्या बहुत घट गई है. इसलिए स्वाभाविक है कि धार्मिक उत्पीड़न के चलते, इन देशों से भारत में आये लोगों में सबसे बड़ी संख्या हिन्दुओं की है.

इस कानून के द्वारा भारत के किसी नागरिक की नागरिकता खत्म करने का कोई प्रावधान नहीं है और न ही किसी का कोई अधिकार छीना जा सकता है. इसलिए जब लेफ्ट-लिबरल वगेरह इस कानून को वापस लेने की मांग करते हैं तो एक तरह से वह मांग कर रहे हैं कि भारत से आये हिन्दुओं को भारत की नागरिकता न दी जाए.

विचारणीय है कि जब पिछले दिनों बँगला देश में हिन्दुओं पर फिर से हमले हुए थे तब इन लेफ्ट-लिबरल या इन नेताओं  ने इसके विरोध में एक शब्द भी न कहा था. (वेस्ट बंगाल के हिन्दुओं की चुपी तो चिंता का विषय होनी चाहिए). अगर ऐसे हमले यू पी या गुजरात में एक वर्ग विशेष पर हुए होते तो नश्चय ही यह लेफ्ट लिबरल दिल्ली से लेकर न्यू यॉर्क तक छाती पीट कर रो रहे होते.

तो क्या इस व्यवहार को देखते हुए, यह अनुमान लगाना गलत होगा की यह लोग हिंदू विरोधी हैं और हिंदू विरोध में ही नागरिकता कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं?

उपलेख: क्या कश्मीर से मार कर भगाए गये हिन्दुओं के समर्थन में जेएनयू में कभी कोई प्रदर्शन हुआ था? क्या लेफ्ट लिबरल लोग मोमबत्तियां लेकर जंतर-मंतर या कहीं ओर कभी इकट्ठे हुए थे?  

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