मंगलवार, 15 मार्च 2022

एक ग़ज़ल ---होली में


ग़ज़ल --होली में



करें जो गोपियों की चूड़ियाँ झंकार होली में ,

बिरज में खूब देतीं है मज़ा लठमार होली में   ।


अबीरों के उड़ें बादल कहीं है फ़ाग की मस्ती

कहीं गोरी रचाती सोलहो शृंगार होली में  ।


इधर कान्हा की टोली है उधर ’राधा’ अकेली है

चलें दोनो तरफ़ से रंग की बौछार होली में ।


कहीं है  थाप चंगों पर, कहीं पायल की छमछम है,

कही पर कर रहा कोई सतत मनुहार होली में ।


किसी के रंग में रँग जा, न आता रोज़ यह मौसम,

किसी का हो गया है जो, वही हुशियार होली में ।


बिरज की हो, अवध की हो, कि होली हो’ बनारस’ की

खुले दिल से करें स्वागत , करें सत्कार होली में ।


गुलालों में घुली हैं स्नेह की ख़ुशबू  मुहब्बत की ,

भुला कर सब गिले शिकवे गले मिल यार होली में ।


न खाली हाथ लौटा है यहाँ से आजतक कोई ,

चले आना कि ’आनन’ का खुला है द्वार होली में ।



-आनन्द.पाठक-

8800927181



14 टिप्‍पणियां:

  1. बिरज की हो, अवध की हो, कि होली हो’ बनारस’ की
    खुले दिल से करें स्वागत , करें सत्कार होली में ।
    न खाली हाथ लौटा है यहाँ से आजतक कोई ,
    चले आना कि ’आनन’ का खुला है द्वार होली में।
    ---- बहुत खूब!
    शुभ होली!

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  2. रंग-बिरंगी प्यारी रचना. होली है !

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  3. होली पर सुंदर सतरंगी अभिव्यक्ति ।
    सुंदर सृजन।

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