सोमवार, 23 मई 2022

कब तक यूं ही

 कब तक यूं ही बात न हो 

साथ तो हो पर साथ न हो 

धरती अंबर से न बोले 

ऐसे तो कभी हालात न हो 


धूप भले फिर लाख जला ले 

छांव का सर पे हाथ न हो 

उखड़े उखड़े  दिन हो चाहे 

मायूस मगर ,  ये रात न हो 


#बस_यूँ_ही

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (25-05-2022) को चर्चा मंच      "पहली बारिश हुई धरा पर, मौसम कितना हुआ सुहाना"  (चर्चा अंक-4441)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    
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  2. कोमल भावनाओं को व्यक्त करती सुंदर रचना

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    1. आपको छू गई पंक्तियां , लिखना सार्थक हुआ अनिता जी ... हृदय से आभार आपका

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  3. उखड़े उखड़े दिन हो चाहे
    मायूस मगर , ये रात न हो

    सुंदर...पंक्तियाँ...

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    1. तहे दिल से धन्यवाद विकास जी ... आपके इन्ही शब्दों से लेखन को और बल मिलता है। 🙏

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